विजय माल्या पर राजनीतिक रस्साकशी

देश के बैंकों के साथ बड़ा घोटाला करके भागा विजय माल्या शिकंजे में फंसता जा रहा है। लगभग अढ़ाई वर्ष पूर्व वह इस कारण अचानक देश से भागा था, क्योंकि उसको पता चल चुका था कि अब उस पर अदालतों द्वारा घेरा पड़ने लगा है। भारत की एजेंसियों और अदालतों ने यह पूरी शक्ति लगाई हुई है कि वह माल्या को भारत वापिस लाने में सफल हो जाएं। उस पर इंग्लैंड की अदालत में इस संबंधी मुकद्दमा चल रहा है। वह आज तक किसी न किसी तरह हवालगी से बचता आ रहा है। अब दिसम्बर में इस पर फैसला सुनाया जाना है। अढ़ाई वर्षों में इस समय के दौरान माल्या ने कई तरह के बयान दिए, परन्तु किसी भी बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता। अब उसने बयान दिया कि वह भागने से पहले अरुण जेतली को मिले थे। इस संबंधी पहले अरुण जेतली के हवाले से यह जानकारी सामने आई थी कि वह संसद के संसदीय हाल में थोड़े से समय के लिए जेतली को मिले थे, परन्तु अब भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तथा ब्रिटिश कांग्रेसी नेता पुनिया के दोषों का खंडन करते हुए कहा है कि जिस दिन की बात पुनिया कर रहे हैं, उस दिन अरुण जेतली संसद के सैंट्रल हॉल में गये ही नहीं थे। वैसे भी संसदीय प्रणाली को जानने वालों को यह अच्छी तरह पता है कि किसी भी संसद सदस्य का दोनों सदनों के सैंट्रल हाल में किसी भी मंत्री या प्रधानमंत्री तक को भी मिलना मुश्किल नहीं है, क्योंकि यह सभी इस हाल में अक्सर आते-जाते रहते हैं और एक-दूसरे के साथ अनौपचारिक बातचीत भी करते रहते हैं। इनके यहां मिलने पर कोई रोक-टोक नहीं होती। माल्या के एक बयान पर कांग्रेस ने तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने जिस तरह का तूफान खड़ा किया है, उसकी समझ आनी मुश्किल है। यदि यह मान भी लिया जाए कि विजय माल्या सैंट्रल हाल में जेतली को मिले थे, तो भी सैंट्रल हाल कोई गुप्त स्थान नहीं है। माल्या के अनुसार यह मुलाकात औपचारिक नहीं थी। यदि इस बात पर इतना तूफान खड़ा किया गया है, तो इस पर राहुल गांधी की बौखलाहट साफ दिखाई देती है। लोकतंत्र में विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे का मुकाबला करती हैं। बयानबाज़ी भी होती हैं, परन्तु जिस तरह की बौखलाहट कांग्रेस के अध्यक्ष द्वारा ठोस प्रमाणों के बिना दोष लगाकर दिखाई गई है, वह एक बड़ी और पुरानी पार्टी के अध्यक्ष को शोभा नहीं देती। जहां तक माल्या का संबंध है, वह अकेला ही ऐसी धोखाधड़ी में शामिल नहीं। आज अनेक ही उन धन-कुबेरों के नाम लिए जा सकते हैं, जो बैंकों को धोखा देकर बड़े स्तर पर धन हड़प कर देश से बाहर भाग गए हैं। यह बात भारतीय बैंकिंग प्रणाली की त्रुटियों को भी जाहिर करती है, क्योंकि माल्या और नीरव मोदी जैसों ने दर्जनों ही बैंकों के साथ चुस्त चालें चलकर धोखे किए हैं। नि:संदेह माल्या द्वारा इतना बड़ा घोटाला करके देश से भाग जाने से सरकार की छवि खराब हुई है। इसी कारण ही सरकारी एजेंसियों का पूरा ज़ोर लगा हुआ है कि वह हर हाल में इस अभिमानी धन-कुबेर को देश में लाकर कानून के कटघरे में खड़ा करे। जहां तक बढ़-चढ़ कर शोर मचा रहे कांग्रेसी नेताओं का संबंध है, उनको भली-भांति पता होना चाहिए कि माल्या का बैंकों के साथ ऐसा लेन-देन मोदी के नहीं, अपितु डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री होते हुए ही शुरू हो चुका था। माल्या कांग्रेसियों के साथ भी काफी घी-खिचड़ी रहे थे। यदि आज इस मामले पर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है, तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार भी उतनी ही दोषी कही जा सकती है। राहुल गांधी नित्य दिन ठोस तथ्यों के बिना दोष लगाकर राई के पहाड़ बनाने के प्रयास कर रहे हैं, परन्तु यह पहाड़ साथ-साथ ही टूटते भी नज़र आ रहे हैं। जहां तक विजय माल्या का संबंध है, हम समझते हैं कि ऐसे अनेक ही घोटाले करने वाले व्यक्तियों को हर हाल में अदालत के समक्ष पेश करना होगा ताकि इनकी ऐसी गतिविधियों के पीछे छिपे तथ्य सभी के सामने स्पष्ट हो सकें। उम्मीद की जानी चाहिए कि माल्या संबंधी सच्चाई को भी अंत में सामने लाया जायेगा और उसके कृत्यों को पूरी तरह नश्र करना सरकार की बड़ी ज़िम्मेदारी होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द