पंजाब की आर्थिक दुर्दशा की हकीकत

जब से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने पंजाब में सत्ता संभाली है, उनके वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल  को एक ही शिकायत है कि उनकी पूर्ववर्ती बादल सरकार अपने अंधाधुंध अपव्यय अथवा आवंटित धनराशि के विकेन्द्रीकरण से पंजाब की आर्थिक दशा शोचनीय बना गई। उसके किसानों के सिर पर 80,000 करोड़ रुपए या राज्य पर सवा लाख करोड़ का कज़र् बोझ लदा है। इसके ब्याज़ अथवा मूलधन भुगतान का कोई प्रबंध नहीं। इस सरकार के शासनकाल में दो-दो आर्थिक बजट प्रस्तुत हो गए, लेकिन किसी भी बजट में नई विकास उड़ान भरने के लिए पंख नहीं तोलती। निर्माण में लगे ठेकेदारों के ज़रूरी भुगतान नहीं हो रहे, विकास कार्य अधर में लटके हुए हैं। नई घोषणाएं होती हैं तो ऐसी कि जिनमें से जनकल्याण की चिन्ता का आभास तो हो, लेकिन सरकारी खजाने से पैसा न लगे। 
किसी नई परियोजना की घोषणा होती है, तो उसे सार्वजनिक निजी भागीदारी के नाम पर निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया जाता है। नई सरकार ने बीते वर्ष में कई बार मंशा जाहिर की कि उनके प्रशासन युग में पर्यटन व्यवसाय में नई जान फूंकी जायेगी। ऐतिहासिक धरोहरों की इस तरह सार-सम्भाल की जायेगी कि देश-विदेश के पर्यटक इनकी तरफ खिंचे चले आयेंगे लेकिन अपनी एक नई घोषणा में सरकार ने सैनिक की शौर्य गाथा के प्रतीक तीन ऐतिहासिक स्मारकों को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया है। वही उसका रख-रखाव करेंगे और पर्यटकों को आकर्षित करेंगे। अगर यही रुख चलता रहा तो धीरे-धीरे पर्यटक विभाग की सभी धरोहर, उनका रख-रखाव, उनका पर्यटकों से कमाया राजस्व सब निजी क्षेत्र के हवाले हो जायेगा। राज्य की अन्य अधूरी परियोजना की तरह पर्यटन से अतिरिक्त कमाई करने की इच्छा धूमिल हो जायेगी।
यही नहीं, जहां तक सरकार की अपनी कर संग्रह मशीनरी चुस्त करके अधिक कर राजस्व उगाहने का संबंध था, वह इच्छा भी पूरी नहीं हो सकी। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल देश के राज्यों के पहले वित्त मंत्रियों में से एक थे, जिन्होंने जी.एस.टी. लगाने का स्वागत किया था। मनप्रीत का विचार था कि जी.एस.टी. के लगने के बाद राज्य को केन्द्रीय पूल में से मिलने वाले राजस्व पूल में इतनी वृद्धि हो जायेगी कि पंजाब अपने आर्थिक संकट से उभर आयेगा। लेकिन इसे पंजाब की कर संग्रह मशीनरी की नाकामी कहिये या जी.एस.टी. प्रणाली की जटिलता। आज पंजाब ही जी.एस.टी. द्वारा अपनी आशाओं पर पूरा न उतर पाने का सबसे बड़ा आलोचक है। अपनी आर्थिक मंदहाली या खाली खजाने का एक बड़ा कारण वह जी.एस.टी. से मिलने वाला अपर्याप्त योगदान बताता है। इसके अतिरिक्त जी.एस.टी. का यह अंशदान द्विमासिक अथवा त्रैमासिक आधार पर होता है। जिस महीने राज्य को यह भुगतान नहीं मिलता, उसके खजाने में मुर्दनी छा जाती है, विकास यात्रा के चलते रहने की बात तो छोड़िये, यहां तो वेतन और पैंशन भुगतान समय पर करने के लाले पड़ जाते हैं। अभी इसीलिए पंजाब के सफाई कर्मचारी संघ ने भी हड़ताल कर रखी थी कि उनका भुगतान समय पर नहीं मिलता। चाहे अब सरकारी दिलासे पर हड़ताल टूट गई है। वित्त मंत्री जी.एस.टी. पूल से अपने लिए मासिक भुगतान मांग रहे हैं।
गद्दी संभालने के बाद अमरेन्द्र सरकार न जाने कितनी बार केन्द्र से पंजाब के लिए विशेष आर्थिक पैकेज मांग चुकी है, नहीं मिला। इसके बाद सरहदी राज्य होने के कारण सरकार ने अपने सरहदी गांवों के उजड़े हुए लोगों के लिए आर्थिक पैकेज मांगा वह भी नहीं मिला, बल्कि अब तो केन्द्र ने किसी भी राज्य को विशेष दर्जा देकर उन्हें आर्थिक पैकेज देने की परम्परा ही खत्म कर दी है, लेकिन दूसरी ओर हिमाचल की भाजपा की नई जयराम ठाकुर सरकार है, जिसने अपनी पारी शुरू करते ही 30 नई विकास योजनाओं को प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि उसे केन्द्रीय सरकार की उदार सहायता का भरोसा था। अभी भी उन्होंने रोहतांग टनल योजना को पूरा करने का प्रण किया है, यहां भी भरोसा वही केन्द्र से उन्हें उदारता से मिलने वाला अनुदान है। लेकिन पंजाब को अब अपने ही संसाधनों पर निर्भर करना  होगा। सत्ता संभालते ही अमरेन्द्र सिंह ने साढ़े दस लाख, दो एकड़ वाले किसानों के लिए दो लाख रुपए की कज़र् माफी घोषित की थी। लेकिन राजस्व की कमी के कारण केवल कुछ हज़ार किसानों को ही यह ऋण माफी पत्र अभी तक मिले। हां, ऋण माफी की उम्मीद में किसानों ने सहकारी बैंकों को अपनी ऋण वापसी की किस्तों का भुगतान अवश्य बंद कर दिया, जिसके कारण राज्य में सहकारी बैंकों के ढांचे को गहरा आघात लगा है।
दूसरी ओर अभी तक राज्य में नौकरी दे सकने की क्षमता रखने वाले लघु और कुटीर उद्योगों के ढांचे को भी पुनर्जीवित नहीं किया जा सका। हां, कुछ संभावना रहित रोज़गार मेले अवश्य निजी निवेशकों के सहयोग से सरकार लगाती रहती है, लेकिन इससे बेकारी की समस्या का विंध्याचल अपनी जगह से नहीं मिल पाता।