दर्द और संघर्ष की दास्तान है एथलीट पूजा यादव हरियाणा

‘लड़खड़ा कर गिरे थे हम कमबख्त शरीर ने साथ था तोड़ा, लेकिन बचा रहा दिल में हौसला और जुनून थोड़ा-थोड़ा।’ पूजा यादव दर्द और संघर्ष की दास्तान हैं और बुलंद हौसले की मिसाल हैं। इसलिए तो वह ज़िन्दगी में आए ़खतरनाक हादसों के साथ हिम्मत और दलेरी से लड़ती रही और आज वह खेलों के क्षेत्र में स्वयं में एक मुकाम हैं। पूजा यादव का जन्म पिता कालिया यादव के घर माता सुनीता यादव की कोख से 13 जनवरी, 1988 को एक कस्बानुमा गांव धारूहेड़ा ज़िला रिवाड़ी, हरियाणा प्रांत में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। पूजा यादव का बचपन पारिवारिक खुशियों में बीता, क्योंकि पूजा यादव माता-पिता की इकलौती लाडली बेटी थी और परिवार में छोटी। लेकिन वर्ष 2005 पूजा यादव के लिए ऐसा मन्हूस आया कि पूजा की ज़िन्दगी के मायने ही बदल गए। पूजा दसवीं कक्षा की छात्रा थीं और स्कूल की ओर से छुट्टियां चल रहीथी तो खेत में घर होने के कारण वह अपने खेतों की चहल-पहल देख रही थी, तभी अचानक वह खेत में बने कुएं में जा गिरी। उसकी चीखें सुनकर पारिवारिक सदस्य भागे आए और बड़ी मुश्किल से पूजा को कुएं से बाहर निकाला गया। घायल अवस्था में पूजा को डाक्टर के पास ले जाया गया, जहां उसका उपचार तो हो गया, लेकिन पूजा अब चल पाने से हमेशा के लिए असमर्थ हो गई। उनकी रीढ़ की हड्डी क्रैक हो गई। माता-पिता ने  बहुत उपचार करवाया लेकिन पूजा ठीक न हो सकी और कभी उच्च कोटि की खिलाड़ी बनने के सपने लेने वाली पूजा यादव अब बिस्तर पर ही लेट कर अपनी नियति पर पछतावा करने लगी। अंजाम इससे और भी बुरा हुआ कि कई वर्ष बिस्तर पर लेटने के कारण उनके शरीर पर गहरा घाव हो गया। आखिर सर्जरी करवा कर उनके शरीर के घाव तो भर दिए गए लेकिन अभी दिल पर पड़े घावों को साफ करने के लिए पूजा के पास कोई दवाई नहीं थी। पूजा की मां कैंसर की नामुराद बीमारी से पीड़ित थी और वर्ष 2002 में वह भी पूजा का साथ छोड़ गई और पूजा के पास सिर्फ रोने के अलावा कोई चारा नहीं था। बस! उनका सहारा था तो उनकी व्हीलचेयर, जिसके सहारे वह अपना आप सवार लेती थी। ‘मंज़िल लाख कठिन हो जाए तो गुज़र जाएंगे, अगर हौसले हार कर बैठ गए तो मर जाएंगे।’ पूजा ने घर की दहलीज़ के बाहर कदम रखा और बाहर जाकर उनको ज़िन्दगी गतिशील लगी। वर्ष 2016 में उनकी मुलाकात एथलैटिक के कोच सतवीर सिंह से हुई और उन्होंने पूजा को पैरा अर्थात् अंगहीन खेलों के बारे में जानकारी दी और उनको व्हीलचेयर पर ही खेलने की सलाह दी। पूजा को लगा कि उनका बचपन में संजोया सपना शायद अब पूरा हो सकेगा और पूजा ने पूरे हौसले के साथ अपनी व्हीलचेयर खेल के मैदान में उतार दी और कोच सतबीर सिंह उनको एथलैटिक में तराशने लगे और वर्ष 2017 में जयपुर में हुई 17वीं पैरा नैशनल एथलैटिक चैम्पियनशिप में भाग लिया, जहां शॉटपुट अर्थात् गोला फैंकते हुए उन्होंने कांस्य पदक हासिल करके अपने कोच की झोली खुशियों से भर दी। वर्ष 2018 में पंचकूला में हुई 18वीं पैरा एथलैटिक चैम्पियनशिप  में पूजा यादव ने शॉटपुट, जैवलिन और डिस्कसथ्रो में 2 स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीत कर अपना और अपने प्रांत का नाम ऊंचा किया। पूजा भरे मन से कहती हैं कि चाहे उनकी मां उनको कभी नहीं भूलती लेकिन उनकी मौसी बबली देवी जोकि उनके चाचा भीम सिंह के घर ही ब्याही हुई है, उन्होंने उसकी और उनकी बड़ी बहन की परवरिश करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी और मां से अधिक प्यार दिया और पूजा यादव का निश्चय है कि वर्ष 2020 में टोक्यो में होने जा रही ओलम्पिक में वह अपनी जगह बनाए और वह स्वर्ण पदक जीत कर भारत माता की शान बढ़ाए।