तुम मेरी रक्षा करो, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा

सामाजिक प्राणी होने के नाते प्रेम और करूणा वे दो भाव हैं, जो किसी भी व्यक्ति को समाज से जोड़ते हैं और उसे समाज के प्रति उसके उत्तरदायित्व की पूर्ति की दिशा में प्रोत्साहित करते हैं। भौतिक प्रगति, वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के अनेक पड़ावों को पार कर चुका मानव जहां अपनी उपलब्धि पर गर्व का अनुभव करता है, वहीं दूसरी ओर वह उन समस्याओं पर भी चिंतित है, जो इस विकास के प्रतिकूल प्रभाव स्वरूप बड़ी समस्या का रूप ले चुकी हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि समस्या के प्रति जागरूक होने का लाभ तभी है, जब उससे उत्पन्न विकृतियों को दूर करने के उपाय भी किए जाएं। आज पूरा विश्व पर्यावरण प्रदूषण के संकट से पूरी तरह अवगत है और प्रकृति तथा मानव जीवन पर इसके कुप्रभावों से चिंतित भी। पृथ्वी से लेकर आकाश तक व्याप्त प्रदूषण, कटते हुए जंगल और अनियमित शहरीकरण के कारण गहराता जल संकट, ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन वे तथ्य हैं, जो पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण के वैश्विक संकट की गम्भीरता की ओर हमारा ध्यान निरन्तर खींच रहे हैं। यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर इस संकट की गम्भीरता को देखते हुए समय-समय की सरकारों एवं सामाजिक संगठनों एवं संस्थाओं ने लोगों को जागरूक भी किया है और पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न प्रयासों का आगाज़ करने के साथ-साथ कानून और नियमों का प्रावधान भी किया है। वर्तमान केन्द्र सरकार की ओर से तीन साल पहले स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत करना इस दिशा में एक सार्थक प्रयास था।
जनता को इस मुहिम से जोड़ने के लिए अभी हाल ही में प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने प्लास्टिक मुक्त विश्व और भारत का नारा देकर आम जनता को प्लास्टिक के उपयोग से पर्यावरण को होने वाले भयंकर एवं दूरगामी प्रभावों के प्रति चेताया। महाराष्ट्र सरकार ने इस आह्वान पर कारगर पहल करते हुए प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने के लिए इससे निर्मित कुछ उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और उल्लंघन करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान भी रखा। महाराष्ट्र सरकार का यह उत्साहजनक कदम प्रशंसनीय है, परन्तु इससे स्थिति में कितना सुधार आयेगा, अभी इस विषय में कुछ भी आकलन लगाना गैर-मुनासिब होगा क्योंकि ऐसे ही प्रतिबंध इससे पूर्व पंजाब, हरियाणा, हिमाचल एवं अन्य कई राज्यों की सरकारों द्वारा भी घोषित किए गए हैं, किन्तु ये अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए, जिसका मुख्य कारण है कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन में प्लास्टिक का उपयोग इतने व्यापक स्तर पर जुड़ा है कि उसको सिस्टम से बाहर करने और उसके लिए नया विकल्प लाने के लिए अत्यधिक दृढ़ और लगातार किए जाने वाले प्रयासों की ज़रूरत है और सबसे ज्यादा लोगों की जागरूकता तथा उनके द्वारा प्लास्टिक को नकारने से ही इस समस्या का समाधान हो सकता है अन्यथा हर बार की तरह ढिलाई और छूट मिलने के कारण ये प्रतिबंध कभी पूरी तरह सफल नहीं हो सकते। यह बिल्कुल इसी तरह है जैसे कि हैल्मेट पहनना हमारी सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है, पर फिर भी हम हैल्मेट नहीं पहनते, अपनी जान को दांव पर लगाकर भी।
