कैसा होगा 2050 का धार्मिक नक्शा ?

अमरीका की जानी-मानी सर्वेक्षण संस्था ‘पीईडब्ल्यू’ द्वारा दुनिया के प्रमुख धर्मों की आबादी के ट्रेंड्स के बारे में कुछ समय पहले जारी की गई रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। पीईडब्ल्यू की रिपोर्ट में साल 2010 को आधार मानकर वर्ष 2050 तक 8 प्रमुख धार्मिक समुदायों की जनसंख्या का आंकलन और विश्लेषण किया गया है। विश्व तथा भारत के बारे में इसके निचोड़ चौंकाने वाले हैं। इन 40 सालों में विश्व की जनसंख्या में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, जिसमें प्रमुख समुदायों में मुसलमानों की सर्वाधिक यानी 73 प्रतिशत तथा हिन्दुओं की गिनती 34 प्रतिशत बढ़ेगी। इस हिसाब से आबादी के मामले में इसाई पहले, मुसलमान दूसरे तथा हिन्दू तीसरे स्थान पर होंगे। हिन्दुओं के लिए बुरी खबर यह है कि साल 2050 में भारत की कुल आबादी में हिन्दुओं की हिस्सेदारी में 2.8 फीसदी तक कमी आने की सम्भावना है।वर्ष 2050 में देश की कुल आबादी 1.7 अरब होगी, इसमें 76.7 फीसदी हिन्दू होंगे, जबकि साल 2010 में यह आंकड़ा 79.8 फीसदी था। 2010 में देश में हिन्दुओं की कुल आबादी 97.37 करोड़ थी, जबकि साल 2050 में सम्भावित तौर पर 129.79 करोड़ होगी। इस प्रकार इस दौरान कुल हिन्दू आबादी में मात्र 32.42 करोड़ की वृद्धि होगी। एक भ्रम फैलाया जा रहा है कि 2050 तक हिन्दू 50 फीसदी कम होंगे। इस समय इस्लाम दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला धर्म है और इसकी वजह यह है कि वैश्विक स्तर पर मुसलमानों की प्रजनन दर सबसे ज्यादा यानी 3.1 प्रति महिला है, जबकि 2.7 दर से प्रजनन दर से इसाई दूसरे नंबर पर हैं और 2.4 की प्रजनन दर के साथ हिन्दू तीसरे नंबर पर हैं। 
इस सर्वेक्षण में जो तथ्य सामने आए हैं, उनके अनुसार आज विश्व में मुस्लिम 160 करोड़ हैं, वे 120 करोड़ से बढ़ कर 280 करोड़ होंगे। यह बताना कठिन है कि 40 सालों में 40 प्रतिशत की यह वृद्धि व्यावहारिक है या अतिरंजित है। उनका इसाईयों के लिए जो आंकड़ा है, वह बताता है कि अगले 35 सालों में उनका 70 करोड़ से बढ़ कर 290 करोड़ होना सम्भव है। उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर पीयू रिसर्च सैंटर की रिपोर्ट चौंकाने वाली ज़रूर है। जनगणना एक बड़ी पेचीदा प्रक्रिया है, जो किसी भी देश के सामाजिक तथा आर्थिक कारणों, भौगोलिक तथा प्राकृतिक विज्ञान का परिणाम होती है। मानव व्यवहार के बारे में ऐसे नतीज़े पूरी तरह से सही नहीं होते हैं तथा वक्त की कसौटी पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरते। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि यह रिपोर्ट पश्चिम समर्थक और इसाई समर्थक नज़रिये से लिखी गई है। यह विश्व में बढ़ रहे इस्लामी वर्चस्व को उठाती है, जबकि सारी दुनिया में चल रहे ईसाई धर्मांतरण पर खामोश हो जाती हैं।

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