पंजाब के ज्वलंत मामलों की ओर ध्यान दें राजनीतिक पार्टियां

चाहे विधानसभा के इस विशेष सत्र का एजैंडा जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा करना था, परन्तु कांग्रेस के मंत्रियों, विधायकों तथा आम आदमी पार्टी के विधायकों ने बहस को रिपोर्ट तक सीमित नहीं रखा, अपितु बहस गत तीन-चार दशकों में अकाली दल और उसके नेताओं की समूची राजनीति पर चर्चा में बदल गई और अकाली दल तथा उसके नेताओं द्वारा इस लम्बे समय के दौरान अदा की गई भूमिका की अपने ही ढंग से व्याख्या करके उनको हर बुरी चीज़ के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया। यहां तक कि प्रकाश सिंह बादल को ऑप्रेशन ब्लू स्टार के लिए भी ज़िम्मेदार ठहरा दिया गया, जबकि पूरी दुनिया जानती है कि ऑप्रेशन ब्लू स्टार उस समय की श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा किया गया था और इसके बाद नवम्बर ’84 में हुए सिख कत्लेआम के पीछे भी कांग्रेस पार्टी का बड़ा हाथ था। यही बस नहीं, इन दोनों बड़ी घटनाओं के बाद पंजाब में जो खाड़कूवाद पैदा हुआ, उस दौरान बड़े स्तर पर जो राज्य और राज्य से बाहर झूठे पुलिस मुकाबले बनाकर सिख युवाओं को जैसे मारा गया, उसमें भी कांग्रेस की केन्द्र में रही सरकारों का बड़ा हाथ रहा है। वैसे इस समय के दौरान केन्द्र में भाजपा की बनी सरकारों को भी इस संबंध में बरी नहीं किया जा सकता।परन्तु विधानसभा में हुई इस बहस के बाद पंजाब में जो राजनीतिक तथा धार्मिक माहौल बना है, उससे कांग्रेसी, आम आदमी पार्टी और बादल विरोधी सिख संगठनों में काफी खुशी और संतुष्टि पाई जा रही है। इन सभी गुटों को लगता है कि इस बहस से जो अकाली दल का नुक्सान हुआ है, उससे कुछ ही दिनों के बाद होने वाले पंचायत चुनावों, उसके बाद होने वाले लोकसभा तथा शिरोमणि कमेटी के चुनावों के दौरान उपरोक्त सभी अकाली दल विरोधी पार्टियों को बड़ा राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में फायदा हो सकता है। इन अनुमानों में कुछ सीमा तक सच्चाई भी हो सकती है। परन्तु पंजाब के सचेत क्षेत्र, जिन्होंने 80 के दशक से 90 के दशक के दौरान पंजाब में हुए खूनी घटनाक्रम को निकट से देखा है और उसमें पंजाबियों और खासतौर पर सिख समुदाय का जो बड़ा जानी, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक नुक्सान हुआ है, उनके राज्य में बन रहे मौजूदा तनावपूर्ण माहौल के कारण कान खड़े हो गए हैं। इन क्षेत्रों का विचार है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की अकाली-भाजपा सरकार के दौरान हुई बेअदबी तथा उसके बाद हुए घटनाक्रम की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों को सज़ा तो अवश्य दी जानी चाहिए और पीड़ितों को न्याय तथा उनकी पूर्ण पुन: बहाली भी होनी चाहिए परन्तु इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक पार्टियों द्वारा राजनीति नहीं की जानी चाहिए। इससे राज्य का माहौल पुन: बिगड़ सकता है। भावनाएं भड़काई जाती रही तो राजनीति में हिंसा पुन: प्रवेश कर सकती है। इसके साथ ही पंजाब के लोगों को ज्वलंत मामले भी सरकार और विपक्षी पार्टियों के एजेंडे से गायब हो सकते हैं। इस समय की स्थिति यह है कि पंजाब एक तरह से उजड़ रहा है। दो-तीन किसान और खेत मज़दूर हर रोज़ आत्महत्याएं कर रहे हैं। स्तरीय शिक्षा से वंचित युवक अपराधों की दुनिया में प्रवेश करते जा