मानवता के प्रति अपराध हुआ था हिरोशिमा में

6 अगस्त 1945, स्थान जापान का हिरोशिमा नगर, समय प्रात: 8 बजकर 15 मिनट। दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और अमरीका के बमवर्षक बी. 29 विमान जापान के विभिन्न नगरों को अपना निशाना बना रहे थे। कब बम वर्षा होने लगे, इसका कोई पता नहीं था। फिर भी हिरोशिमा में दिन की शुरूआत शांतिपूर्ण हुई थी। गृहणियां नाश्ता बना रही थी। बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे।मजदूर कारखानों में पहुंचकर अपना काम प्रारंभ कर चुके थे। हवाई सुरक्षादल के स्वयंसेवक निगरानी चौकियों से उतर कर विश्राम करने चले गये थे तथा राष्ट्रीय सुरक्षा दल के कार्यकर्ता और उच्च कक्षाओं के छात्र नगर की घनी बस्तियों में मकान तोड़ने के लिए इस कारण इकट्ठे हो रहे थे क्योंकि नगरपालिका ने फैसला किया था कि नगर की घनी आबादी वाले क्षेत्रों के मकान गिरा दिये जायें जिससे शत्रु द्वारा की जाने वाली बमबारी से लगने वाली आग का प्रभावशाली ढंग से मुकाबला किया जा सके। यह सब चल ही रहा था कि जापानी रेडियो ने यह सूचना प्रसारित की कि शत्रु के तीन बम-वर्षक विमान सेजो नगर के ऊपर देखे गये हैं तथा वे पश्चिम में हिरोशिमा की ओर बढ़ रहे हैं, अत: हिरोशिमा के लोग पूरी सावधानी बरतें। रेडियो ने यह सूचना दुहरानी चाही परन्तु वह दुहराई न जा सकी और एक भयानक धमाके से पूरा हिरोशिमा कांप उठा, धमाका होने के अगले ही क्षण पूरा नगर लगभग छह हजार डिग्री की गरमी से जलने लगा, एक विशेष प्रकार की भयानक आग ने कुछ क्षणों के लिए सारे शहर को अपनी लपेट में ले लिया। इसके उपरान्त आसमान में कई हजार मीटर की ऊंचाई पर बादल छाकर रेडियो-धर्मिता उत्सर्जित करने लगे जिसके परिणामस्वरूप तेज हवा के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी परन्तु इस वर्षा में पानी के स्थान पर तेजाब की तरह का तरल पदार्थ बरस रहा था। यह तेजाबी वर्षा लगभग दो घंटे तक होती रही। परिणामस्वरूप जापान का एक अति सुन्दर नगर हिरोशिमा श्मशान में तब्दील हो गया। चालीस हजार कोरियाई मजदूरों के साथ विस्फोट केन्द्र और उसके आसपास के सभी लोग विलुप्त हो गये और चार से पांच किलोमीटर की परिधि में रहने वाले लोग बुरी तरह घायल हो गये। बहु-संख्यक घायल अंधे और बहरे हो गये थे। उनमें से बहुत से लोगों की चमड़ी भी पूरी तरह जल गई थी जिस कारण वे चीखते-चिल्लाते मांस के लोथड़ों की तरह बहुत दिनों तक जिंदा रहे परन्तु उन्हें अंत में मरना ही पड़ा क्योंकि लगभग अस्सी प्रतिशत घायलों को तमाम कोशिशों के बाद भी बचाया नहीं जा सका था। हां, उस भीषण त्रासदी की कहानी सुनाने के लिए कुछ लोग दो-तीन साल तक अवश्य जीवित बचे रहे। यदि वे लोग जीवित न रहते तो हमें यह कौन बताता कि उस तेजाबी वर्षा की एक-एक बूंद से शरीर में तीर जैसी चुभन महसूस होती थी और ऐसी पीड़ा होती थी जैसे शरीर से मांस नोचा जा रहा हो। हिरोशिमा बम विस्फोट के ठीक तीसरे दिन क्रूर दानवों ने जापान के दूसरे नगर नागासाकी पर भी कहर बरपाया जिसमें लगभग चालीस हजार लोगों ने अपने प्राण गंवाये और पच्चीस हजार लोग बुरी तरह घायल हुए। हिरोशिमा में हुई जान हानि का आकलन भी म्युनिसिपल कमेटी हिरोशिमा ने अगस्त 1946 में प्रकाशित किया था। इसके अनुसार हिरोशिमा अणु बम विस्फोट में 1,18,661 लोगों की मौत हुई थी, 79,130 लाख घायल हुए थे और 36,661 लोग लापता थे। इसके अलावा ये दोनों नगर परमाणु विस्फोट के कारण हुए परमाणु असंतुलन के दुष्प्रभाव को लम्बे समय तक झेलते रहे हैं। उनको पूरी तरह अब भी मुक्त नहीं कहा जा सकता। अब जापानियों ने अपने परिश्रम से हिरोशिमा की सुंदरता को नया रूप दे दिया है। आज यह नगर विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण शांति स्मारक भी है क्योंकि परमाणु अस्त्र-शस्त्र कितने विनाशक हो सकते हैं, हिरोशिमा इसका जीता-जागता उदाहरण है। वह विश्व की आत्मा को सदैव झकझोरता रहेगा परन्तु जिनको हिरोशिमा से सबक लेकर आत्म-चिंतन करना चाहिए था, वे आत्म-चिंतन शून्य हैं। वे सिर्फ यह चाहते हैं सी. टी. बी. टी. के द्वारा विश्व के बहुसंख्यक राष्ट्र अपने आप को परमाणु अस्त्र-शस्त्रों से मुक्त रखने का हलफ उठायें लेकिन अमरीका जो परमाणु शक्तियों का सबसे बड़ा दादा है, का यह प्रयास पूरी तरह पक्षपातपूर्ण है क्योंकि उसके पास परमाणु नि:शस्त्रीकरण का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है जबकि परमाणु नि:शस्त्रीकरण के बिना संसार का कल्याण संभव नहीं है। यह पहल अमरीका को सबसे पहले खुद करनी चाहिए क्योंकि हिरोशिमा में मानवता को अणु विस्फोट से कुचलने का एकमात्र अपराधी वही है और भविष्य में वह इस प्रकार के अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।

(युवराज)