फिज़ूल की कवायद

गत काफी लम्बे समय से अमरीका के न्यूयॉर्क में स्थित ‘सिख्ज़ फॉर जस्टिस’ नाम का संगठन, जिसके कानूनी सलाहकार और नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू द्वारा भारत में अलग सिख राज्य की मांग के तौर पर नवम्बर, 2020 को दुनिया भर में बसते सिखों से अलग राज्य का प्रस्ताव पास करवाने की बात की गई है, जिसको रैफरेंडम 2020 का नाम दिया गया है। आज कम्प्यूटर के युग में सोशल मीडिया पर कोई भी बात मिनटों सैकेंडों में दुनिया भर में फैलाई या सांझी की जा सकती है। पन्नू और उसके साथियों ने ऐसा ही ढंग-तरीका अपनाया है। वह अलग-अलग देशों में बसते सिख समुदाय के उन लोगों को सम्बोधित हुए जो संत जरनैल सिंह भिंडरावालों द्वारा शुरू किए गए संघर्ष के समय से और फिर  1984 के दंगों के बाद बाहर चले गए थे, जिन्होंने अब अलग-अलग देशों में शरण ली हुई है। इनमें कुछ ऐसे संगठनों के नेता भी शामिल हैं, जो पंजाब में उस दौर में बहुत सक्रिय रहे, जिन पर भारत में आज भी अनेक केस चल रहे हैं। पंजाब तथा देश के अन्य राज्यों में सोशल मीडिया पर प्रचार होने के बावजूद इस उठाये जा रहे मामले का कोई ज्यादा असर दिखाई नहीं दिया, न ही यह लगा कि इसका आगामी समय में कोई ज्यादा प्रभाव पड़ने वाला है। विदेशों में बैठे नाराज़ सिखों को पंजाब और देश में बसते भाईचारे के लोगों के मामलों का ज्यादा ज्ञान नहीं है। पंजाब में खालिस्तान की मांग को कभी भी ज्यादा समर्थन नहीं मिला। यहां तक कि जो उस बेहद रक्त-रंजित दौर में भी सक्रिय थे, उनके द्वारा भी बड़े और खुले रूप में खालिस्तान की मांग नहीं उठाई जाती रही। नि:संदेह वह सिख समुदाय से हुई धक्केशाही की बात भी अधिक करते हैं। संत भिंडरावाले और उनके साथियों द्वारा शुरू किए गए संघर्ष में खालिस्तान की मांग शामिल नहीं थी। यह संघर्ष कैसे शुरू हुआ, शिरोमणि अकाली दल ने इसमें किस तरह की भागीदारी की और अपनी मांगों को लेकर धर्मयुद्ध मोर्चे का ऐलान किया था, उसके विस्तार का अधिकतर लोगों को पता है। उस समय भी सिख मांगों की बात ही चलती रही थी। खालिस्तान की मांग बहुत ही दबे सुर में की जाती थी। इसका एक कारण यह था कि खालिस्तान की रूप-रेखा के बारे में कोई भी नेता, बुद्धिजीवी या आम व्यक्ति स्पष्ट नहीं था, न ही किसी भी स्तर पर कोई इसका स्पष्ट रूप में विस्तार पेश किया गया था। जिन परिस्थितियों में अकाली दल ने मोर्चा लगाया था, जिन कारणों से संत भिंडरावालों ने दरबार साहिब में डेरा लगाया, जिन कारणों से आप्रेशन ब्लू स्टार का दुखद कांड हुआ और उसके बाद इंदिरा गांधी की मौत के पश्चात् देश भर के सिखों को कांग्रेस के उस समय के गद्दी पर बैठे बड़े नेताओं के संरक्षण पर निशाना बनाया गया, उसने सिख मानसिकता को बड़ी सीमा तक घायल कर दिया। उस समय के पड़े गम्भीर घाव आज तक भी ताज़ा दिखाई दे रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हज़ारों ही सिखों को योजनाबद्ध ढंग से मार दिया गया। सत्तारूढ़ कांग्रेस के संरक्षण पर यह दर्दनाक कांड योजनाबद्ध ढंग से अमल में लाया गया था और उसके बाद के सबूतों को मिटाने के लिए हर हत्थकंडे अपनाये गये थे और इसमें तत्कालीन सरकार बड़ी सीमा तक सफल भी हुई थी। इसीलिए आज उच्च अदालतें भी सबूतों की कमी के कारण को दर्शाकर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने से संकोच करती नज़र आ रही हैं। परन्तु इस सच्चाई से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि देश की राजधानी सहित अलग-अलग स्थानों पर हज़ारों ही सिखों को बुरी तरह मारा गया। इस संबंधी अब तक प्रत्येक स्तर पर और बड़ी सिख संस्थाओं द्वारा भी न्याय के लिए प्रयास किए गए हैं। केन्द्र में सरकारें बदलती रही हैं, उन पर भी दोषियों को सज़ाएं देने के लिए पूरा दबाव डाला जाता रहा है परन्तु तीन दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी संतोषजनक न्याय न मिलने के कारण सिख मनों में गिले-शिकवे बने रहे हैं, जिनकी टीस आज तक भी मनों में कायम है। ऐसे मामलों को हल करने की ओर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। ऐसी घटनाओं को आधार बनाकर बाहर बैठे खालिस्तानी संगठन लाभ उठाने का प्रयास करते रहते हैं, परन्तु पंजाब और देश में लगातार हालात बदलते जाने के कारण इन बाहर स्थापित हुए संगठनों को कभी भी कोई बड़ा समर्थन नहीं मिला। ऐसा ही हश्र रैफरेंडम 2020 का होता दिखाई दे रहा है। 12 अगस्त को लंदन में इस संस्था द्वारा करवाई गई रैली में पास किए गए प्रस्तावों को भी पंजाब या सिख समुदाय के बड़े हिस्से द्वारा कोई समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं है। पंजाब और देश के सिख समुदाय ने यहां किस तरह अपना प्रभाव बनाना है, कैसे अपने साथ हुए अन्याय के लिए न्याय की लड़ाई लड़नी है, कैसे देश के निर्माण में अपना बनता योगदान डालना है, ऐसा फैसला देश के भाईचारे ने स्वयं करना है। नि:संदेह किसी भी तरह कोई बाहरी हस्तक्षेप देश के भाईचारे के हितों के खिलाफ होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द