मौत के आंकड़े न बताए सरकार, नशे पर रोक लगाए

भारत सरकार के टीवी द्वारा 8 जुलाई 2018 को एक बहुत कटु सत्य दिखाया गया। संभवत: यह पहला अवसर है जब भारत सरकार के टीवी पर शराब से उजड़े परिवारों की करुण कथा सुनाई गई हो। हालांकि आज तक सरकारें यह नहीं दिखातीं न ही स्वीकार करती हैं कि शराब का नशा और शराब दोनों ही बहुत हानिकारक हैं। केवल हानि कर ही नहीं, अपितु खतरनाक हैं। सच तो यह है कि नोट कमाने की दौड़ में सरकारें शराब को नशा ही नहीं मानतीं, पर लोकसभा टीवी द्वारा एक ऐसे सरकारी अधिकारी की दयनीय कहानी उसी की जुबानी चैनल के माध्यम से सुनाई गई, दिखाई गई। एक वरिष्ठ अधिकारी यह कह रहा था कि उसे अच्छी नौकरी मिली। विवाह हुआ, सभी सुख सुविधाएं और सम्मान प्राप्त हुआ, पर मित्र मंडली के संपर्क में उसने बियर पीना शुरू कर दिया। बियर एक बोतल से चार में बदलीं और फिर शराब शुरू हो गई। उस अधिकारी के अनुसार शराब ने उसके मन मस्तिष्क पर पूरा अधिकार कर लिया। नशे के कारण पत्नी छोड़कर चली गई। नौकरी से निकाल दिया गया और फिर सभी रिश्तेदारों ने भी उसका बहिष्कार किया, और सामाजिक जीवन से वह स्वयं कटता गया। यह एक कहानी नहीं, अपितु आत्म कथन और सत्य है। इसके साथ ही दूसरा वह युवक भी दिखाया गया जो इसी लाल पानी की दलदल में फंस कर सब कुछ गंवा बैठा। इस अधिकारी ने लगभग रोते हुए यह कहा कि मेरी रग-रग में नशों की मात्रा इतनी अधिक हो गई थी जिससे मुझे यह लगता था कि जो मच्छर मुझे काटता है तो वह मर जाता है, पर मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता। उदयपुर के एक हॉस्टल में पड़ने वाले विद्यार्थी का भी साक्षात्कार हुआ जो स्वयं कहता रहा कि उसने बियर की कुछ बूंदों के साथ नशे का स्वाद चखा और धीरे-धीरे एक नहीं, दो नहीं, चार बोतलों तक पहुंच गया और फिर शराब, गांजा, चरस सब कुछ लेने लगा। इस युवा के अनुसार जब परिवार से नशे के लिए धन प्राप्त न होता तो वह उधार लेता, घर में चोरी करता और यहां तक कि उसने अपने पिता को भी धक्का मारकर गिरा दिया। उसके अनुसार उसे यह महसूस हो रहा था कि उसका दिल, दिमाग कहीं ऐसा अटक गया है जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं रहा। उसकी आवाज में तड़प थी, पश्चाताप था और यह कहा कि वर्तमान ही नहीं, उसका भविष्य भी तबाह हो गया। इन दोनों ही युवकों के चित्र तो स्पष्ट नहीं दिखाए, पर उनकी आपबीती इतनी करुणामयी और पश्चाताप पूर्ण थी जो अनेक लोगों को गलत मार्ग पर जाने से रोक सकती है। यद्यपि दूरदर्शन द्वारा इन दोनों के सचित्र साक्षात्कार दिखाए गए, पर मैं उनका नाम न लिखना ही उचित समझती हूं, क्योंकि यह कोई दो चार लोगों की दुखद गाथा नहीं अपितु आज तो करोड़ों परिवारों को उजाड़ने वाली सरकार द्वारा पिलाई जा रही शराब की त्रासदी है।  भारत सरकार ने 26 जून को नशा उन्मूलन करने के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया था। उसके लिए ही ऐसे जागरूक करने वाले कार्यक्रम तो बनाए, दिखाए भी पर केंद्र समेत किसी राज्य सरकार ने 26 जून को यह घोषणा नहीं की कि उनका राज्य शराब की बुराई से मुक्त हो जाएगा। यह अवश्य बता दिया कि भारत के लगभग 59 प्रतिशत युवा और 28 प्रतिशत युवतियां नशे में फंस चुकी हैं। यह भी कहा कि जब वे सब ओर से निराश हो जाते हैं तो उन्हें अवसाद, विषाद और निराशा ऐसे घेर लेती है जिससे उन्हें मौत के अलावा कहीं आश्रय दिखाई नहीं देता और वे आत्म-हत्या तक पहुंच जाते हैं। पंजाब में यही भयानक सत्य सड़कों पर साकार हो रहा है। साठ दिनों में साठ से ज्यादा युवक नशों की ओवरडोज से अथवा नशा न मिलने से मौत के मुंह में चले जाएं, यह पंजाब के लिए नहीं अपितु पूरे देश के लिए चेतावनी है। पहले आतंकवाद ने हमारी जवानी को लाश बनाया और अब नशे जवानी के साथ ही देश का वर्तमान और भविष्य नष्ट कर रहे हैं।
