अटल बिहारी वाजपेयी: एक बड़ी शख्सियत का बिछोड़ा

नि:संदेह अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से राजनीति के क्षेत्र से एक बड़े कद-बुत्त वाली शख्सियत चली गई है। चाहे वाजपेयी गत लगभग 13 वर्षों से बीमार चले आ रहे थे। उन्होंने स्वास्थ्य के कारणों से सक्रिय जीवन से किनारा कर लिया था, परन्तु इस दशक भर के समय के दौरान भी उनको किसी न किसी कारण याद किया जाता रहा है। देश ने उनको मान-सम्मान भी दिया। वाजपेयी ने एक लम्बा राजनीतिक जीवन बिताया। वह जनसंघ के बड़े नेता रहे। उसके बाद कई पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। उसके भी वह प्रमुख नेता रहे और बाद में भारतीय जनता पार्टी पर भी सक्रिय राजनीतिक जीवन से उन्होंने बड़ी छाप छोड़ी। वाजपेयी इसलिए बढ़िया शख्सियत थे कि जितने बड़े राजनीतिज्ञों के उनके साथ और उनकी पार्टी के साथ सैद्धांतिक मतभेद थे, वह भी उनकी संतुलित और बढ़िया शख्सियत के कारण उनके साथ गहन संबंध रखते थे। यहां तक कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी उभरते हुए इस युवा नेता की पहचान कर ली थी। पंडित नेहरू विदेशी नेताओं के साथ मिलाते हुए उनके बारे में अक्सर कहते थे ‘इनसे मिलो, यह विपक्ष के उभरते हुए नेता हैं। मेरी खूब आलोचना करते हैं परन्तु मैं इस नौजवान में भविष्य की बहुत सम्भावनाएं देखता हूं।’ वाजपेयी ने अपने पांच दशक के लम्बे राजनीतिक जीवन में यह बात साबित कर दी थी। वह शब्दों के जादूगर थे। बड़ी-बड़ी रैलियों में उनके भाषणों को सुनकर लोग झूम उठते थे और बेहद प्रभावित होते थे। वाजपेयी का जीवन सफलता और असफलता का मिश्रण था। अनेक बार वह चुनाव हारे, परन्तु अपनी समाज के बारे में प्रतिबद्धता के कारण वह हमेशा लोकप्रिय रहे। तीन बार वह देश के प्रधानमंत्री बने। उनके यह दौर भी बेहद घटनाओं से भरपूर थे। उस समय उभरी बड़ी चुनौतियों ने वाजपेयी के कद-बुत्त को ऊंचा ही किया। श्रीमती इन्दिरा गांधी के बाद वाजपेयी के समय ही पोखरण के परमाणु परीक्षण किए गए, जिन संबंधी दुनिया भर के बहुत सारे देशों की यह राय बनीं कि भारत जैसे देश को ऐसे परीक्षण नहीं करने चाहिए थे, परन्तु देश में उनको इस कारण बड़ी प्रशंसा मिली। वैसे इसके बारे में बहस आज तक जारी है। चाहे उस समय रूस और फ्रांस जैसे कुछ देशों ने इन परीक्षणों का समर्थन किया था परन्तु अमरीका सहित यूरोप के अधिकतर देश भारत की ओर से उठाये गए इन कदमों के विरोध में खड़े हुए थे। उस चुनौतीपूर्ण दौर को वाजपेयी जैसी परिपक्व शख्सियत ही सम्भालने में सक्षम हो सकती थी। वाजपेयी अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहते थे। उन्होंने लाहौर की बस द्वारा ऐतिहासिक यात्रा की। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने खुली बांहों से उनका स्वागत किया। परन्तु पाकिस्तानी सेना को कभी भी ऐसे हालात ग्वारा नहीं रहे, इसलिए जनरल परवेज़ मुशर्रफ की गुप्त योजना के अनुसार कारगिल के स्थान पर ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना की सहायता से आतंकवादियों ने कब्ज़ा जमा लिया, जिसने भारत के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती ला खड़ी की थी। कारगिल के युद्ध से निपटने और जीत प्राप्त करने को भी वाजपेयी सरकार की बड़ी सफलता माना जाता रहा है। वाजपेयी चाहे भाजपा के नेता थे, परन्तु उन्होंने बहुत सारी पार्टियों का संयुक्त मोर्चा बनाकर सरकार चलाई। चाहे बाद में अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता द्वारा समर्थन वापिस लेने के कारण सरकार बीच में ही टूट गई परन्तु अगले चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत होने के कारण वाजपेयी को पुन: प्रधानमंत्री बनाया गया। यह पहली बार था कि पांच वर्ष तक कोई गैर-कांग्रेसी सरकार शासन चलाती रही है। अनेक पार्टियों के इस गठबंधन को सम्भाल कर सरकार चलाना और उस समय आर्थिक साम्प्रदायिक तथा विदेशी चुनौतियों का अनेक बार सफल मुकाबला कर सकना वाजपेयी सरकार के ही हिस्से आया था। इसी समय देश की संसद पर दिसम्बर, 2001 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बेहद तनावपूर्ण बन गए थे। इसी समय के दौरान गुजरात के साम्प्रदायिक दंगे फैले, जिनमें हज़ारों ही लोग मारे गए। इसी समय दिसम्बर, 1999 में इंडियन एयरलाइन्स का काठमांडू से दिल्ली आ रहा विमान पांच आतंकवादी उस समय तालिबान की सरकार अधीन देश अफगानिस्तान ले गए थे, जिसने देश के समक्ष एक बहुत बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया था। चाहे अपने राजनीतिक जीवन में और उच्च प्रशासनिक पदों पर रहते हुए वाजपेयी ने अनेक बार नमोशी, हारों और जीतों का सामना किया परन्तु उन्होंने हर समय सकारात्मक रुख अपनाकर देश के विकास को प्राथमिकता दी। आज भी उस समय की बनाई, उनकी योजनाओं की बड़ी चर्चा होती है। नि:संदेह अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसी शख्सियत थे, जिनका इस क्षेत्र में आगामी समय में उदाहरण दिया जाता रहेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द