बेटियों के प्रति सोच बदलना ज़रूरी

बेटियां हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं। इसी से ही समाज का अस्तित्व है। हमें आधुनिक समय की सोच को बदलना चाहिए बेटियों के प्रति। महिला सिर्फ मां और बेटी, बहन नहीं होती बहू भी घर की बेटी ही होती है। समाज अपने लाभ और नुक्सान के अनुसार ही औरत को सम्मान देता है और अपनी सोच को रखता है। हकीकत यह है कि आज कोई भी उससे (बेटी) से इन्साफ नहीं करता। आज की सोच अलग है। आज के माता-पिता बेटी को पैदा भी नहीं होने देते, क्योंकि  बेटी पैदा बाद में होती है, दहेज की परेशानी पहले हो जाती है। लेकिन बेटी इतनी भी बुरी नहीं। अगर आप उसको सम्मान देंगे तो वह भी आपका नाम रौशन करेगी। आज के समय में जितनी मज़ारी  बेटी बचाओ की बात कर लें, चाहे जितनी मज़ारी  मुहिम चला लें। बेटी की शादी के लिए उसके खर्चों को देखा जाता है। सबका हिसाब लगाया जाता है। लेकिन बेटे की शादी के समय ऐसा क्यों नहीं होता। बेटियां माता-पिता का ध्यान अधिक रखती हैं। अपने ससुराल जाकर भी वह अपने माता-पिता को नहीं भूलती और साथ-साथ अपने ससुराल का भी ध्यान रखती है। बेटी को भी बेटे की तरह ही पढ़ाना लिखाना चाहिए। बल्कि उससे भी ऊपर रखना चाहिए। वह बेटे से भी आगे निकलती है और माता-पिता का साथ देती है हर कदम पर। आज के लोग कहते तो बहुत हैं ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ लेकिन यह पंक्ति सिर्फ लिखी ही रह जाती है या तो सड़कों के किनारों पर, पोस्टर पर, टी.वी. में भी। बनने को तो बहुत कुछ अच्छा बन सकता है, लेकिन सोच होनी चाहिए ऐसी। कथनी और करनी में बहुत अंतर है। जिस प्रकार हम आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहे हैं, नई खोज कर रहे हैं। हमें अपने मन के विचारों को भी बदलना चाहिए। लड़की को पढ़ा कर पैसों की दुहाई डालना बंद करो। जितनी देर माता-पिता घर, परिवार वाले बेटी के प्रति सोच नहीं बदलते, समाज की भी सोच नहीं बदल सकती। अपनी बेटी को खुले आसमान में उड़ने दो, शक नाम की प्रवृत्ति को मन से निकाल दें। जितना बेटी को दबाओगे वह उतनी कमज़ोर होगी। लड़कियों की भावनाओं को समझें, उन पर विश्वास रखें। अगर घर वालों का विश्वास बेटी पर होता है तो उसको किसी  का कोई डर नहीं होता, अपने सपने पूरे करने का। बेटियों प्रति सोच बदलो, सोच बदलो।