नोटबंदी की सालगिरह

सुबह होते ही दादी अखबार वाले का इंतजार करने लगी थी। श्पता नहीं आज इसे भी क्या हो गया...रोज तो अब तक आ जाता है’ दादी अपनी बेचैनी को छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी। तभी मोटर साइकिल की जानी-पहचानी आवाज़ सुन कर दादी फौरन दरवाजे की तरफ लपकी। अखबार वाले से अखबार की एक और प्रति मांगी तो उसने सहज ही पूछ लिया. ‘एक और क्यों?’
‘तुझे इससे क्या? तू अपने काम से काम रख ना!’ दादी ने उसे झिड़क दिया था।
दादी अखबार की दूसरी प्रति ले कर राम प्रसाद की दुकान की तरफ  चल दी। सोचा वहां आराम से बैठ कर पूरी खबर पढ़वाउंगी, तभी कुछ पल्ले पड़ेगा। टीवी वाले की बात तो आधी-अधूरी ही समझ आई थी।’
करीब 11 साल पहले जब पति की मृत्यु हुई तो दादी गाँव से यहाँ अपने इकलौते बेटे राधे श्याम के पास रहने आ गई। रमेश की दादी होने के नाते लक्ष्मी भी उन्हें दादी ही संबोधित करने लगी और धीरे-धीरे पूरा मोहल्ला उन्हें दादी कहने लगा। इस तरह देखते ही देखते वे जगत दादी बन गई। 
राधेश्याम शहर में एक प्राइवेट स्कूल चलाता है। कुल 10 जनों के टीचिंग स्टाफ  के साथ-साथ लक्ष्मी भी स्कूल के काम में उसका हाथ बंटाती है। दोपहर स्कूल की छुट्टी होने तक दोनों बेटा बहू व्यस्त रहते हैं इसलिए दादी स्कूल के सामने बने ‘जनता जनरल स्टोर’ वाले राम प्रसाद की माँ के पास जाकर बैठ जाती है। 
‘अब ये तो सरासर तानाशाही है ना! कोई इस तरह अचानक चालू नोट बन्द करता है क्या? न जाने कितने लोग रास्ते पर आ जायेंगे सरकार के इस बेतुके फैसले से...’  दादी बड़बड़ाती हुई अखबार बगल में दबाए रामप्रसाद की दुकान की तरफ चल दीण्
‘आओ दादी! आज बगल में क्या छिपा कर लाई हो?’ रामप्रसाद ने परिहास किया था।
‘अब छुपाने को रहा ही क्या है भैया! जो कुछ छिपा था वो तो मुई सरकार ने एक ही झटके में रद्दी कागज में बदल दिया।’ 
‘क्या हुआ दादी? बहुत परेशान लग रही हो रामप्रसाद ने पुछा
‘इस अखबार में पुराने नोटों के बारे में क्या लिखा है, ज़रा विस्तार से पढ़ कर बताओ तो। इसके हिसाब से अब लोगों को क्या करना चाहिए?’ दादी ने अखबार उसकी तरफ  बढ़ाते हुए पूछा।
‘नए नोट लागू करने और पुराने नोट चलन से बाहर करने की इस सारी प्रक्रिया में कई तरह की समस्याएं आएँगी। तुम बताओ तुम्हारी क्या समस्या है? क्या तुमने भी कहीं कालाधन छुपा रखा है?’ रामप्रसाद ने अखबार खोलते हुए कहा। उसे भी अब चर्चा में आनन्द आने लगा था।
‘तुम तो जानते हो रामप्रसाद कि हमारे देश में लगभग हर गृहिणी की आदत होती है कि वह अपने परिवार की नज़रों से छिपा कर कुछ पैसे मुश्किल वक्त के लिए बचा कर रखती है। ऐसे में अगर उसे सबके सामने अपनी बचत जाहिर करनी पड़ी तो उसका राज खुल जायेगा और अगर वह जाहिर नहीं करेगी तो उसकी पाई-पाई जोड़ कर बचाई हुई रकम कुछ दिन बाद ही कागज के टुकड़ों में बदल जाएगी। दादी ने असली शंका सामने रखी।