बेलगाम हुईं तेल की कीमतें


गत काफी दिनों से पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में लगातार हुई वृद्धि ने आम लोगों की मुश्किलों में भारी वृद्धि की है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के समय भी पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में वृद्धि होती रही थी। इसके साथ अन्य खाद्य वस्तुओं के मूल्य भी लगातार बढ़ते रहे थे। भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार भी प्रभावशाली ढंग से कीमतों की वृद्धि पर काबू नहीं पा सकी। चाहे पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जोड़ी जाती है। जब तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल के मूल्य बढ़ाये जाते हैं या उनके द्वारा उत्पादन कम कर दिया जाता है तो दुनिया भर में तेल के मूल्य बढ़ने का संकट गम्भीर होने लगता है। इस बार अधिकतर तेल उत्पादक देशों ने अपने उत्पादन को काफी सीमा तक कम कर दिया है। केन्द्र सरकार के अनुसार ईरान और वेन्जुएला में पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता का भी इस पर बड़ा असर पड़ा है। दूसरी तरफ अमरीकी डॉलर की भारतीय रुपए के मुकाबले कीमत बढ़ते जाने ने भी पेट्रोल के मूल्य 
बढ़ा दिए हैं। 
चाहे सरकार ने यह कहा है कि इन पदार्थों में हुई वृद्धि अस्थायी है और वह अपने प्रयासों से शीघ्र ही स्थिरता लायेगी परन्तु इसके साथ-साथ आम लोगों का परेशान होना स्वाभाविक है, क्योंकि तेल की बढ़ती कीमतों के कारण ढुलाई के किराये भाड़े और लोगों के सफर आदि पर सीधा असर पड़ता है। इन उत्पादों पर केन्द्र द्वारा एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाती है और राज्यों द्वारा अलग वैट वसूल किया जाता है। आम लोगों तथा विपक्षी राजनीतिक पार्टियों की मांग यह है कि केन्द्र और राज्य सरकारें लगाये इन टैक्सों को कम करें ताकि मुश्किल में फंसे आम लोगों का जीवन आसान हो। राजस्थान, केरल और आंध्र प्रदेश आदि ने वैट दरों को कुछ कम किया था और जिससे इन राज्यों में 2 से अढ़ाई रुपए तक तेल की कीमतें कम हुई हैं। परन्तु केन्द्र सरकार तथा अन्य राज्य ऐसा करने से कन्नी कतरा रहे हैं। विपक्षी पार्टियों और खासतौर पर कांग्रेस को पैदा हुई इस स्थिति के कारण सरकार को निशाना बनाने का एक अवसर अवश्य मिल गया है। दिल्ली में 21 पार्टियों के नेता पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती कीमतों के विरोध में घोषित भारत बंद को प्रोत्साहन देने के लिए एकजुट हुए देशभर में कई स्थानों पर इस संबंधी बड़े प्रदर्शन और रोष-प्रदर्शन भी किए गए। कई स्थानों पर यह प्रदर्शन हिंसक भी हुए और आम लोगों को मुश्किल से गुजरना पड़ा। परन्तु कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर आगामी समय में अपनी राजनीति को गर्म रखने की नीयत रखती है। इसीलिए उसका यह प्रयास था कि इस संबंध में अधिक से अधिक पार्टियां एकजुट हों। चाहे उत्तर प्रदेश की बड़ी पार्टियों ने इस बंद का समर्थन तो किया परन्तु इसके प्रति ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई, न ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इसके बारे में अपनी पार्टी की ओर से कोई बड़ा समर्थन दिया। परन्तु इसके बावजूद कांग्रेस आगामी समय को मुख्य रखते हुए अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ाने में अवश्य सफल हुई है। 
आगामी समय में लोकसभा के चुनाव निकट आने के कारण विपक्षी पार्टियां यह प्रयास अवश्य कर रही हैं कि वह एक महागठबंधन बनाकर भाजपा का मुकाबला करें, परन्तु व्यवहारिक रूप में यह महागठबंधन कितना सफल होगा, इसके बारे में कुछ कहा जा सकना मुश्किल प्रतीत होता है। इस समय केन्द्र सरकार की यह बड़ी ज़िम्मेदारी अवश्य बन जाती है कि वह हर हाल में इस समस्या को हल करने का प्रयास करे ताकि लोगों पर बढ़ते वित्तीय बोझ और इस कारण हर पक्ष से महंगाई में होने वाली वृद्धि को रोका जा सके। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द