स्वास्थ्य पर पूरी तरह हावी होता फास्ट फूड


फास्ट फूड के नाम से ही इसका अर्थ स्पष्ट है अर्थात् जल्द तैयार होने वाला खाना। आज के इस आधुनिक युग का प्रमुख भोजन बन गया है फास्ट फूड। छोटे आयोजनों यानी जन्मदिन से लेकर शादी विवाह की बड़ी पार्टियों तक इसे एक प्रमुख व्यंजन के रूप में परोसा जाता है।
फास्ट फूड हमारे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की ज़रूरतों को कितना पूरा करता है। हम जीभ के स्वाद के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि कौन से पदार्थ हमें खाने चाहिए और कौन से नहीं। आज के इस बदलते दौर ने हमारे खान-पान को भी नहीं छोड़ा है। तेज़-रफ्तार की ज़िंदगी और ग्लोबललाइजेशन ने पारम्परिक भोजन यानी शुद्ध भोजन को पीछे छोड़ दिया है और उसकी जगह चाउमिन, मैगी, पिज्जा, बर्गर, पैटीज एवं चाट-पकौड़े आदि ने ले ली है। 
ये खाद्य पदार्थ आसानी से सभी जगह प्राप्त हो जाते हैं। शहरों ही नहीं बल्कि ये अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी छा गये हैं। नये रेस्तरां और होटल भी जो खुल रहे हैं, उनमें इसी फास्ट फूड को प्राथमिकता दी जा रही है। 
हम रसोईघर में दो घंटे बिताना भी मुनासिब नहीं समझते। जहां आदमी को अपनों के पास बैठने के लिए वक्त नहीं है वहां ‘कैलोरी सिद्धांत’ या ‘फूड वैल्यु’ का कोई मतलब नहीं। लोगों की दिनचर्या बदल गई है।
स्कूल जाते वक्त बच्चे टिफिन में भी मैगी या चाउमिन वगैरह ले जाना पसंद करते हैं। जो बच्चे परांठा, रोटी या पूड़ी वगैरह लेकर आते हैं, उनका मजाक उड़ाया जाता है, जिससे बच्चों में हीन भावना आ जाती है। एक जमाना था जब बच्चों को दही, मक्खन, गुड़ से बने पदार्थ, हरी साग-सब्ज़ी, दूध इत्यादि खिलाया जाता था ताकि बच्चों का सही संतुलित विकास हो सके। आज यह जमाना है कि अगर बच्चों को यह सब नियमित रूप से खाने के लिए दिया जाता है तो वे समझते हैं कि मेरे मम्मी-पापा के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वे फास्ट-फूड खिला सकें। आजकल बच्चे शुद्ध घर के बने भोजन की जगह पिज्जा, बर्गर, मैगी के दीवाने हैं, जबकि घर के भोजन में अधिक पोषक तत्व होते हैं, जोबच्चों को शारीरिक और मानसिक हर प्रकार से स्वस्थ रखते हैं।
अब आवश्यकता है लोगों को इस बात को समझने की कि वाकई हमारे शरीर के लिए किन तत्वों की आवश्यकता है और ये हमें किन स्रोतों से प्राप्त होंगे। स्वाद बदलने के लिए कभी-कभार खा लेना अलग बात है, किन्तु यह फास्ट-फूड आज की पीढ़ी पर पूर्ण रूप से हावी हो रहा है। अनेक प्रकार की बढ़ती बीमारियां भी इन्हीं की देन हैं।
 —प्रभा ठाकुर