क्या वाकई सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार से मुक्त हो गईं ?


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में एक आम सभा में दावा किया कि अब दिल्ली से सरकारी योजनाओं के जरिए भेजा गया एक रुपया पूरा का पूरा आम लोगों तक पहुंचता है। मोदी ने यह दावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उस स्वीकारोक्ति के संदर्भ में दिया, जिसमें गांधी ने कहा था कि दिल्ली से एक रुपया निकलता है तो 15 पैसे ही लोगों तक पहुंचते हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद क्या यह माना जाए कि केंद्र सरकार की सरकारी योजनाएं और उनसे संबंधित विभाग पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त हो गए हैं। 
प्रधानमंत्री ने जनसभा में लोगों से इस बात की ताकीद भी कराई कि सरकारी योजनाओं के लाभान्वितों को फायदा लेने के लिए रिश्वत नहीं देनी पड़ी। लेकिन प्रधानमंत्री यह भूल गए कि उस सभा में योजनाओं को क्रियान्वित करने वाले अफ सर भी मौजूद थे। लाभान्वितों को लगभग चेतावनी भरी भाषा में पहले ही समझा-बुझा कर लाया जाता है कि मुंह नहीं खोलना है।  पुलिस की व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद होती है कि कोई सिर नहीं उठा सके। अफ सरों और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में गरीब ग्रामीण जनता क्या इतना साहस दिखा पाती कि कह सके कि उन्हें रिश्वत देनी पड़ी या धक्के खाने के बाद ही फायदा मिल सका। यह स्थिति तो पानी में रहकर मगर से बैर करने वाली है। लाभान्वित को उसी क्षेत्र में रहना है। यदि एकबारगी यह मान भी लिया जाए कि सरकारी योजनाओं का फायदा लेने वाले लोगों ने वाकई में रिश्वत नहीं दी तो इसके मायने यही हुए कि केंद्र और राज्यों के सरकारी विभाग भ्रष्टाचार से मुक्त हो गए हैं।
क्या प्रधानमंत्री या राज्यों के मुख्यमंत्री यह दावा कर सकते हैं कि सरकारी विभाग पूरी तरह से गंगा नहा चुके हैं। अब किसी विभाग में कोई भ्रष्टाचार की गंदगी नहीं है। क्या ऐसे दावों को चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है। बेहतर होता कि प्रधानमंत्री अपने स्तर पर इस बात की ताकीद कराते कि राज्यों के माध्यम से क्रियान्वित होने वाली केंद्रीय योजनाएं भ्रष्टाचार से मुक्त हैं, फि र इसका खुलासा करते। प्रधानमंत्री के सामने लाभार्थियों ने बेशक मुंह नहीं खोला हो किन्तु सच्चाई यही है कि देश में केंद्र और राज्यों का एक भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है, जहां भ्रष्टाचार की गंदगी नहीं पसरी हो। आए दिन कर्मचारी से लेकर अफ सरों तक के काले कारनामों की खबरें छपती हैं। भ्रष्टाचार देश की जड़ों को निर्बाध गति से खोखला कर रहा है। देश की एक पत्रिका और चैनल के जरिए एक एजेंसी के संयुक्त सर्वे में भ्रष्टाचार की बहती गंगा का खुलासा किया गया। इस रिपोर्ट में बेरोजगारी के बाद भ्रष्टाचार को दूसरे नंबर पर बताया गया। अलबत्ता तो केंद्र और राज्यों के सत्ताधारी नेता ऐसी रिपोर्टों को स्वीकार ही नहीं करते। ज्यादा दबाव पड़ने पर रिपोर्ट को पूर्वाग्रह से प्रेरित होना करार देते हुए नकार देते हैं।
दरअसल, भ्रष्टाचार पर सत्तारूढ़ दल चाहे जितने गाल बजा लें किन्तु नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगौड़ों की हकीकत पर पर्दा नहीं डाल सकते। सरकारी बैंक प्रबंधन की मिलीभगत से हज़ारों करोड़ डूबने पर जीरो भ्रष्टाचार का दावा उल्टा पड़ता नज़र आता है। पनामा पेपर लीक दूसरा बड़ा उदाहरण है। पड़ोसी देश पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ  का नाम इसमें आने पर जेल जाना पड़ा। इसके विपरीत पनामा की सूची में शामिल एक भी भारतीय का बाल तक बांका नहीं हुआ। कारण साफ  है कि पनामा पेपरकांड में शामिल प्रभावशालियों का संबंध बॉलीवुड और उद्योग जगत से है। इन पर हाथ डालना किसी सरकारी एजेंसी के लिए शेर की मांद से शिकार लाने जैसा दुस्साहस भरा काम है। सीबीआई हो या प्रवर्तन निदेशालय किसी भी एजेंसी में इतना दम नहीं कि सरकार के इशारे के बगैर किसी बड़ी कार्रवाई का निर्णय अपने स्तर पर कर सके। यही वजह भी रही कि माल्या और मोदी इन एजेंसियों की आंखों में सुरमा लगा कर चंपत हो गए और एजेंसियां हाथ मलती रह गई। इनका प्रकरण उजागर होने और सरकार की भारी किरकिरी के बाद ही एजेंसियों की आंखें खुली, किन्तु तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी। अब एजेंसिया नाक बचाने के लिए विदेशों से उनका प्रर्त्यापण कराने में जुटी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार से लड़ने के इरादे कितने दमदार हैं। इसी तरह ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व के सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में शुमार है। विश्व के 180 देशों में भारत का भ्रष्टाचार में 81वां स्थान है। इस रिपोर्ट को भी केंद्र और राज्यों के सत्तारूढ़ दलों ने खारिज कर दिया। भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुंकार भरने वाली केंद्र सरकार फ्रांस से युद्धक विमान राफेल के अनुबंध पर जांच तक कराने को तैयार नहीं है। यदि किसी निष्पक्ष गैर सरकारी एजेंसी से इसकी जांच होती तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाता। यह निश्चित है कि जब तक भ्रष्टाचार के मुद्दों पर पर्दा डाला जाता रहेगा तब तक सत्ता में कोई भी दल हो, सबकी नीयत पर संदेह की उंगलियां उठती रहेंगी। प्रधानमंत्री के केवल चुनिंदा लोगों से हां भरवाने भर से भ्रष्टाचार न तो आज मिटा है और न ही आने वाले कल में मिट सकेगा। इसे जड़ से उखाड़ने के लिए राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्ति, ईमानदारी और पारदर्शिता लानी होगी।