यह आश्चर्यजनक किन्तु बिल्कुल सत्य है कि तमाम सरकारी घोषणाओं, नियम-कानूनों को बनाने के साथ-साथ पर्यावरण संबंधी शिक्षा को स्कूलों, कालेजों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चलाए गए पर्यावरण जागरूकता अभियानों एवं आंदोलनों, भाषणों, सैमीनार-संगोष्ठियों के आयोजन जैसी तमाम कोशिशों के बावजूद पर्यावरण के लिए हमारी चिंता का व्यावहारिक पक्ष जड़ और शून्य है। यह जानते हुए भी प्लास्टिक से बना सामान व पॉलिथीन आने वाले हज़ारों सालों तक गलेंगे नहीं और इससे धरती के वायुमंडल और पर्यावरण के लिए गम्भीर संकट पैदा हो सकता है। हम अपनी सुविधा के लिए प्लास्टिक से बने उत्पादों का उपयोग जारी रखे हुए हैं। यह ठीक उसी तरह का व्यवहार है जैसे आने वाले मोड़ पर खाई है। यह सूचना पढ़कर भी उस खाई की तरफ सरपट दौड़ते जाना। कुछ और भी दृश्य हैं जो हम अपने आसपास अक्सर ही देखते हैं। घरों, स्कूल, कालेजों, सार्वजनिक स्थानों पर पानी का अपव्यय, खुले नलों से लगातार दिन-रात पानी का बहना, पानी की टंकियों से घंटों पानी का ओवर फ्लो होना। घरों के गेट, कारें और सड़कें धोने के लिए पानी का बेदर्दी से उपयोग करना, सार्वजनिक स्थानों या घरों के बगीचों में पाईप से घटों तक हो रही एक ही क्यारी की सिंचाई से बेखबर रहना। ऐसे असंवेदनशील और गैर-ज़िम्मेदाराना कृत्यों में बच्चे-बूढ़े, युवा, स्त्री, पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं।
ऐसी स्थिति में पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण से उत्पन्न होने वाले गम्भीर परिणामों से हमारी रक्षा कौन कर सकता है? नि:संदेह कोई नहीं। न सरकार, न कानून, न नेता, न सामाजिक कार्यकर्ता, न भाषण, न बहस, कोई हमें इस संकट से बचा नहीं सकता। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों और दावों से ही किसी चिंता या समस्या का समाधान नहीं हो सकता, उसके लिए हमें अपने-अपने स्तर पर अपने परिवेश में छोटे-छोटे प्रयास करते हुए इस चिंताजनक समस्या के उन्मूलन के लिए अपनी सकारात्मक सोच और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा। इस संकट से बचने के लिए हमें अपनी ज़िम्मेदारी खुद तय करनी होगी। जो जागरूक हैं, वे दूसरों को जागरूक करें और अपने व्यावहारिक आचरण से दूसरों के समक्ष स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्हें प्रोत्साहित करें। गृहिणियां कम पानी का इस्तेमाल करते हुए घर के काम निपटाने की आदत डालें। सब्ज़ी-सौदा लाने के लिए कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। पार्कों में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बह रहे नलों को बंद करने में संकोच न करें। पानी की टंकी ओवर फ्लो न हो इसके लिए घंटी लगाएं या अन्य कारगर व्यवस्था करें, क्योंकि सिर्फ जल-प्रदूषण ही एकमात्र समस्या नहीं अपितु भूमि निचला लगातार कम होता जल स्तर उससे भी बड़ी चिंता का विषय है। गीले और सूखे कूड़े को अलग-अलग रखें, बायोडिग्रेडेबल और नानबायोडिग्रेडेबल कचरा अलग-अलग रखने की आदत डालें, जिससे बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को रिसाइकिल किया जा सके। 
विभिन्न सामजाकि एवं सरकारी संस्थाओं के द्वारा समय-समय पर किए जाने वाले सर्वेक्षण पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हमारे असंवेदनशील नज़रिये का मुंह बोलता प्रमाण है। ऐसी ही एक पर्यावरण प्रदूषण की विशालकाय चुनौती से निपटना आसान कार्य नहीं है। प्रदूषित यमुना को कालिया नाग से मुक्त करने के लिए हमें स्वयं ही उसे मथने के लिए सजग होना पड़ेगा। कृष्ण का आह्वान अपने भीतर ही करके स्वयं को सजग और सक्षम बनाना होगा। हमें याद रखना होगा कि हम सभी एक ऐसे देश की मिट्टी से उत्पन्न हुई सन्तानें हैं, जिस देश में पंच भूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) को