श्रीरंगपट्टनम का रंगनाथ स्वामी मंदिर

मैसूर की मेरी कुछ दिनों की यात्रा कशमकश से भरी प्रतीत हो रही थी। मैं ज्यादा से ज्यादा जगहों को देखना चाहता था। कब-कब और क्या-क्या देखूं, मैं यह समझ नहीं पा रहा था। इस दुविधा से निकलने के लिए मैं और मेरा दोस्त बिना कुछ सोचे समझे होटल से बाहर निकले। पहला ऑटोरिक्शा नजर आया। उसे पकड़ा और श्रीरंगपट्टनम के लिए निकल पड़े, जो 15 किमी के फ ासले पर कावेरी नदी में द्वीप है। हमारा पहला पड़ाव रंगनाथ स्वामी मंदिर था, जो हमारी यात्रा का हाइलाइट बन गया। विष्णु के एक अवतार को समर्पित यह प्राचीन वैष्णव मंदिर पहले पहल पश्चिम गंगा राजवंश के भूसामंत थिरुमल्लै: द्वारा समर्पित किया गया था। बाद में होयसला व अन्य राजवंशों ने इसमें विस्तार किया और आज रंगनाथ स्वामी मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यह नदी किनारे के बहुत निकट श्रीरंगपट्टनम किले के प्रांगण में स्थित है। यह टीपू सुल्तान के उस जल पातालगृह के भी काफी निकट है जहां उन्होंने अंग्रेज सैनिकों को बंदी बनाकर रखा और स्वयं शहीद भी हुए। टीपू की पसंदीदा सफेद जामा मस्जिद भी यहीं करीब ही स्थित है। रंगनाथ स्वामी मंदिर को अदि रंगा भी कहते हैं और यह इस क्षेत्र में रंगनाथन को समर्पित पांच तीर्थस्थानों- पंचरंगा क्षेत्र में से पहला स्थल है। प्रवेश पर स्थित गोपुराम वास्तुकला की विजयनगर शैली के अनुसार बना हुआ है। मुख्य मंडप का प्रवेश द्वार विष्णु के अवतारों की मूर्तियों से सजा हुआ है- राम, कृष्ण, नरसिम्हा और वामन। यह मंडप एक छोटे खुले आंगन की ओर ले जाता है, जहां अंदर वाला मंडप है जिसके चार स्तंभ परम्परागत होयसला वास्तुकला की याद दिलाते हैं। बायीं ओर की गणेश की मूर्ति की परिक्त्रमा करने के बाद हम गर्भ गृह की सीढ़ियों पर पहुंचे। वहां हमें विष्णु की पहली झलक मिली। वह मेरे लिए जीवन को बदलने वाला पल था। विष्णु छह शीश वाले शेषनाग पर लेटे हुए थे। उनकी बड़ी कमल जैसी आंखें मुझे देख रही थीं और वह मुस्कुरा रहे थे, जैसे कह रहे हों, ‘आ गये! बेकार की छोटी-छोटी बातों पर इतनी चिंता करके क्यों परेशान होते हो। हर चीज अच्छे के लिए होगी। हमेशा ऐसा ही होता है। क्या तुमने मुझे कभी परेशान होते हुए देखा है? और फि र बात समझ में आ गई। अगर इस ब्राह्मांड को चलाने वाला स्वामी जो सबका कल्याण करता है, वह इतना साधारण, सामान्य, स्वाभाविक, सहज व सरल है, तो क्या हम बहस, क्त्रोध, षड्यंत्र, आदि करते रहें और वह भी केवल अपने कल्याण के लिए? मैंने भी अपने आपको मुस्कुराते हुए पाया। योजना बनाने व विचार करने का तमाम तनाव रफूचक्कर हो गया। यह अच्छा एहसास था। दीवार पर नोटिस लिखा था कि कोई तस्वीर न ले। हमने पूजा के लिए गर्भ गृह में प्रवेश किया। एहसान में सिर झुकाकर मैंने भगवान का शुक्रिया अदा किया कि उसने मेरे भीतर एक नयी आशा का संचार किया है। ‘हम धारा के साथ क्यों नहीं बह जाते? जीवन को जीने दो।’ यह वास्तव में ऊर्जावान विचार था। रंगनाथ स्वामी के पास अपने भक्तों को देने के लिए हमेशा वह है जिसकी उन्हें अधिक जरूरत होती है। बताया जाता है कि जब हैदर अली मैसूर के राजा मुम्मादी कृष्णाराजा वोडियार के प्रमुख सेनापति थे तो उन्होंने रंगनाथ स्वामी से प्रार्थना की कि राज्य में घुसपैठ कर चुके दुश्मन फौजियों को पराजित करने में उनकी सहायता करें। उनकी सेना एक तरफ  दुश्मनों से घिरी हुई थी और दूसरी तरफ  गोदावरी नदी उफान पर थी। प्रार्थना करते ही नदी सूख गई, मैसूर की सेना सुरक्षित उसे पार कर गई। जब दुश्मनों ने पीछा करने का प्रयास किया तो नदी में फि र पानी चढ़ गया। मुख्य मंदिर की परिक्रमा करते हुए हमने लक्ष्मी की पूजा की और वापस मुख्य मंडप में आ गये। वहां विष्णु का वाहन, सुनहरी गरुड़ रखा हुआ था। इसका प्रयोग मंदिर की वार्षिक यात्राओं के दौरान विष्णु की उत्सव मूर्ति (जो आकार में छोटी है) को ले जाने के लिए किया जाता है। मंदिर प्रांगण में मुख्य मंडप के बाएं में पुष्करणी मंदिर तालाब है और उसके पीछे तीर्थयात्रियों के आराम के लिए दूसरा मंडप है और आंगन के चबूतरे पर छोटा पत्थर का मंदिर है। एक तरफ  गाय के पास खड़े होकर कृष्ण बांसुरी बजाते हुए और दूसरी तरफ वह जिसकी हम अंदर तस्वीर न उतार सके थे, यानी शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु। हमारी शुरुआत अच्छी हुई थी। टीपू सुल्तान का गर्मी का महल, उनका मकबरा गुम्बजय संगम, जहां कावेरी नदी श्रीरंगपट्टनम पहुंचकर दो धाराओं में बंटकर और फि र एक होकर आगे बढ़ती है, रंग्नाथित्तु पक्षी आश्रय-स्थल... उस एक दिन में हमने काफी कुछ देखा। हमने उस दिन घूमने का खूब आनंद लिया।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
—रौशन सांस्कृत्यायन