किसानों को दरपेश मुश्किलें दूर की जाएं


कृषि पंजाब की आर्थिकता का अहम अंग है। यह 2.78 करोड़ आबादी के 68-70 प्रतिशत लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार उपलब्ध करता है। आज़ादी के बाद पंजाब ने खेतीबाड़ी में शानदार तरक्की की है। पिछली शताब्दी के 70वें के शुरुआत में ही हरित क्रांति के आगाज़ के तुरंत बाद पंजाब ने भारत को अनाज पक्ष से आत्म-निर्भर कर दिया और फिर अनाज आयात के योग्य बना दिया। पिछले वर्ष गेहूं की उत्पादकता 51 क्ंिवटल और चावलों की 50 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर की प्राप्ति करके 308 लाख टन अनाज पैदा किया और उत्पादकता पक्ष से भारत का नम्बर-1 राज्य बन गया। केन्द्रीय पुल में गेहूं का योगदान 46.43 प्रतिशत और चावल का योगदान 27.28 प्रतिशत डाल कर देश में पहला स्थान प्राप्त किया। नरमे का प्रति हैक्टेयर झाड़ भी 856 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर पहुंच गया जो रिकार्ड था। इसी  तरह मछली की उत्पादकता में देश के सभी राज्यों से ऊपर रहा और शहद का उत्पादन भी दूसरे सब-राज्यों से अधिक किया। यह उपलब्धियां किसानों की ओर से की गई सख्त मेहनत और उनकी ओर से अपनाई गई कृषि खोज की नई तकनीकों और नई विकसित किस्मों के सुधरे बीज, किमियाई खाद और कीटनाशकों के परिणाम के तौर पर सम्भव हुईं।
परन्तु यह आश्चर्यजनक उपलब्धियों के बावजूद किसान मायूस है। अधिकतर चेहरे मुरझाए हुए हैं। उन्होंने उत्पादन तो बढ़िया परन्तु उनकी आय में बढ़ौतरी नहीं हुई। जब तक उनकी ओर से उत्पादन में किया हुआ बढ़ावा उनकी आय बढ़ाने का साधन न बने, उनके लिए अनाज की सुरक्षा बेमायने है। इसलिए उनमें रोष है। उनकी ओर से हर दिन रैलियां और धरने देकर अपने रोष का प्रगटावा किया जा रहा है। उनके मध्य ऋणों की माफी की मांग ज़ोर पकड़े जा रही है। केन्द्र की ओर से खरीफ 2018 की फसलों में किया बढ़ावा भी उनको संतुष्ट नहीं कर सका, क्योंकि यह बढ़ावा सही तौर पर उनकी ओर से की जा रही लागत पर 50 प्रतिशत लाभ देने का यकीन नहीं दिलवाया और न ही प्रोफैसर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों (जो भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में मानने का वायदा किया था) को पूरा करने संबंधी पूरा उतरा है। कई क्षेत्रों में जो हरित क्रांति के उपरांत कीमियाई खादों, कीटनाशकों और नई किस्मों के बीजों के प्रयोग को किसानों के रोष के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। वह बिल्कुल सही नहीं। हाल ही में दिल्ली में हुई 7वीं नैशनल एग्रोकैमिकल्ज़ कांफ्रैंस जिसका विषय किसानों की आय दोगुणा करना था, में यह बात विशेषज्ञों की ओर से उभर कर आई कि अगर कृषि में इन तकनीकों को छोड़ कर लागत घटाई जाए तो देश आज़ादी से पूर्व तरह खाने के लिए अनाज भी दूसरे देशों से मंगवाने के लिए मजबूर हो जाएगा। विशेषज्ञों ने कहा कि इस समय 25-32 प्रतिशत कृषि उत्पादन कीड़े-मकौड़े और बीमारियों के कारण खराब हो जाता है, जिसको कीटनाशकों का  योग्य और सही इस्तेमाल करके बचाया जा सकता है। और उत्पादकता और बढ़ाई जा सकती है। जो कीटनाशकों के प्रयोग की निंदा के लिए कुछ तत्वों की ओर से मुहिम चलाई जा रही है, वह कृषि विकास पक्ष से योग्य नहीं। कीटनाशकों का प्रयोग फसलों की सुरक्षा के लिए और उत्पादकता बढ़ाने के लिए ज़रूरी है, लेकिन इससे अहम उनका सही और सूझवान प्रयोग करना है। इस संबंधी किसानों को सही, तकनीकों की जानकारी देना उत्पादकों, खपतकारों, प्रसार सेवा और उद्योग का कर्त्तव्य बनता है, ताकि जो कीमियाई खाद और कीटनाशक पर्यावरण में प्रदूषण न ला सके और मानव जीवन को नक्सान पहुंचाने के लिए प्रभावित न हो। यह एक अनुमान है कि पंजाब में ज़रूरत से अधिक मात्राओं में कीमियाई खाद और कीटनाशक प्रयोग किए जाते हैं। पंजाब के गेहूं की उत्पादकता विश्व के सभी