पंजाब में बढ़ता वृक्षों का अवैध कटान

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा पंजाब में बिस्त दोआब नहर और इसकी सहायक छोटी नहरों के किनारों के विस्तार और मुरम्मत के नाम पर 24,000 से अधिक वृक्षों को काटे जाने की विस्तृत जांच कराये जाने के निर्देश से एक बार फिर यह साबित होता है कि प्रदेश में वृक्षों के कटान और वनों का रकबा घटते जाने की घटनाएं बदस्तूर जारी हैं। जिन क्षेत्रों से ये वृक्ष काटे गये हैं, वह रकबा जालन्धर और नवांशहर ज़िलों से होकर गुजरता है। यह मामला कितना अहम् और गम्भीर है, इसका पता इस बात से भी चलता है कि ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब सरकार को निर्देश दिया है कि यह जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव के स्तर अथवा इससे ऊपर के किसी अधिकारी से करवाई जानी चाहिए। नि:संदेह नहरी तट पर 36.6 किलोमीटर पथ पर से वृक्षों का इतने बड़े स्तर पर अंधाधुंध संहार किया जाना कोई सामान्य अपराध जैसी घटना नहीं है। खासतौर पर पंजाब जैसे प्रांत में जहां पहले ही हरीतिमा और वृक्षों की बड़े स्तर पर कमी महसूस की जाती रहती है, वहां इस प्रकार की बड़ी घटना का हो जाना सचमुच एक बड़ी अपराधिक क्रिया है। यह भी एक घोर आश्चर्य वाली बात है कि इतने बड़े स्तर पर इतने विशाल रकबा में वृक्षों का काट लिया जाना, किसी भी बड़े-छोटे प्रशासनिक अधिकारी अथवा एजेंसी की नज़रों में क्यों नहीं आया। पंजाब में दरख्तों का अवैध कटान बड़ी लम्बी अवधि से होता आया है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में शहरी क्षेत्रों की बढ़ती सीमाओं एवं इस कारण निरन्तर घटते जाते वन क्षेत्र में भी वृक्षों के अवैध कटान को प्रभावी किया है। पंजाब में सड़कों के विस्तार और सड़क नव-निर्माण ने भी वृक्षों के जिस्म पर अवैध कटान की आरी/कुल्हाड़ी चलाई है। इसका नतीजा यह निकला है कि अधिकतर नव-निर्मित सड़कें अपने किनारों पर नंग-मनंग हो गई हैं। इसी कारण प्रदेश के वातावरण में तपन बढ़ी है, और इसी कारण पंजाब का पर्यावरण भी प्रभावित हुआ है। इस सब का विपरीत असर पंजाब की कृषि पर भी पड़ा है, और प्रदेश में कृषि उपज का उत्पादन बढ़ते जाने के बावजूद किसान की आर्थिकता विपरीत रूप से प्रभावित हुई है। वृक्षों का अवैध कटान पंजाब के अतिरिक्त हिमाचल और हरियाणा में भी होता आया है और इसका असर यदा-कदा मौसमों के बदलते मिज़ाज से भी आंका जा सकता है, परन्तु किसी एक क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में वृक्षों का अवैध कटान हो जाना आंखों में अवश्य खटकता है। बेशक तत्कालीन वन अधिकारी ने इस कटान को एक सामान्य घटना करार दिया है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है जैसे नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस कार्रवाई की तह तक जाने का फैसला कर लिया है। प्राय: वन क्षेत्रों में इस नियम का अनुसरण किया जाता है कि गिराये जाने वाले एक वृक्ष के मुकाबले में दो नये पौधे अवश्य रोपित किए जाएं और इन दोनों पौधों का संरक्षित पालन-पोषण भी किया जाए, परन्तु प्राय: देखने में आया है कि वृक्षों का कटान तो अवैध और अंधाधुंध तरीकाकार से हो जाता है, परन्तु नया पौधारोपण तत्काल अथवा नियमों के अनुसार नहीं होता जिससे बेतरतीब रोपित किए गए पौधों में बहुत कम समुचित लालन-पोषण पा सकते हैं। वन अधिकारियों ने यह भी तर्क दिया है कि यह क्षेत्र वन सीमा में नहीं आता, परन्तु नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दावा किया है कि बिस्त दोआब नहर और सम्बद्ध सहायक नहरों का तटीय इलाका बाकायदा वन क्षेत्र की सम्पत्ति है। हम समझते हैं कि सम्बद्ध विभागों को सीमा अधिकार क्षेत्र पर तर्क-वितर्क न करके इस एक मुद्दे पर केन्द्रित होना चाहिए कि इतने बड़े स्तर पर वृक्षों का अवैध कटान देर-सवेर पंजाब के सम्पूर्ण वातावरण और प्रदूषण को अवश्य प्रभावित करेगा। पंजाब में निरन्तर दरख्तों की छांव में भी धूप पल रही है, इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकतीं। सूर्य की गर्मी में इज़ाफा हुआ है और सड़कों के किनारे-किनारे चलने वाले मुसाफिरों और वाहनों के सिर पर छांव कम होती जा रही है। ऐसे में आवश्यकता तो यह है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में नये पौधों का रोपण किया जाए, परन्तु इसके विपरीत इस घटना की ही भांति प्रदेश अन्य स्थानों पर भी वृक्षों के अंधाधुंध कटान की घटनाएं बढ़ती जाती हैं। पंजाब में हिमाचल की भांति स्वत: उग आने वाले वृक्षों की संख्या भी कम रहती है। ऐसी स्थिति में, हम समझते हैं कि पंजाब में एक ओर जहां वृक्षों के कटान पर सख्ती से अंकुश लगाया जाना चाहिए, वहीं नये वृक्षों का पौधारोपण किया जाना भी उतना ही लाज़िमी है। आज यह भी ज़रूरत है कि पंजाब में जहां वनों के मौजूदा रकबे को कायम रखा जाए, वहीं वनों और सड़कों के किनारों पर तथा नहरी पथ-पट्टियों पर बड़ी तादाद में  फलदार वृक्षों को लगाया जाए। वृक्षों के अवैध कटान का मामला प्रशासनिक धरातल का है, परन्तु नये वृक्षारोपण के अभियान में सामाजिक संस्थाएं और जन-साधारण भी सहयोगी हो सकते हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पुरातन समय वाली पौधों को निजी अथवा पारिवारिक संरक्षण दिए जाने की प्रथा भी अपनाई जा सकती है। हम समझते हैं कि ऐसे संयुक्त सामाजिक एवं प्रशासनिक यत्नों से प्रदेश में वन-संरक्षण और पौधा-रोपण के लक्ष्यों को बड़ी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, जिससे हमारा पंजाब फिर से हरा-भरा हो सकता है।