भारत सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार 15 साल की उम्र तक की 28 प्रतिशत लड़कियां और 49 प्रतिशत लड़के नशे की गिरफ्त में पहुंच गए हैं। यह भी बताया कि जो देश की 37 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, वह नशे का अधिक इस्तेमाल कर रही है, पर इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि यह कह देते कि शराब के ठेके भी सरकारें अधिकतर उन्हीं क्षेत्रों में खोलती है जो गरीब और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के हैं। पंजाब की विशेष चिंता करते हुए यह भी कहा गया कि पंजाब में 2 लाख 70 हजार नगरिक नशों में फंस चुके हैं और आज नशे की ओवरडोज से जो मौतें हो रही हैं, उसका कारण भी नशों का अनियंत्रित होना है। आज का गंभीर प्रश्न यह है कि समय की सरकारें नशे के कारण चिंतित हैं। नशा व्यापारियों, तस्करों और नशेड़ियों को नियंत्रित करने के लिए हाथ-पांव तो बहुत मार रही है, परन्तु समय का विपक्ष सरकारों को नशा नियंत्रण में सहयोग देने के स्थान पर तमाशा देखने के मूड़ में है। उनका उद्देश्य मिल-जुलकर पंजाब की जनता को नशों की दलदल से निकालना कम, परन्तु सत्तापक्ष पर आक्षेप करना तथा आने वाले चुनाव में उससे सत्ता छीनना है, क्योंकि 2017 के चुनाव में पिछली सरकार नशों के कारण ही परास्त हुई थी। एनसीबी के अनुसार वर्ष 2014 तक हर रोज दस आत्म-हत्याएं नशों के कारण हो रही थीं और सबसे ज्यादा आत्म-हत्याएं महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती थीं।  पंजाब में 2014 तक तो पंजाब में नशों के कारण आत्म-हत्या करने वालों की संख्या थोड़ी थी, परन्तु वर्ष 2018 में नशों की ओवरडोज के कारण मरने वाले युवकों की संख्या एक बड़े खतरे के रूप में पंजाब और देश के सामने आ गई है। नशे के आतंकवाद को सरकार आतंकवाद की तरह ही ले, युद्ध स्तर पर नशे रोकने का काम करे, नशेड़ियों का इलाज करवाए और पंजाब में शराब पूरी तरह बंद कर दे, इसी से पंजाब का भला हो सकता है। भारत सरकार को भी यह सोचना होगा कि शराब पूरी तरह बंद करके ही देश का भला हो सकता है। अगर सरकार स्वयं यह जानकारी देती है कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चे भी नशों की अंधेरी दुनिया में जाने की तैयारी कर रहे हैं तो क्या यह भारत के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो रहा। अच्छा यह है कि सरकार हमें भयावह आंकड़े न बताए, अपितु कोई सुखद समाचार देकर यह जानकारी दे कि नशों पर प्रतिबंध के लिए क्या किया और कितने प्रतिशत लोग नशा मुक्त सुखी जीवन जी रहे हैं। निराशाजनक समाचार हताशा पैदा करते हैं, उज्ज्वल भविष्य नहीं दिखाते। समय के शासकों, राजनेताओं तथा धर्म गुरुओं का प्रथम कर्त्तव्य है कि भारत की युवा पीढ़़ी जिस अंधेरी गुफा की ओर बढ़ रही है, उसे रोकें और उन्हें ऐसा मार्ग दिखाएं जो देश के लोगों को और देश के भविष्य को सुखद और सुरक्षित कर सकता है।