इमरान के लिए परीक्षा की घड़ी

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान ने देश के 22वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। गत दिनों राष्ट्रीय असैंबली में उनको बहुमत हासिल हो गया था। प्रधानमंत्री के तौर पर उनको 176 वोट प्राप्त हुए, जबकि उनके विरोधी और मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता शाहबाज शरीफ को 96 वोट प्राप्त हुए। दिलचस्प बात यह है कि मतदान के समय पाकिस्तान पीपल्ज़ पार्टी जिसके पास 54 सांसद हैं, अनुपस्थित रहे। चाहे कुछ दिन पूर्व पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), पीपल्ज़ पार्टी और मुताहिदा-मजलिस-ए-अमल आदि विरोधी पार्टियों ने एकजुट होकर संसद में हर पद के लिए इमरान खान तथा तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी के अन्य उम्मीदवारों का मिलकर विरोध करने का फैसला किया था परन्तु राष्ट्रीय असैंबली में विरोधी पार्टियों की एकता नज़र नहीं आई। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय असैंबली के चुनावों में 116 सीटों के बहुमत से बड़ी पार्टी के नेता के तौर पर उभर कर आए इमरान खान ने जो विजयी भाषण दिया था, उसमें उन्होंने विरोधी पार्टियों के प्रति बहुत उदार रुख अपनाया था। उन्होंने स्पष्ट रूप में यह कहा था कि वह बदला लेने वाली राजनीति नहीं चलायेंगे। अपने इस भाषण में भारत सहित सभी पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने और पाकिस्तान को आर्थिक मुश्किलों से उभारने पर जोर दिया था। परन्तु शुक्रवार को राष्ट्रीय असैंबली में प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद इमरान खान एक बार फिर चुनावी मिज़ाज में नज़र आए। उन्होंने बहुत जोर-शोर से यह कहा कि भ्रष्टाचार को सहन नहीं किया जायेगा और जो लोग देश का पैसा लूट कर विदेशों में लेकर गए हैं, उनको किसी भी रूप में माफ नहीं किया जायेगा। शायद इसकी ही प्रतिक्रिया है कि शनिवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति भवन (अवान-ए-सदर) में हुए शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष का कोई भी नेता शामिल नहीं हुआ। इससे यह बात और स्पष्ट हो गई है कि आगामी समय में इमरान खान की सरकार और विपक्षी पार्टियों में टकराव में और भी वृद्धि होगी। विपक्षी पार्टियों ने पहले ही चुनावों में गड़बड़ियां होने के गम्भीर दोष लगाये हैं और मुस्लिम लीग (नवाज़) तथा पीपल्ज़ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह भी कहा है कि सेना स्थापती और न्यायपालिका द्वारा चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इन्साफ की अप्रत्यक्ष ढंग से सहायता की गई है। परन्तु इसके बावजूद यह एक हकीकत है कि इमरान खान देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं और उनकी पार्टी खैबर पख्तूनखवा में भी दो तिहाई बहुमत लेकर सरकार बनाने में सक्षम हो गई है। देश के सबसे बड़े राज्य पंजाब और बलोचिस्तान में भी उनकी पार्टी की ही सरकारें बनने की सम्भावनाएं हैं। चाहे इसके लिए उनको अन्य पार्टियों का भी सहयोग लेना पड़ेगा। प्रधानमंत्री के तौर पर इस समय इमरान खान के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक स्तर पर है। इस समय पाकिस्तान पर 70.2 बिलियन डॉलर का ऋण है, जोकि कुल घरेलू उत्पादन का 26.6 प्रतिशत बनता है। देश के विदेशी मुद्रा के भण्डार 10.1 बिलियन डॉलर तक नीचे जा चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार इससे पाकिस्तान अपनी देन-दारियों की सिर्फ एक महीने तक ही पूर्ति कर सकता है। इस समय पाकिस्तान को 12 बिलियन डॉलर के तत्काल ऋण की ज़रूरत है। समझा जा रहा है कि सरकार इस उद्देश्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा फंड तक पहुंच करेगी, परन्तु इसके रास्ते में अमरीका द्वारा बड़ी मुश्किलें खड़ी की जा रही हैं। अमरीका का यह दोष है कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की अदायगियां करना चाहता है, जोकि स्वीकार्य नहीं है। यदि पाकिस्तान को यह ऋण मिल भी जाता है तो भी इसकी शर्तें इतनी कड़ी होंगी कि उससे इमरान खान द्वारा लोगों के साथ जो बड़े-बड़े वायदे किए गए हैं, उनकी पूर्ति करनी मुश्किल हो जायेगी और लोगों में उनके विरुद्ध असंतोष बढ़ने लगेगा। आर्थिक स्तर के अलावा उनके समक्ष दूसरी बड़ी समस्या आतंकवाद की है। सेना और पाकिस्तान की पूर्व सरकारों की असमंजस वाली नीतियों के कारण तालिबान तथा अन्य आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में बहुत मजबूत हो चुके हैं। ताज़ा चुनावों के दौरान ही अलग-अलग पार्टियों के कई महत्त्वपूर्ण उम्मीदवार और सैकड़ों अन्य लोग आतंकवादियों के हमलों का शिकार हुए हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की धरती से ही आतंकवादी संगठन अफगानिस्तान और भारत के विरुद्ध परोक्ष जंग लड़ रहे हैं। ईरान के साथ भी पाकिस्तान के संबंध कोई ज्यादा अच्छे नहीं हैं। एकमात्र देश चीन है, जिसके साथ पाकिस्तान के संबंध अच्छे हैं। अमरीका सहित अधिकतर देशों के साथ पाकिस्तान के संबंध खराब बने हुए हैं। एक तरह से दुनिया के मंच पर पाकिस्तान अलग-थलग हो चुका है और उसको आतंकवादियों को उत्साहित करने वाला देश समझा जाता है। इमरान खान को प्रधानमंत्री के तौर पर मौजूदा समय में पाकिस्तान को उपरोक्त चुनौतियों से उभारना पड़ेगा और साथ ही पाकिस्तान के लोगों तथा खासतौर पर युवाओं को रोज़गार देने के और भ्रष्टाचार खत्म करने के जो उन्होंने बड़े-बड़े वायदे किए हैं, उनकी पूर्ति भी करनी पड़ेगी। एक तरह से 22 वर्षों तक लम्बा राजनीतिक संघर्ष करके प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे इमरान खान के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। यह तो समय ही बतायेगा कि इमरान खान इस चुनौती पर कितना पूरा उतरते हैं।