नोटबंदी की सालगिरह

कैलेंडर के पन्ने बदलते-बदलते फिर से नवम्बर आने को है। 2 साल पहले इसी महीने की 8 तारीख को सरकार ने नोटबंदी लागू की थी। प्रधानमंत्री के उस तुरत फुरत फैसले से किसको कितना फायदा हुआ और किसको नुक्सान...। इससे दादी को कोई लेना देना नहीं है। उनके लिए तो सरकार का यह फरमान बहू लक्ष्मी के साथ उनके मधुर रिश्ते की नींव बन गया था। दादी को आज भी याद है 8 नवम्बर की वो काली रात जब टीवी पर राष्ट्र के नाम विशेष संबोधन में प्रधानमंत्री जी ने अचानक यह घोषणा की थी कि आज रात 12 बजे से 1000 और 500 के पुराने नोट रद्द समझे जायेंगे। सुनते ही दादी का कलेजा हलक में अटक गया था। वह भी एक आम नागरिक की ही भांति भड़क उठी थीं।  
‘सत्यानाश हो मुई सरकार का! भला ऐसे भी कोई तुगलकी फरमान जारी करता है क्या? कितनी आसानी से कह दिया। ‘कल से 1000 और 500 के नोट बंद...’ जैसे नोट नहीं किसी बच्चे का टूटा हुआ खिलौना हो..। झट से उठा कर बाहर फैंक दिया...। दादी ने जैसे ही टीवी पर यह खबर सुनी उन्होंने अपने पोते रमेश को बुलाकर उससे खबर की सच्चाई के बारे में पूछा और खबर के सही होने की बात सुनते ही उनके होश उड़ गए थे। कितना कोसा था उन्होंने सरकार को..। सुन कर रमेश को हँसी आ गई थी। बोला-‘दादी! तुम तो ऐसे परेशान हो रही हो, जैसे कहीं कालेधन का खजाना दबा रखा हो..। अरे! इसमें डरने की कोई बात नहीं है, तुम्हारे पास अगर 1000 और 500 के कोई नोट हैं तो तुम मुझे दे देना, कल बैंक से बदली करवा लाऊंगा।’  बाहर से शांत दादी का मन भीतर से बहुत अशांत था। उस रात तो खाना भी उन्होंने टीवी के सामने ही बैठ कर खाया था। इधर-उधर घूमते हुये भी उनके कान टीवी पर ही लगे थे। वह अपने हाव-भाव जितना छिपाने की कोशिश कर रही थी, बहू लक्ष्मी यानि रमेश की माँ का उन पर उतना ही शक बढ़ रहा था कि हो न हो दादी ने अपने संदूक में पैसे छिपा रखे हैं मगर उसकी कीमत का वह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी। लक्ष्मी मन ही मन खुश हो रही थी। वह उन्हें सुनाते हुए कितना अकड़ कर बोली थी। ’ अब पता चलेगा कि किसने कितना कालाधन छिपा रखा है।’ उसकी मुस्कराहट दादी को फूटी आँख नहीं सुहाई थी और उन्होंने बहू को डांट दिया था। चुप कर! तुझे बहुत समझ है ना कालेधन की!’ सोच कर आज भी दादी के पोपले मुँह पर मुस्कान तैर गई। उस रात जब सब लोग सो गये थे तो दादी ने अपने कमरे में जाकर पलंग के नीचे से अपना दहेज में मिला पुराना कलकत्ता वाला बक्सा निकाला। दरवाजे और खिड़कियों पर परदे डाल लिए और नीचे फर्श पर दरी बिछा कर धीरे से बक्सा खोला। एक बार फिर इधर-उधर देखते हुए बक्से में से एक लाल रंग का गमछा निकाला। बड़े प्यार से उसे सहलाया और आहिस्ता-आहिस्ता उसकी परतें खोलीं। गमछे के भीतर 500.1000 के कुछ नोट आराम फरमा रहे थे। दादी ने गिना..। 1.2.3...। मगर अंगूठा छाप दादी 25 से ज्यादा नहीं गिन पाई थी। जब वे नोटों की सही संख्या का अंदाजा नहीं लगा सकी तो कुछ निराश सी हो गई थी। ‘जिन हरे-गुलाबी नोटों को देखते ही कलेजे में ठंडक सी पड़ जाती थी, आज उन्हीं के कारण दिलोदिमाग में आग लगी है..। अब बहू-बेटे के सामने सारी बचत का पर्दाफाश हो जायेगा..। क्या जरूरत थी सरकार को जल्दबाज़ी में ऐसा बेअक्ली फैसला लेने की...।’ दादी कुछ भी सोच नहीं पा रही थी। उन्होंने एक बार फिर अपने नोटों को जी भर के निहारा और फिर से उन्हें लाल गमछे में लपेट कर बक्से में रख दिया।