डिफाल्टर औद्योगिक इकाईयों को राहत देने की तैयारी

जालन्धर, 12 अगस्त (शिव शर्मा): आगामी समय में पंजाब सरकार उन औद्योगिक इकाईयों को राहत दे सकती है जिन औद्योगिक इकाईयों के कर्ज़ों पर ब्याज़ की रकम ही कई गुणा बढ़ जाने के कारण उन्हें अपनी इकाईयां बंद करनी पड़ी हैं और इससे तो सरकार का वित्तीय नुक्सान तो होता ही है बल्कि कुछ समय पहले बंद हुईं औद्योगिक इकाईयों के कारण बेरोज़गारों की संख्या में भी वृद्धि होती रही है। उद्योगपति नेताओं नरिंदर सिंह सग्गू व अन्यों ने गत दिनों अपने मसले लेकर जब उद्योग मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा के साथ मुलाकात की थी तो उस समय ही इस प्रकार का संकेत मंत्री द्वारा दिया गया था यदि सरकार द्वारा की जा रहीं विचारें सफल हो जाती हैं तो औद्योगिक इकाईयों के ब्याज माफ किए जा सकते हैं ताकि वह वास्तविक कर्ज़  की रकम ही वापिस कर दें। इससे सरकार का वित्तीय नुक्सान भी कुछ बच जाएगा बल्कि औद्योगिक इकाईयों में भी इससे जान पड़ जाएगी। अब तक तो औद्योगिक इकाईयां कज़र् लेती हैं तो उन्हें आधा ब्याज माफ करने की पेशकश तो होती रही हैं परंतु सारा ब्याज माफ होने वाली यदि योजना सफल चढ़ जाती है तो इससे वह औद्योगिक इकाईयों को राहत मिल सकती है जिन्हें कुछ समय पहले ताले लग गए थे। पंजाब की औद्योगिक इकाईयों पर हमेशा ही पड़ोसी राज्य सरकारों की नज़रें रही हैं और इसका असर था कि हिमाचल प्रदेश सहित जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड में कई औद्योगिक इकाईयों ने अपने यूनिट स्थापित कर लिए थे। वैट प्रणाली में राज्य सरकार को इस प्रकार के काफी नुक्सान उठाने पड़े हैं। जी.एस.टी. लागू होने के बाद चाहे राज्य सरकारें अब औद्योगिक इकाईयों को करों से छूट का पैकेज नहीं दे सकती हैं परंतु वह सस्ती बिजली व सस्ती ज़मीन देने की पेशकश कर पंजाब की औद्योगिक इकाईयों पर हमेशा ही डोरे डालती रही हैं। कुछ दिन पहले ही बिहार सरकार के उच्चाधिकारियों की एक टीम तो जालन्धर भी होकर गई है जिसने औद्योगिक इकाईयों को बिहार में आकर्षक ज़मीन पर अन्य पैकेज देने की पेशकश की थी। यदि पंजाब सरकार राज्य की रीढ़ की हड्डी समझी जातीं औद्योगिक इकाईयों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयत्न करती है तो इससे बंद हुईं औद्योगिक इकाईयों को आक्सीजन मिल जाती है और साथ ही जी.एस.टी. वसूली में वृद्धि हो सकती है। सरकार बनने के बाद डिफाल्टर शैलर मालिकों के लिए सरकार ने एकमुश्त योजना लागू की थी परंतु वह इसलिए दम तोड़ गई थी क्योंकि इस योजना में डिफाल्टर शैलर मालिकों से वर्षों पुराने दाम के मुताबिक राशि जमा करवाने की जगह मौजूदा दामों के मुताबिक राशि जमा करवाने के लिए कहा गया था जोकि कई गुणा बढ़ गई थीं और यह बढ़ी हुई रकमों के जमा न होने के कारण ही एकमुश्त योजना सफल नहीं हो सकी थी परंतु यदि उद्योग विभाग अपनी नई योजना में राहत देता है तो औद्योगिक इकाईयों को राहत मिल सकती है।