आम आदमी पार्टी द्वारा किए जा रहे हैं एकता के लिए प्रयास

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के नेतृत्व में 17 से 19 सितम्बर तक दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘भारत का भविष्य’ नाम का खुला कार्यक्रम करवाया जा रहा है, जिसमें पहले 500 ऐसे व्यक्ति बुलाए जाने का इरादा था, जो प्राथमिक तौर पर आर.एस.एस. से जुड़े नहीं हुए परन्तु ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार अब एक हज़ार व्यक्तियों को बुलाया गया है, जिनमें धार्मिक नेता, फिल्म स्टार, खिलाड़ी, बड़े-बड़े उद्योगपति तथा व्यापारी, पूर्व जज, पूर्व सैन्य प्रमुख तथा 60 देशों के राजनयिक भी शामिल हैं। इस कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तथा कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी को भी बुलाये जाने की चर्चा है। हमारी जानकारी के अनुसार इस समारोह में ज़िंदगी के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी 90 के लगभग धार्मिक शख्सियतें, बुद्धिजीवी तथा अन्य क्षेत्रों में प्रसिद्धि हासिल करने वाले सिख भी विशेष तौर पर बुलाये जा रहे हैं। इस कार्यक्रम द्वारा आर.एस.एस. के कार्य, कार्यशैली तथा विचारधारा के बारे में फैली कथित ‘भ्रांतियों’ (गलतफहमियों) को स्पष्ट करने की कोशिश की जायेगी। पहले दो दिन आर.एस.एस. किस तरह का भारत चाहता है और इसके लिए क्या किया जा सकता है, के बारे में भाषण शृंखला चलाई जायेगी। अंतिम दिन प्रश्न-उत्तर का दिन होगा। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों और उससे भी पहले कुछ प्रमुख राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा विरोधी इन चुनावों से बिल्कुल पहले करवाये जा रहे इस कार्यक्रम को इन चुनावों में आर.एस.एस. की भाजपा की सहायता करने की नीयत से करवाया जा रहा कार्यक्रम बता रहे हैं। परन्तु संघ अधिकारियों का कहना है कि वह इस कार्यक्रम के लिए तीन वर्ष से तैयारियां कर रहे हैं। 
काश! सिख भी बौद्धिक स्तर पर कुछ कर सकते
आर.एस.एस. द्वारा करवाये जाने वाले इस कार्यक्रम का विरोध या समर्थन करना अलग बात है, परन्तु हम समझते हैं कि ऐसा कार्यक्रम जहां अपने बहुत ही योग्य विरोधियों के बीच बैठकर अपनी बात करनी हो, और प्रश्नों के लिए भी एक पूरा दिन निश्चित किया जाए। वह बिना किसी ठोस बौद्धिक तैयारी के नहीं हो सकता। काश! सिखों की धार्मिक संस्थाएं भी ऐसा कुछ कर सकतीं। श्री अकाल तख्त साहिब और पांचों तख्तों के जत्थेदार, शिरोमणि कमेटी या दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी ‘भारत का भविष्य और सिख’ या ‘भारतीय राज्य और अल्पसंख्यकों के लिए न्याय’ आदि विषयों पर ऐसा सम्मेलन करवाने का साहस और सोच रखती और अन्य गुटों के लोगों को अपने दृष्टिकोण से आगाह कर सकती। परन्तु हमारे नेता ऐसा तब ही कर सकते यदि वह स्वयं कुछ सोचें, कुछ पढ़ें, विचार करें और लम्बा समय इसकी तैयारी करें। परन्तु यहां तो नियुक्तियां करने के समय भी किसी की योग्यता नहीं परखी जाती। सिखों के सबसे सर्वोच्च पद पर नियुक्ति के लिए चुनाव की कोई विधि विधान या शर्तें ही नहीं हैं, फिर वह किस तरह परिपक्व सोच का धारणी हो सकता है और किस तरह अपने विरोधियों को दलील से अपना पक्ष सुना और समझा सकता है?
अकाली दल की एकता भाजपा की मर्ज़ी पर?
