केन्द्र की नई खरीद नीति

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत चार वर्षों में अनेक बार यह बयान दिए हैं कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी की जायेगी। इस दिशा की ओर उन्होंने कई कदम भी उठाये और योजनाएं भी तैयार की हैं। इसी नीति के अधीन धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बड़ी वृद्धि करने की घोषणा की गई थी। परन्तु दूसरी तरफ कृषि का धंधा अनेक कठिनाइयों में फंसा नज़र आता है। किसानों का एक बड़ा हिस्सा ऋण के बोझ तले दबा पड़ा है। देश भर में नित्य दिन किसानों द्वारा आत्महत्याएं करने के समाचारों में वृद्धि होती जा रही है। देश के जिन हिस्सों में पानी की कमी है, वहां कृषि का संकट और भी गम्भीर हो जाता है। चाहे कुछ फसलों के बड़े पैमाने पर मंडीकरण के प्रबंध अवश्य किए गए हैं, परन्तु फलों, सब्ज़ियों तथा अन्य अनेक तरह के अनाजों के लिए मंडीकरण के ऐसे प्रबंध न होने के कारण अक्सर या तो मंडियों में इनकी बाढ़ आ जाती है या इनकी कम उपज के कारण यह महंगी हो जाती है। कुछ फसलों का उत्पादन लोगों की ज़रूरत के अनुसार अधिक होने लगा है, परन्तु इनका उचित रख-रखाव न होने के कारण फसल के बड़े हिस्से का नुक्सान हो जाता है, जिसका असर किसी न किसी तरह समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। जहां तक खाद्य वस्तुओं में इस्तेमाल किए जाने वाले अलग-अलग तरह के तेलों का संबंध है, उनकी देश में उपज कम होने के कारण बड़ी मात्रा में बाहर से आयात किया जाता है। इस समूचे व्यापार में अमरीकी डॉलर का प्रयोग होता है, जिसका भारतीय रुपए से बड़ा अन्तर है, जिस कारण आयात किए जाने वाले अनेक तरह के खाद्य पदार्थों के लिए अधिक कीमत अदा करनी पड़ती है। कृषि को लाभदायक धंधा बनाने के लिए अनेक ही तरह के बड़े कदमों की आवश्यकता है। गत दिनों प्रधानमंत्री ‘अन्नदाता आय संरक्षण’ योजना के अधीन तीन अलग-अलग योजनाओं का ऐलान करके केन्द्र सरकार द्वारा इस दिशा में एक बड़ा और अच्छा कदम उठाया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का लाभदायक  मूल्य मुहैय्या करवाना है। इन तीनों योजनाओं में से पहली मूल्य समर्थन योजना (पी.एस.एस.) है, जिसके अनुसार राज्य सरकारों और केन्द्रीय नोडल एजेंसी की हिस्सेदारी से केन्द्र सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद होगी, जिस तरह कुछ राज्यों में पहले हो रही है। दूसरी योजना प्राइस डेफिशिएन्सी पेमैंट स्कीम (पी.डी.पी.एस.) है। इसके अधीन यदि बाज़ार में सरकार द्वारा घोषित किए गए समर्थन मूल्य से किसानों को संबंधित फसल का कम मूल्य मिलता है, तो किसानों के घाटे की पूर्ति सरकार करेगी। तीसरी योजना प्राइवेट प्रॉक्योरमैंट एण्ड स्टोकिस्ट स्कीम (पी.पी.एस.) है, जिसके अधीन फसलों की खरीद में निजी व्यापारियों की सहायता ली जायेगी। केन्द्र सरकार ने नई खरीद नीति के लिए 15,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि आरक्षित रखी है, जिसको आधार बनाकर लाभदायक मूल्यों को स्थिर रखने की योजनाएं तैयार की गई हैं। इनमें राज्यों की भी हिस्सेदारी होगी। इसी योजना के तहत सरकार द्वारा तेल बीजों के औसत मूल्य के अन्तर की अदायगी भी की जायेगी। इसके साथ-साथ गन्ने से इथानॉल बनाने के लिए संबंधित चीनी मिलों को भी बड़ी सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है, ताकि यातायात के क्षेत्र में प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए पेट्रोल तथा डीज़ल के साथ-साथ इस तेल का प्रयोग भी किया जा सके। सरकार की घोषित योजनाएं यदि व्यवहारिक रूप में सफल होती हैं, तो इनसे किसानी के धंधे को अच्छी राहत मिलने की सम्भावना बन सकती है। कृषि के क्षेत्र में किसानों के लिए बनाई जाने वाली योजनाएं लगातार जारी रहनी आवश्यक हैं, ताकि इस धंधे पर छाये बादल कुछ सीमा तक छंट सकें और किसानों को कुछ राहत मिल सके। ऐसी व्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने में सहायक हो सकेगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द