बलिदान दिवस पर विशेष : लंदन में शहीद होने वाले प्रथम भारतीय क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा

1857 के राष्ट्रहित बलिदानों की परंपरा में 1883 को भारत मां का एक बेटा अमृतसर में जन्मा। मां मंतो देवी और पिता डाक्टर दित्तामल का बेटा मदन लाल भारत मां की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए लंदन मेें जाकर शहादत का जाम पीने वाला पहला भारतीय क्रांतिकारी ही नहीं बना,अपितु विश्व पटल पर भी उस जैसा और कोई साहसी स्वतंत्रता सेनानी दिखाई नहीं देता। पिता तो थे अंग्रेज भक्त अर्थात टोडी बच्चे, पर मदन राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत किशोरावस्था से ही अंग्रेजों की हुकूमत द्वारा किए जा रहे अत्याचारों और भारतीयो  के अपमान को सह नहीं पा रहा था। पिता की अकूत संपत्ति से मुंहमोड़ कर इंजीनियर बनने के लिए 26 मई 1906 को इंग्लैंड के लिए रवाना हुए। उसके बाद मदन भारत तो कभी वापस न आए, पर इसकी वीरता की गाथाएं पूरे विश्व में फैल गईं। लंदन पहुंचते ही मदन का वीर सावरकर से मेल हो गया और क्रांति का एक नया अध्याय लिखा जाने लगा। 10 मई, 1907 को अंग्रेजों ने 1857 की भारतीय क्रांति को गदर कहकर उन सबका मजाक उड़ाया। इंडिया हाउस में 1857 की क ांति की वर्षगांठ मनाकर भारतीय छात्रों ने प्रतिज्ञा की कि वे भारत की आजादी के लिए दृढ़-संकिल्पत हैं। जब तक भारत ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त नहीं हो जाता तब तक वे चैन की सांस नहीं लेंगे। मदन लाल तथा अन्य भारतीय विद्यार्थी यह चर्चा करते थे कि कर्जन वायली भारतीय विद्यार्थियों का अपमान करता है, उनकी जासूसी करता है तथा अपमानित और परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। मदन लाल ढींगरा को अपने पिता के अंग्रेजों से संपर्क होने का वह लाभ मिला जो उसे कर्जन वायली के नज़दीक ले गया। अपने साथियों की जानकारी में रहते हुए कर्जन वायली द्वारा गठित की गई समिति नेशनल इंडियन एसोसिएशन का भी ढींगरा सदस्य बन गया और एक दिन भारत संतान का अपमान करने वाले वायली का काम तमाम करने के इरादे से ढींगरा लंदन के इम्पीरियल इंस्टीट्यूट के जहांगीर हॉल के फंक्शन मे ं पहुंच गया जहां पर कर्जन वायली भी मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचा था। सब नाच गा रहे थे। ऐसे में ही एक जुलाई1909 को मदन लाल ने रात के लगभग दस बजे नेशनल इंडियन एसोसिएशन के फंक्शन में पहुंच कर बहुत नजदीक से वायली पर गोली चला दी और वह वहीं पर ढेर हो गया। जहांगीर हॉल में तो कोलाहल मच गया। कुछ भागने लगे और कुछ तो वहां पड़े टेबलों के नीचे छिप गए। लेकिन मदन लाल वहीं खड़े और तब तक खड़े रहे जब तक पुलिस ने आकर उन्हें गिरफ्तार न कर लिया। मुस्कुराता हुआ मदन बोला- एक मिनट के लिए मैं अपना चश्मा पहन लूं। एक डॉक्टर आया और मदन का बीपी चेक करने के बाद दंग रह गया, क्योंकि पूरी तरह से स्वस्थ मदन सामने खड़ा था। लंदन थर्रथर्रा उठा। दुनिया में और विशेषकर भारत में  इस क्रांति ने एक नई ऊर्जा को जन्म दिया। आश्चर्य है कि बेटे का बलिदान भी मदन के पिता का मन न बदल सका और उसने अंग्रेज सरकार को यह विश्वास दिलाने का पूरा प्रयत्न किया कि उनका परिवार अंग्रेजों का वफादार है। जब मदन लाल को पता चला कि उसका पिता गुप्त रूप से किसी वकील को धन भेज कर उसके केस की पैरवी करने का प्रयास कर रहा है तो इस वीर पुत्र ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि अंग्रेज भक्त देश के गद्दार का धन वह अपने लिए नहीं स्वीकार कर सकते। 10 जुलाई 1909 को ब्रिटिश न्यायाधीश हॉरेस स्मिथ ने मदन लाल से पूछा कि क्या वह कोई बयान देना चाहता है, तब जो कुछ मदन ने कहा उसके लिए इंग्लैंड के भावी प्रधानमंत्री लॉर्ड चर्चिल ने भी यह कहा कि देशभक्ति के नाम पर अभिव्यक्त यह सर्वोत्तम उद्गार हैं। गिरफ्तारी से पूर्व मदन लाल ने अपना बयान अपने साथी ज्ञानचंद को दे दिया था और मदन की इच्छा थी कि उसकी फांसी से पहले यह सभी समाचार पत्रों में छप जाए। वीर सावरकर और ब्रिटिश पत्रकार डेविड गारनेट की मदद से ब्रिटेन के लोकिप्रय अखबार डेली न्यूज़ में यह छप गया। उसके इस बयान से अंग्रेजी हुकूमत की निंदा और क्रांतिकारी मदन की बहुत प्रशंसा ब्रिटेन तथा अन्य देशों में हुई। 17 अगस्त, 1909 मदन की फांसी के लिए दिन तय कर दिया। मदन मुस्कुराया। उसकी इस मुस्कान में स्वतंत्र भारत की झलक थी। सुबह स्नान ध्यान करके अंग्रेज पादरी के पहुंचने पर उसका पाठ सुनने से इंकार कर देता है और सरकार से यह मांग करता है कि वह हिंदु है और उसका अंतिम संस्कार हिंदू पंडितों द्वारा हिंदू धार्मिक पद्धति से हो और कोई गैर हिंदू उसे हाथ न लगाए। फांसी के फंदे की ओर चलने से पहले मदन मांगता है एक कंघी और शीशा। उसका यह कहना था कि वह जिस तरह यूनिविर्सटी में सज-धज कर जाता था उसी तरह मृत्यु का वरण करने के लिए भी जाएगा,किसी उदासी के साथ नहीं। मदन को लंदन की पैटन विले जेल में फांसी पर चढ़ाया गया। मदन की मृत्यु के पश्चात उनका शरीर उनके मित्रों को नहीं दिया गया, जेल में ही दफन किया गया। आज मदन लाल ढींगरा के बलिदान दिवस पर दो पुष्प उसकी स्मृति में अर्पण करके भारत की संतान अपने कर्त्तव्य को पूरा करने का एक छोटा-सा प्रयास कर रही है।