मानसून सत्र

संसद के मानसून सत्र को इस पक्ष से सफल कहा जा सकता है कि दर्जन भर बिल पास किए गए और इसी सत्र में हैरानीजनक बात यह हुई है कि राज्यसभा के उप-सभापति की सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की झोली में जा पड़ी। चाहे राज्यसभा में इसका बहुमत नहीं है, परन्तु इसके बावजूद सरकार के कई महत्वपूर्ण बिल पास होने से रह गए हैं, क्योंकि वह राज्यसभा में इनको पास करवाने के लिए सदस्यों के आंकलनों के चक्कर में फंसकर रह गई। इसके अलावा दो महत्वपूर्ण मामले संसद के ध्यान में लाए गए, उनमें से एक था अनुसूचित जाति/जन-जाति (एस.सी./एस.टी.) कानून, जिस संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए इस कानून को पहले की तरह ही रहने दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंधी फैसला दिया था कि यदि दलित समुदाय के किसी व्यक्ति द्वारा यह शिकायत आती है कि उसके साथ दलित होने के कारण कोई ज्यादती की गई है या उसके लिए जातिसूचक शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, तो इस संबंधी पहले डी.एस.पी. स्तर का अधिकारी जांच करेगा और फिर एफ.आई.आर. दर्ज करके दोषी की गिरफ्तारी होगी। अब पहले की तरह ही इस एक्ट अधीन शिकायत के बाद गिरफ्तारी हो सकती है। इससे यह प्रभाव अवश्य स्पष्ट हो गया कि आगामी समय में आरक्षण संबंधी किसी भी तरह का बड़ा बदलाव होने की सम्भावना नहीं है। यह अब वोट राजनीति का मुद्दा बन चुका है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक बहुत ही स्पष्ट रवैया धारण किया है, जिसमें उसने तीन तलाक के बिल को राज्यसभा से पास करवाने के लिए पूरी शक्ति लगाई। यह बिल गत वर्ष दिसम्बर के महीने में लोकसभा में पास कर दिया गया था, क्योंकि निचले सदन में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार को बहुमत प्राप्त है। उस समय भी अब स्वयं को धर्म-निरपेक्ष कहलाती राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने इसमें रुकावट डालने का प्रयास किया था। परन्तु वह सफल नहीं हो सकी थी। राज्यसभा में वह अपने इस उद्देश्य में सफल हो गई। ऐसा करके उसने गत कई दशकों से संघर्ष करती आ रही बहुसंख्यक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ बड़ी कोताही की है। नि:संदेह ऐसा करते हुए जहां कांग्रेस ने वोट राजनीति का ध्यान रखा है, वहीं वह कदापि यह नहीं चाहती थी कि इस सम्प्रदाय की महिलाओं के अधिकारों के लिए लाए गए इस कानून का श्रेय मोदी सरकार ले जाने में सफल हो। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में ऐसा ही नकारात्मक खेल शाहबानो केस संबंधी खेला गया था। उस समय भी देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शाहबानो को तलाक दिए जाने के कारण गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया था। परन्तु इस फैसले को संसद में अपने बहुमत के कारण कांग्रेस ने पलट दिया था। कांग्रेस जैसी पार्टी से ऐसे रवैये की उम्मीद नहीं की जा सकती, इसलिए मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करती संस्थाएं और बड़ी संख्या में लोग उसको माफ नहीं करेंगे, क्योंकि किसी भी समाज में सिर्फ पुरुष की इच्छा से विवाह के बंधन को तोड़ना बड़ा गुनाह माना जा सकता है, जबकि संबंधित महिला उसके बच्चों की मां हो। समाज के अलग-अलग सम्प्रदायों में अक्सर लम्बे समय से ऐसी सुधारवादी लहरें उठती रही हैं, जो महिलाओं को अलग-अलग समाजों में सम्मानजनक दर्जा दिलाने में सहायक हुई हैं। आज अनेक समस्याओं और कठिनाइयों के बावजूद महिला अपने पांवों पर खड़ी होने का प्रयास कर रही है, जिसमें वह बड़ी सीमा तक सफल भी हो रही है। हम जहां मोदी सरकार के इस संबंधी दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हैं, वहीं कांग्रेस की इस मामले में संकीर्ण सोच को नकारात्मक समझते हैं, जिसका असर अनेक पक्षों से आगामी समय में देखा जा सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द