इमरान खान हर असंभव को संभव बनाने वाला जादूगर

लड़कियां क्रिकेट मैदान में सिर्फ  उन्हें गेंदबाजी करते हुए देखने के लिए जाने लगीं। उनसे पहले यह श्रेय सिर्फ भारतीय कप्तान मंसूर अली खान पटौदी को प्राप्त था कि लड़कियां उन्हें टाइगर की भांति फील्डिंग करते हुए देखने के लिए मैदान में जाती थीं। इमरान टाइगर से एक कदम आगे निकले- वह क्रिकेट के पहले प्ले बॉय बन गये। अखबारों में चर्चा हुई कि भारतीय सिने अभिनेत्री जीनत अमान के उनसे अंतरंग संबंध हैं।  इसके कुछ समय बाद इमरान की आत्मकथा प्रकाशित हुई तो एक और खबर सुर्खी बनी- आत्मकथा के प्रकाशन से पहले जीनत अमान को डर था कि कहीं उनका उल्लेख आपत्तिजनक संदर्र्भो में न किया गया हो, लेकिन पुस्तक के छपने के बाद उन्हें बहुत अफसोस हुआ कि पूरी किताब में कहीं उनका नाम तक नहीं था। नौ वर्ष की आयु में क्रिकेटर बनने का निर्णय लेने वाले इमरान का कहना है, ‘नाकामी आपको आत्म मंथन का अवसर प्रदान करती है। अल्लाह आपको असफलता से सिखाता है, सफलता से नहीं। मैंने नाकामी के बावजूद अपने सपने को साकार करने का प्रयास जारी रखा, क्रिकेट में भी और राजनीति में भी। मैं पहले चुनाव में एक भी सीट न जीत सका, दूसरे में मरते-मरते बचा और अब प्रधानमंत्री बनने की दहलीज पर हूं।’ इंग्लैंड में पहली बार टैस्ट शृंखला जीतने के बाद इमरान ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया। लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने उनसे पुन: टीम की बागडोर संभालने का ‘आग्रह’ करते हुए कहा कि वह उत्तर में ‘न’ नहीं सुनेंगे। तभी कैंसर से इमरान की माता का निधन हो गया और उन्हें एहसास हुआ कि पाकिस्तान में कैंसर के उपचार के लिए कोई सुविधा ही नहीं है। उन्होंने मां शौकत खानम की याद में कैंसर अस्पताल बनाने का निश्चय किया, जिसमें मुफ्त इलाज हो सके। इसी सपने को लेकर वह क्रिकेट मैदान पर फिर लौटे, लेकिन उनकी टीम 1992 विश्व कप के पहले तीन मैच हार गई और चौथे में मात्र 73 रन पर आऊट हो गई थी कि वर्षा ने मैच बाधित किया जिससे पाकिस्तान को एक अंक व जीवनदान मिल गया।  इमरान ने अपने साथियों को प्रेरित किया और पाकिस्तान आश्चर्यजनक रूप से विश्व विजेता बन गया। इस सफलता से इमरान को लगा कि अब कैंसर अस्पताल के लिए फंडस आ जायेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अस्पताल को बनने में दस वर्ष का समय लगा और उसे चलाने के लिए इमरान को सड़कों पर भीख मांगनी पड़ी, जिससे उन्हें अपने देश के लोगों की समस्याओं को जानने व समझने का अवसर मिला, जिनके समाधान के लिए उन्होंने सियासत में प्रवेश करने का निर्णय लिया। अब 22 वर्ष के संघर्ष के बाद वह अपने देशवासियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की स्थिति में हैं, जो उनकी कभी न हार मानने की जिद्द से ही संभव हो सका है या शहरयार के शब्दों में ‘मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये’।