आरक्षण की उलझन

देश भर में किसी न किसी रूप में आरक्षण की मांग को लेकर बड़ी अशांति पैदा हो चुकी है। इसका उदाहरण गत दिनों महाराष्ट्र में मराठों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे आंदोलनकारियों से मिलता है, जिन्होंने राज्य के बहुत सारे ज़िलों में जबरदस्त प्रदर्शन किए हैं। चाहे उन्होंने यह ऐलान किया था कि यह आंदोलन शांतिपूर्ण होंगे परन्तु बहुत सारे स्थानों पर बसों की तोड़-फोड़ की गई और सड़कों पर गाड़ियों को जलते टायरों के साथ आग लगाई गई और पुलिस वैनों को भी जलाया गया, जिससे सैकड़ों ही वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। 
ऐसा ही राजस्थान तथा देश के कुछ अन्य राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि आजकल सभी समुदायों में बड़ी सीमा तक बेरोज़गारी बढ़ चकी है। बड़ी संख्या में लोग गरीबी भरा जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। सभी समुदायों में ऐसी स्थिति बन जाने के कारण उनमें अशांति पैदा हो रही है तथा वह भी अनुसूचित जातियों तथा कबीलों की तरह अपने लिए आरक्षण की मांग करने लगे हैं। जिन जाति-बिरादरियों को आरक्षण के अधिकार मिले हुए हैं, वह किसी भी तरह कुछ भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी तरफ अन्य जाति बिरादरियों के लोग उठ खड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति ने समूचे समाज में आर्थिक और सामाजिक टकराव पैदा कर दिए हैं, जो दिन-प्रतिदिन गम्भीर होते जा रहे हैं। कल जो समुदाय अपनी क्षमता और खुशहाली पर गर्व करते थे, आज वह भी आरक्षण की मांग करने लगे हैं। ऐसा कुछ ही महाराष्ट्र में मराठा क्रांति मोर्चे द्वारा किया जा रहा है। यह क्रांति मोर्चा नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थाओं में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है। अब तक इस आंदोलन में कई जानें भी जा चुकी हैं। राजनीतिज्ञों ने भी समय-समय पर वोट लेने के लिए ऐसे वायदे किए, जो बाद में वफा होने बेहद मुश्किल थे। उदाहरण के तौर पर जून 2014 में कांग्रेस तथा नैशनल कांग्रेस पार्टी ने असैंबली चुनावों को देखते हुए मराठों और मुसलमानों के लिए आरक्षण का अलग कोटा देने का ऐलान किया था। मराठों को 16 प्रतिशत और मुसलमानों को 5 प्रतिशत कोटा नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में देने का ऐलान किया गया, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण 50 प्रतिशत तक सीमित रखने का आदेश दिया गया था। इस ऐलान के बाद मुंबई उच्च न्यायालय ने सरकार के इस ऐलान पर रोक लगा दी थी। चाहे महाराष्ट्र असैंबली ने भी इस कोटे को बहाल करने संबंधी प्रस्ताव पास किया परन्तु यह रोक आज तक जारी है। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय काफी खुशहाल माना जाता रहा है। मराठा समुदाय राज्य में 35 प्रतिशत के लगभग है। इस समुदाय के पास 75 प्रतिशत के लगभग भूमि है। राज्य की 105 चीनी मिलों में से 86 चीनी मिलें मराठों के पास हैं। आज भी वह 55 प्रतिशत शिक्षा संस्थाओं और 70 प्रतिशत सहकारी संस्थाओं पर काबिज़ हैं। महाराष्ट्र में अब तक 18 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय के ही बन चुके हैं। परन्तु क्योंकि समूचे रूप में इस समुदाय के भी आम लोग मुश्किलों- तकलीफों वाला जीवन जी रहे हैं। इसीलिए इस समुदाय ने भी कुछ दशक पूर्व अन्य पिछड़े वर्गों में अपनी भागीदारी की मांग की थी। चाहे इस मांग को अब तक नहीं माना गया, परन्तु इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप आरक्षण का लाभ उठा रहे पिछड़े वर्गों ने भी एकजुट होकर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करनी शुरू कर दी है, जिससे राज्य में और भी तनाव बढ़ता जा रहा है। यह बात अब पूरी तरह स्पष्ट होनी शुरू हो गई है कि आरक्षण की मांग ने समाज में बड़े बंटवारों को जन्म दिया है। इसीलिए अब आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग उठ रही है। किसी भी सरकार के लिए इस समस्या से निपटना आसान नहीं है। समय के बीतने से और अधिक उलझ चुकी और पेचीदा बन गई इस स्थिति का हल ढूंढना किसी भी सरकार और समाज के लिए एक ऐसी चुनौती बन चुकी है, जिसका हल आसानी से निकाला जा सकना बेहद मुश्किल होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द