प्रधानमंत्री पद के लिए माया-ममता की दौड़ !

बैंगलोर में कुमार स्वामी के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में महागठबंधन के दर्शन हुए थे। मंच पर माया, ममता और सोनिया देश की तीनों महा-नेत्रियां एक साथ दिखाई दीं। एक बार तो ऐसा लगा कि अब यह त्रिवेणी सफलता के रास्ते तलाश कर लेंगी परन्तु प्रधानमंत्री का पद प्राप्त करने हेतु एक-दूसरे को गच्चा देने में कोई पीछे नहीं रहना चाहती। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के निकटतम सूत्रों से यह बात बाहर आई कि कांग्रेस किसी भी नेता को जो नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटा सकने के काबिल हो, समर्थन देने को तैयार हैं। बात यहीं से बिगड़ गई। पहले बहन मायावती ने अपने आप को महागठबंधन की महा-नायिका सिद्ध करने के लिए सक्रियता दिखानी आरम्भ कर दी। 
हालांकि वह जानती हैं कि सन् 2014 के संसदीय चुनाव में वह अपनी बहुजन समाज पार्टी का एक भी प्रत्याशी संसद में न भेज पाईं, परन्तु न जाने उन्हें कहां से यह आभास मिल गया कि नरेन्द्र मोदी की सरकार के नीचे से ज़मीन खिसक रही है, इसलिए प्रधानमंत्री पद प्राप्त करना सुगम हो गया जबकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा भी कहा था कि भारतीय विपक्षी दल सन् 2019 के चुनाव में जीतने की आशा छोड़ दें और सन् 2024 के चुनाव की तैयारी करें। हम बहन मायावती को सन् 2003 में समाजवादी पार्टी द्वारा उन पर लगाए गए लांछनों की याद कराकर थोड़ा-सा यह बताना चाहते हैं कि राजनीति में अगले पल क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। इस खेल में न कोई सगा है और न कोई विरोधी।
ममता बैनर्जी दिल्ली में उन सभी नेताओं से मिल रही हैं, जिनसे उन्हें समर्थन की उम्मीद है। आसाम में राष्ट्रीय पंजीकृत नागरिक यानि एन.आर.सी. के मामले पर वह खुलकर बोल रही हैं और कह रही हैं कि यदि इस बात को आगे बढ़ाया तो गृह युद्ध भी हो सकता है। वह भूल गई हैं कि सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने बंगलादेश से घुसपैठ करके आए लोगों पर कार्यवाही करनी चाही थी और इसी के लिए सन् 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसके आदेश अनुसार मोदी सरकार ने पग उठाए। यह बात तो सभी जानते हैं कि दीदी सदा से हिन्दू समाज के विरुद्ध नज़र आती रहीं। कभी दुर्गा विसर्जन तथा अन्य हिन्दुओं की शोभा यात्राओं के रास्ते में रोड़े अटकाती रहीं। जब माल्दा के एक मुस्लिम नेता ने यहां तक कह दिया कि यह क्षेत्र मिन्नी पाकिस्तान है तब भी दीदी ने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया। गत दिनों भाजपा के कई कार्यकर्ता मौत के घाट उतारे गए तब भी ममता बैनर्जी ने कोई प्रतिक्रिया देने से अपने आप को दूर रखा। 
स्वर्णों को अपमानित करने का उन्होंने कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दिया। शिखर पर पहुंचने के लिए सर्वधर्म सम्भाव की नीति उन्होंने सीखी नहीं। युवा विचारों को कभी सामने नहीं आने दिया। बाबुल सुप्रियो और रूपा गांगुली जो भाजपा के सम्मानीय नेता हैं, उन्हें भी परेशान करने की साज़िशें होती रहीं। यहीं पर ही बस नहीं जो दीदी दिल्ली में अन्ना हज़ारे के साथ मिलकर रामलीला मैदान में रैली कर सकती हैं, उसने भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय प्रधान अमित शाह को बंगाल में रैली करने की इजाज़त नहीं दी। यदि दी भी तो कई तरह की रुकावटें पैदा कीं। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक विशाल रैली की उसमें भी बाहर से आने वाले लोगों को रैली में शामिल होने से रोका जाता रहा। राजनीति में यह सब चलता है, परन्तु जिसने देश का नेतृत्व करना हो, जो देश की प्रधानमंत्री बनना चाहती हो, उसे सबका साथ, सब का विकास कहना ही होता है। ममता बैनर्जी केवल मुस्लिम तुष्टिकरण करके इस ऊंचे पद तक पहुंच सकेंगी, इस पर हमें  संदेह है। महागठबंधन की गांठें अभी से ढीली हो रही हैं। कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी यह सब देख रही हैं। एक राष्ट्रीय दल की यह बेबसी राजनीति में सोच-समझ रखने वालों के लिए हैरान करने वाली बात है। हमें यह भी अनुभव हो रहा है कि जब टिकटों के बांटने की बारी आएगी तब महागठबंधन में कई दल आंख ओझल कर दिए जाएंगे और कांग्रेस बेचारगी के आलम से गुजरेगी। अभी लड़ाई आरम्भ हुई है। बहन मायावती और दीदी ममता बैनर्जी अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र तैयार कर रही हैं। मायावती के पास लोकसभा का सदस्य नहीं है तो दीदी बैनर्जी के पास चौंतीस सांसद हैं। बहन मायावती और ममता बैनर्जी दोनों का स्वभाव गुसैला और अहंकार से भरा है और इनके सामने भाजपा का नेतृत्व धीरे-धीरे फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। माया-ममता कब तक दौड़ेंगी, यह देखने की बात है। बसपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता अंतत: थक हार कर बैठ जाएंगे। किसी ने कहा है कि ‘माया-ममता’ दोनों खड़ीं काके लागूं पाय’ एक जैसी सोच, एक जैसा लोभ। अंत क्या होगा, देखने की बात है।