गेहूं पैदा करने वाले देशों के मुकाबले में अधिक होने के बावजूद कीमियाई खादों की खपत में पंजाब से उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ऊपर आते हैं और कीटनाशकों की खपत उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में पंजाब से अधिक है। कीटनाशकों का अंश भी पंजाब के उत्पादन में प्रमाणित सीमा से अधिक नहीं मिला। प्रधानमंत्री की ओर से जो नाइट्रोजन खाद 50 प्रतिशत कम करने का नारा दिया गया है, विशेषज्ञों के अनुसार उससे उत्पादन और उत्पादकता कम होनी ज़रूरी है। फसलें जो ज़मीन में नाइट्रोजन लेती हैं अगर वापिस न दी जाए तो ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बुरी तरह प्रभावित होगी।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादकों का निर्यात बढ़ाने की ज़रूरत है। भारत से पिछले वर्ष कृषि उत्पादकों की 2.58 लाख करोड़ रुपए का निर्यात और 1.63 लाख करोड़ रुपए की आयात की गई जबकि वर्ष 2013-14 में (जब मोदी सरकार सत्ता में आई) यह क्रमवार 2.92 लाख करोड़ रुपए और 1.02 लाख करोड़ रुपए थी। इसी तरह कृषि उत्पादक के निर्यात में आई जो कमी हो रही है वह लाभदायक नहीं। निर्यात बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि जो विदेशों से पदार्थ आयात किए जाते हैं उनकी पड़ताल और परख की सुविधाएं भारत की बंदरगाहों और विदेशी स्तरों के कड़े स्तर पर हो। भारत की ओर से निर्यात की गई बासमती एम.आर.एल. की सीमा बढ़ाकर यूरोपियन यूनियन में अस्वीकृत कर दी गई, जिसने पंजाब के बासमती उत्पादकों की वटत को मंडी में मंदा लाकर प्रभावित किया। भारत सरकार को इस संबंधी योग्य कार्रवाई करनी चाहिए।
राष्ट्रीय कांफ्रैंस में विशेषज्ञों ने साबित किया कि कीटनाशकों और एग्रो-कैमिकल्ज़ के कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में पाए गए योगदान को ज़रूरी मान्यता नहीं दी गई। क्योंकि किसानों की ओर से इनका प्रयोग सही ढंग और मात्रा में समय सिर नहीं किया जा रहा और नकली ़गैर स्तरीय कीटनाशकों की मंडी में भरमार है। इसलिए कृषि विभाग और कृषि प्रसार सेवा को हरकत में आने की ज़रूरत है। योग्य कीटनाशकों के प्रयोग की अहमियत कृषि मज़दूरों के कम होने के कारण किसानों के लिए और भी अधिक हो गई है। उनको कीटनाशकों और नदीन नाशकों का प्रयोग लाभप्रद कृषि पक्ष से करना पड़ रहा है। भारत का कृषि योग्य रकबा 1410 लाख हैक्टेयर होने के बावजूद यह विश्व में प्रयोग किए जा रहे कीटनाशकों का केवल 1.7 प्रतिशत ही प्रयोग कर रहा है। जबकि यह चीन को छोड़ कर कृषि उत्पादन के पक्ष से विश्व में दूसरे नम्बर पर है। जापान में कृषि योग्य रकबा केवल 5 मिलियन हैक्टेयर है, परन्तु वहां लगभग भारत जितने ही कीटनाशक प्रयोग किए जाते हैं। चीन, अमरीका, ब्राज़ील, फ्रांस और स्पेन जैसे देश भारत से कहीं अधिक कीटनाशक प्रयोग कर रहे हैं, जबकि उनका कृषि योग्य रकबा भारत के मुकाबले कम है। अमरीका में अकेली कैलीफोर्निया स्टेट एक लाख टन कीटनाशक प्रयोग कर रही है। जबकि भारत की खपत 60,000 टन है। आई.पी.एम. विधि का प्रयोग भी बहुत लाभदायक है लेकिन इसको गलत समझा जा रहा है कि इसमें कीटनाशकों के प्रयोग की स्वीकृति नहीं। आई.पी.एम. के द्वारा प्राकृतिक साधन व सही तौर पर कम से कम कीटनाशक प्रयोग कर फसलों की पैदावार किए जाना ज़रूरी है। यदि नकली कीटनाशक देश में 5 हज़ार करोड़ रुपए तक के वार्षिक बिक रहे हैं, उन पर काबू पाना ज़रूरी है। इस समय कीटनाशकों और एग्रो-कैमिकल्ज़ के प्रयोग संबंधी किसानों को सही जानकारी उपलब्ध नहीं होती। वह डीलरों और डिस्ट्रीब्यूटरों की सलाह लेने के लिए मजबूर हैं। डीलरों और डिस्ट्रीब्यूटरों को कृषि विभाग यूनिवर्सिटियों में प्रशिक्षण देकर किसानों को एग्रो कैमिकल्ज़ संबंधी सही जानकारी देने के योग्य बनाने की ज़रूरत है। 
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