रहे हैं। कुछ गिरोह बनाकर बैंक लूट रहे हैं। कुछ लोगों से वाहन छीन रहे हैं और कुछ नशे खाने और नशे बेचने के काले धंधे की ओर रुचित हो रहे हैं। अधिक नशा करके नौजवानों के मरने के समाचार भी बड़े स्तर पर हर रोज़ सामने आ रहे हैं। गैंगस्टर बनकर युवक एक-दूसरे को भी मार रहे हैं। लोगों से फिरौतियां भी वसूल रहे हैं और लोगों के जान-माल के लिए बड़े खतरे भी पैदा कर रहे हैं। आर्थिक संकट के कारण और राजनीतिज्ञों की मिलीभगत के कारण नकली दूध, पनीर, देसी घी और खाने-पीने वाली अन्य मिलावटी चीज़ें बनाने का धंधा भी राज्य में जोर-शोर से चल रहा है, जो लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल रहा है। कृषि और उद्योगों के कारण पैदा हो रहे प्रदूषण का सही तरह से निपटारा न किये जाने के कारण राज्य में प्रदूषण एक गम्भीर समस्या बन चुका है। वैसे राज्य की कृषि और उद्योग रोज़गार के दोनों क्षेत्र स्वयं भी संकट में हैं। भूमि निचले जल का स्तर नीचे चला गया है और यह पीने तथा सिंचाई के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा, इस कारण लोग गम्भीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। राज्य में अपना कोई भी भविष्य न देखकर बहुत सारे युवक विदेशों को उड़ान भरने के लिए मजबूर हैं। सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों की कोई विश्वनीयता नहीं रही। इनके कामकाज़ में बड़े स्तर पर गिरावट आ चुकी है। पुलिस स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कार्य करने की बजाय पहले की तरह सत्ताधारियों की कठपुतली बनी हुई है और लोगों की लूट-खसोट कर रही है। यह अलग-अलग क्षेत्रों में बनी हुई विस्फोटक स्थिति मांग करती है कि राज्य की कैप्टन सरकार और सभी विपक्षी पार्टियां अपने मतभेद भुलाकर एक मंच पर बैठें और इन सभी समस्याओं के बारे में विधानसभा में एक-एक दिन के विशेष सत्र रखकर व्यापक रूप में चर्चा करें। एक-दूसरे को दोषी ठहराने की बजाय इन मामलों के हल ढूंढने की ओर विशेष तौर पर जोर दें। जो समस्याएं राज्य स्तर पर सरकार हल कर सकती है, उनको सरकार स्वयं हल करे और विपक्षी पार्टियां उसे सहयोग दे और इन समस्याओं के लिए केन्द्र के सहयोग की ज़रूरत है, उनके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट होकर केन्द्र का द्वार खटखटायें। पंजाब के लिए इस समय अस्तित्व का संकट बना हुआ है। हर क्षेत्र में आपात्काल जैसी स्थिति है और यदि सत्ता पक्ष और विपक्ष उपरोक्त मुद्दों को छोड़कर अन्य मुद्दों पर लोगों की भावनाएं भड़काने के रास्ते पर चलेंगे तो इस समूची कवायद से पंजाब तथा पंजाब के लोगों के हाथों में कुछ भी नहीं आयेगा, उल्टा राज्य में हिंसा पुन: लौट आयेगी, जिसकी अधिक आंच पहले की तरह आम लोगों को ही लगेगी। वैसे चाहे कुछ राजनीतिक पार्टियों को राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में इसका कुछ लाभ चाहे मिल जाए। राज्य की राजनीतिक पार्टियों के अलावा देश-विदेश में बसते समूह पंजाबियों और खासतौर पर सिख समुदाय को भी इस संदर्भ में सचेत होकर सोचने की ज़रूरत है कि क्या उन्होंने राजनीतिक पार्टियों की कठपुतलियां बनकर उनके हित पूरे करने हैं, या पंजाब को पुन: पांवों पर खड़ा करने और यहां के गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के भविष्य को संवारने के लिए अपनी ओर से कोई सकारात्मक भूमिका अदा करनी है।