जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए  कड़े और प्रभावी कानून ज़रूरी

अब स्वां नदी के जल प्रदूषण से हज़ारों ही मछलियों के मर जाने के समाचार ने एक बार फिर दरियाओं के जल के बेहद प्रदूषित होते जाने के बारे में गम्भीर चिंता पैदा की है। कुछ महीने पूर्व इसी ही तरह का समाचार ब्यास दरिया में लाखों ही मछलियों और जल-जीवों के मरने का आया था। नदियों, नालों, दरियाओं और नहरों के जल के दूषित होने की कहानी काफी लम्बी और पुरानी हो चुकी है। इसके बारे में अलग-अलग समय हर पक्ष से अनेक प्रयास भी हुए। केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा भी अपनी सक्रियता दिखाई गई, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि स्थिति में सुधार आने की बजाय यह और भी खराब होती जा रही है। इसका कारण नई जीवनशैली है, जिसमें उद्योगों का बड़ा हाथ है। 
सरकार की नीति के अनुसार उद्योगों को उत्साहित किया जाना ज़रूरी है। कुछ पहाड़ी राज्यों को इस संबंधी बड़ी रियायतें दी गई हैं, ताकि वहां नये उद्योगों को उत्साहित किया जा सके। चाहे उद्योगों का विकास ज़रूरी है, परन्तु इनके संबंध में नियम बनाये जाने और उनका सख्ती से पालन करना भी ज़रूरी है। यदि कुछ उद्योगों से प्रदूषण अधिक फैलता है, तो उसको कैसे सीमित करना है, यह और भी आवश्यक हो जाता है। यूरोप में जब औद्योगिक क्रांति आई थी, तो अचानक फैले प्रदूषण से लोगों का दम घुटने लगा था और वह अनेक तरह की बीमारियों का शिकार हो गए थे। एक तरह से फैला यह प्रदूषण महामारी का रूप धारण करने लगा था। परन्तु बाद में इस पक्ष से पूरी तरह सचेत होकर अनेक ही तरह के कानून बनाये गए। प्रदूषण को काबू में रखने के लिए नई तकनीकें और योजनाएं बनाई गईं। उनका सख्ती से पालन भी किया गया, इसीलिए आज यूरोप के अधिकतर देशों में इस समस्या को काफी सीमा तक कम कर लिया गया है। ऐसे दृष्टिकोण की ही ज़रूरत अब भारत जैसे विकासशील देश के लिए है। उदाहरण के तौर पर स्वां नदी हिमाचल प्रदेश से निकलती हुई पंजाब के सतलुज दरिया में मिलती है। इस पहाड़ी राज्य को मिली रियायतों के कारण पंजाब के निकट दरियाओं के किनारों पर उद्योग विकसित हो गए हैं। इन उद्योगों में प्रदूषण के प्रति अनुशासन कैसे कायम करना है, इसके बारे में अच्छी नीतियां नहीं बनाई जा सकीं। हिमाचल द्वारा स्वां नदी के रास्ते उद्योगों का रासायनिक जल सतलुज दरिया में मिल जाता है। हिमाचल के ही पंजाब के निकटतम ग्वालथाई, मैहतपुर और टाहलीवाल में लगी फैक्ट्रियों ने इस नदी के जल को प्रदूषित कर दिया है। कंडी क्षेत्र के साथ लगती फैक्ट्रियों ने भी जल का ऐसा ही हश्र किया है। अधिकतर क्षेत्रों में लोग अभी भी पशुओं के लिए और अपने पीने के लिए इन नदियों और दरियाओं पर निर्भर करते हैं। इस तरह हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान से गुजरता पानी बड़ी सीमा तक पीने योग्य या इस्तेमाल करने लायक नहीं रहा। इस संबंधी लगभग चार वर्ष पूर्व राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा एक याचिका भी दायर की गई थी, जिस पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह निर्देश दिया था कि इस पूरे प्रबंध के लिए एक निगरान कमेटी बनाई जाए। उसमें अच्छे इंजीनियर, वैज्ञानिक तथा संबंधित विभागों के बड़े अधिकारी शामिल किए जाएं तथा इसकी रिपोर्ट इसी वर्ष सामने लाई जाए, क्योंकि ऐसा प्रदूषण मानव के जीने और रहने के बुनियादी अधिकार पर असर डालता है।आज राज्य भर में ज़मीनी, नहरी और दरियाओं के जल की परख से बहुत ही नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जो मनुष्य को पूरी तरह खोखला करने में सक्षम हैं। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल, राष्ट्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और संबंधित राज्यों के प्रदूषण कंट्रोल बोर्डों को एक साझी रणनीति के तहत इस संबंधी एक जोरदार तथा प्रभावी मुहिम शुरू करनी चाहिए, ताकि किसी न किसी तरह इस प्रदूषित जल रूपी अभिशाप पर काबू पाया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द