जीवन का आधार मानते हुए पृथ्वी को माता तुल्य माना गया है। वायु, जल और अग्नि को देवता माना गया है और आकाश तत्व को प्राण  का आधार कहा गया है। पंचवस्तु पुरुष आविवेशतान्यन्त: पुरुषे अर्पितानि (यदुर्वेद)। जीवन को पोषण देने वाली नदियां और गोधन को माता कहकर उनका सम्मान किया जाता है। पीपल के वृक्ष को सृष्टिकर्ता ब्रह्म देव का अधिष्ठान मानकर उसकी पूजा की परम्परा रही है इस देश में। क्योंकि पीपल से बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जित होने वाली ऑक्सीजन ब्रह्मदेव की तरह जीवनदायिनी है। सदा आरोग्य देने वाली तुलसी को हर घर के आंगन में स्थापित करना शुभ माना गया है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली और प्राणायाम का विज्ञान हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों के पर्यावरण एवं प्रकृति संबंधी सूक्ष्म तथा गर्व ज्ञान के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथ्वी शान्ति शय: शान्ति शैषधय: शान्ति) वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शान्तिर्ब्रह्मं शान्ति: सर्वशान्तिदेव शान्ति: सामा शान्तिरेधि। (यजुर्वेद)
यजुर्वेद में दर्ज शान्ति पाठ इस बात का प्रमाण है कि हज़ारों वर्ष पूर्व भारतीय ऋषियों ने मानव जीवन और प्रकृति में मध्य सामंजस्य एवं एकता की आवश्यकता समझ लिया था। 
इस भारत भूमि की सन्तान होने के नाते हमारा यह नैतिक दायित्व है कि हम परम्परा से प्राय: इस अमूल्य ज्ञान सम्पदा का मूल्य समझते हुए अपने परिवेश और देश के पर्यावरण को सहेजने में अपना योगदान दें। कुछ बड़ा न करते हुए भी यदि हम ऊपर लिखित कुछ छोटी-छोटी बातों को सजगतापूर्वक अपनाते हुए अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने का प्रयास करें, तो हम बहुत बड़े-बड़े परिवर्तनों को सम्भव बनाने में सहायक हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 6.20 लाख टन कूड़ा पैदा होता है। इसमें ई-वेस्ट और हैजर्डस वेस्ट शामिल नहीं है। 620 लाख टन कचरे में से 56 लाख टन प्लास्टिक और 2 लाख टन बायोमेडिकल कचरा है। यह बेहद हैरान करने वाली और खेदजनक स्थिति है कि इस 620 लाख टन कूड़े में से 70 प्रतिशत कूड़ा ही एकत्र किया जाता है और शेष कचरा इधर-उधर बिखरा रहता है। यही कूड़ा ज़मीन, पानी और वायु को प्रदूषित करता है। 620 लाख टन कूड़े में से 30 प्रतिशत कूड़ा ही रिट्रीट हो पाता है। अर्थात् उसे खाद और ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। शेष कचरा डंपिंग ग्राऊंड या फिर लैंडफिल में भेज दिया जाता है, जो समय के साथ बड़े पहाड़ का रूप ले लेते हैं और असहनीय दुर्गंध के साथ हर तरह का प्रदूषण फैलाते हैं। 
इस भयावह और अनियमित स्थिति में कुछ ऐसे जागरूक और ज़िम्मेदार व्यक्ति भी हैं, जो अपनी समझ और अन्त:प्रेरणा से पर्यावरण संरक्षण के तहत कार्य में स्वेच्छा से योगदान दे रहे हैं। दिल्ली के एक सामान्य कूड़ा बीनने वाले श्री जयप्रकाश सॉलिड वेस्ट मैनेजमैंट की दिशा में सन् 1990 से लगातार काम कर रहे हैं। 10-12 सह कर्मचारियों की टीम के सहयोग से कचरा प्रबंधन के कार्य को प्रोत्साहित करने का प्रयास करने वाले श्री जयप्रकाश अब इस क्षेत्र और काम में माहिर हैं। वे एक समाजसेवी संस्था के सहयोग से लगभग 12000 सफाई कर्मचारियों की सेवा के साथ सॉलिड वेस्ट का सुचारू प्रबंधन करते हुए सरकारी एजेंसियों के हिस्से का काम कर रहे हैं। सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की मान्यता न होने पर भी श्री जयप्रकाश और उनकी टीम इस देश-सेवा और समाज सेवा के कार्य को मिशन की तरह आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे भागीरथ प्रयास किए बिना।