इस समय भाजपा पंजाब में अकाली दल की स्थिति से काफी निराश बताई जाती है। स्वयं अकाली दल में बड़े टकसाली नेता परेशान बताये जाते हैं। वह अकाली दल को बचाने के नाम पर नया नेतृत्व उभारना तो चाहते हैं, परन्तु उनमें से अधिकतर इसलिए बोलने का साहस नहीं रखते, क्योंकि कहीं उनके बेटों का राजनीतिक भविष्य खराब न हो जाए। हालांकि उनमें से ही कुछ यह भी कहते हैं कि बेटों का राजनीतिक भविष्य तब ही बचेगा यदि अकाली दल का राजनीतिक भविष्य बचेगा। हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल की एकता इस समय भाजपा हाईकमान के रवैये पर निर्भर करती है। समझा जा रहा है कि इस समय अकाली दल की सुखबीर सिंह बादल की नीतियों से असहमत टकसाली अकाली नेतृत्व किसी तरह की भगावत का हौसला तब ही कर सकता है, यदि उनको भाजपा हाईकमान द्वारा कोई ऐसा इशारा मिले कि 2019 के लोकसभा चुनावों में वह उनके साथ समझौता करेगी।
पंजाब ‘आप’ में एकता 
हालांकि आज तक भी स्थिति यही है कि कांग्रेस उत्तर भारत में महागठबंधन करने से कतरा रही है। कांग्रेस शायद यह समझती है कि इस क्षेत्र के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और चंडीगढ़ आदि राज्यों की 35 सीटों में से वह अकेली 25-27 सीटें जीतने के सक्षम है। परन्तु जानकार क्षेत्र इसको सही नहीं मानते। जानकारों के अनुसार सिर्फ पंजाब में कांग्रेस का हाथ ऊपर रहेगा और पूरे क्षेत्र में मुकाबला बराबर का हो जायेगा। परन्तु यदि कांग्रेस, बसपा और ‘आप’ का महागठबंधन बन जाता है तो स्थिति बहुत बदल जायेगी। पता चला है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी की परवाह इसलिए भी नहीं कर रही, क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी पूरी तरह दोफाड़ हो चुकी है। हवा में सरगोशियां हैं कि आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल कांग्रेस द्वारा परवाह न किये जाने से परेशान हैं। चर्चा है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी केजरीवाल की सहायता कर रही हैं और वह कांग्रेस तथा ‘आप’ के बीच समझौते के लिए दबाव डालेगी। इस बीच पता चला है कि केजरीवाल ने अपना घर मजबूत करने के लिए पंजाब ‘आप’ की फूट खत्म करने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि ‘आप’ के विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा और पंजाब ‘आप’ के कार्यकारी अध्यक्ष डा. बलवीर सिंह को पार्टी में एकता के लिए ‘हर सम्भव’ प्रयास करने के लिए कहा गया है। इस तरह प्रतीत होता है कि पार्टी लोकसभा चुनावों में अपना अस्तित्व बचाने के लिए बागी नेता सुखपाल सिंह खैहरा को पंजाब ‘आप’ इकाई का अध्यक्ष बनाने की पेशकश कर सकती है या उनको दोबारा विपक्ष के नेता का पद भी सौंप सकती है, परन्तु ‘आप’ हाईकमान के निकटतम विधायकों का कहना है कि यह सही है कि पंजाब ‘आप’ में एकता के प्रयास जारी हैं, परन्तु एकता किसी शर्त पर नहीं, अपितु बिना शर्त के ही हो सकती है।  गौरतलब है कि रविवार ‘आप’ हाईकमान द्वारा पंजाब के ‘आप’ विधायकों की बुलाई गई बैठक में हाईकमान समर्थक 13 विधायकों में से 10 शामिल थे। 
दाखा क्षेत्र से उम्मीदवार
इस तरह की सम्भावना है कि ‘आप’ के दाखा से विधायक एडवोकेट एच.एस. फूलका द्वारा पंजाब विधानसभा से 17 सितम्बर को इस्तीफा दिया जा सकता है। उन्होंने अभी इस्तीफा देना है, परन्तु कांग्रेस में यहां से उम्मीदवार बनने की दौड़ अब से ही शुरू हो गई है। यह बात तो पूरी तरह स्पष्ट है कि अकाली दल के उम्मीदवार इस बार भी मनप्रीत सिंह इयाली ही होंगे। चाहे वह पूर्व चुनाव में हार गये थे परन्तु अकाली दल विरोधी चलती आंधी में उनकी लगभग 4,000 वोटों की हार को सम्मानजनक हार ही माना जा सकता है। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के फूलका को 58923 वोट तथा अकाली दल के इयाली को 54754 वोट मिले थे। परन्तु राज्य में कांग्रेस पक्षीय हवा के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार मेजर सिंह भैणी को सिर्फ 28751 वोट ही मिले थे। इसलिए यदि अब उप-चुनाव होता है तो कांग्रेस किसी नये उम्मीदवार को आगे ला सकती है। हमारी जानकारी के अनुसार इस सम्भावित उप-चुनाव के लिए कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पसंद यूथ अकाली दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद अमरीक सिंह आलीवाल हो सकते हैं। वह दिसम्बर, 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गये थे। ‘आप’ के सम्भावित उम्मीदवार के बारे में अभी कुछ नहीं कहा सकता, क्योंकि अभी तो यही पता नहीं कि फूलका इस्तीफा देने के बाद यहां से दोबारा चुनाव लड़ते हैं, अथवा नहीं?
अकाली दल ज्यादा धार्मिक होगा?
चर्चा है कि जहां अकाली दल जस्टिस रणजीत सिंह रिपोर्ट के मामले में आक्रामक रुख अपनाने के रास्ते पर चल रहा है, वहीं अब धार्मिक कार्यक्रमों में अकाली दल की भागीदारी भी पहले से कहीं अधिक नज़र आएगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार सुखबीर सिंह बादल ने शिरोमणि कमेटी अध्यक्ष गोविंद सिंह लौंगोवाल और दिल्ली कमेटी मनजीत सिंह जी.के., मनजिन्द्र सिंह सिरसा और अन्य संबंधित लोगों को बुलाकर हिदायत की है कि गुरुनानक साहिब के 550 वर्षीय प्रकाश उत्सव को पंजाब, दिल्ली तथा अन्य राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाए और इस अवसर पर अकाली दल के नेताओं की भागीदारी भी सुनिश्चित बनाई जाए। 

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