स्वतंत्रता आन्दोलन में पंजाब का लासानी योगदान


यदि यह कहा जाए कि लगभग 1200 वर्ष अलग-अलग विदेशी शासकों का गुलाम बने रहे भारत वर्ष की आज़ादी की  ‘गूंज’ पंजाब की धरती से ही उठी थी, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 
म़ुगलों के बाद भारत की आज़ादी छीनने वाले दुनिया के सबसे अधिक शातिर ‘अंग्रेज़’ थे। देश की आबादी का महज़ डेढ़ प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद सिखों द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम 80 प्रतिशत से अधिक कुर्बानियों का बेमिसाल इतिहास रचा गया। अंग्रेज़ सरकार के खुफिया रिकार्ड के अनुसार ही 1907 से 1917 तक हिन्दुस्तान में फांसी पर चढ़ाये गए 47 शहीदों में से 38 सिख थे। उम्र कैद वाले 30 स्वतंत्रता सेनानियों में से 27 सिख थे। उम्र कैद और सम्पत्ति ज़ब्त करने की सज़ाओं का सामना करने वाले कुल 38 में से 31 सिख थे। काले पानी में कुल 29 योद्धाओं को भेजा गया, उनमें से 26 सिख थे। कड़ी सज़ाएं कुल 47 को हुईं और उनमें से भी 38 सिख थे। 
विस्तृत आंकड़े देखे जाएं तो देश के आज़ाद होने तक अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध युद्ध के दौरान कुल 121 शहीदों ने फांसी के फंदों को चूमा, जिनमें से 93 सिख थे। उम्र कैद काटने वाले 2646 स्वतंत्रता सेनानियों में से 2147 सिख थे। जलियांवाला ब़ाग के कांड के 1300 शहीदों में से 799 सिख थे। बजबज घाट के कांड में शहीद होने वाले 113 में से 67, कूका लहर के दौरान 91 के 91 और अकाली लहर के दौरान शहीद होने वाले 500 सिख ही थे। इन आंकड़ों की पुष्टि मौलाना आज़ाद ने भी की थी। यदि भारत की आज़ादी में समूह पंजाबियों के योगदान का मूल्यांकन किया जाए, तो यह 90 प्रतिशत के लगभग बन जाता है। 
ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सबसे पहले शांतिपूर्ण आन्दोलन पंजाब से ही 1869 में बाबा राम सिंह नामधारी ने शुरू किया। बाबा राम सिंह ही थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन से आधी सदी पहले ही अंग्रेज़ी भाषा, अंग्रेज़ी परिधान, फिरंगी सरकार की नौकरियों, अदालतों, डाकखाने और रेलगाड़ियों के बहिष्कार का आह्वान कर दिया था। अंग्रेज़ों द्वारा जनवरी 1872 में 66 नामधारी शूरवीरों को मालेरकोटला में तोपों से उड़ा दिया गया। हकूमत ने बाबा राम सिंह तथा उनके 12 साथियों को देश निकाला देते हुए बर्मा भेज दिया।
वर्ष 1907 में शहीद भगत सिंह के चाचा स. अजीत सिंह ने पगड़ी सम्भाल जट्टा का आह्वान करके  स्वतंत्रता प्रेमियों को जगाया। पंजाबी युवक मदन लाल ढींगरा ने ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध प्रगट करते हुए अंग्रेज़ अधिकारी विलियम कर्जन वाइली को गोली से उड़ाने के बाद 16 अगस्त, 1909 को शहीदी दी। 1913 में उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट पर रहने वाले कुछ सिखों ने लाला हरदयाल और भाई परमानंद के सहयोग से गदर पार्टी का गठन किया, जिसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया। कामागाटामारू जहाज़ के कुल 376 यात्रियों में से 340 सिख थे और शहीद होने वाले सभी सिख थे। इस घटना ने अन्य देशों के भारतीयों के भीतर भी फिरंगी सरकार के विरुद्ध ब़गावत की चिंगारी सुलझा दी। 
अमरीका में गदर लहर को प्रचंड करने के बाद करतार सिंह सराभा ने भारत आकर भारतीय सैनिकों के दिलों में ही आज़ादी की चिंगारी सुलगाने के लिए प्रयास शुरू किए। 16 नवम्बर, 1915 को स. सराभा को 6 अन्य सिख साथियों सहित फांसी के तख्त पर लटका दिया गया। 
1922 में बब्बर अकाली लहर की नीव रख कर बब्बरों ने ब्रिटिश साम्राज्य को। कालोनी एक्ट के विरुद्ध बार तहरीक में शहीद होने वाले, उम्र कैद की सज़ाएं भोगने वाले तथा अंग्रेज़ सरकार की जेलों में कष्ट भोगने वाले सभी सिख थे। साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में 30 अक्तूबर, 1928 के दिन लाहौर रेलवे स्टेशन पर लगभग 7 हज़ार की भीड़ ने साइमन कमीशन गो बैक के नारों से आसमान गुंजयमान कर दिया। प्रदर्शनकारियों में बहु-संख्या पंजाबियों की थी। अंग्रेज़ सरकार द्वारा किए अंधाधुंध लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय घायल होने के बाद 17 नवम्बर, 1928 को स्वर्गवास हो गए। देश को आज़ाद करवाने के लिए पंजाब में चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में ‘हिन्दुस्तान समाजवादी गणतंत्र सेना’ कायम की गई। शहीद-ए-आज़म स. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की आज़ादी के लिए हुई शहादत ने देश में आज़ादी की लहर और प्रचंड कर दी। जलियांवाला ब़ाग के कांड का बदला स. उधम सिंह ने पूरे 21 वर्ष बाद लंदन में जाकर जनरल एडवायर को मार कर लिया। 
भारत की आज़ादी का कोई भी ऐसा मोर्चा नहीं था, जिस पर पंजाब खास तौर पर सिख कौम ने आबादी के अनुपात से देश की अन्य कौमों की अपेक्षा सबसे आगे होकर योगदान न डाला हो। आज़ाद होने पर भारत-पाक विभाजन का सबसे अधिक संताप भी पंजाब और सिखों को ही भोगना पड़ा।