नोटबंदी की सालगिरह

‘अरे दादी! तुम नाहक ही चिंता कर रही हो। सरकार ने व्यवस्था की है कि कोई भी महिला अपने खाते में अढ़ाई लाख रुपये तक की रकम बिना किसी परेशानी के जमा करवा सकती है। सरकार उससे इस बारे में कोई पूछता नहीं करेगी। रामप्रसाद ने अखबार पढ़ कर बताया।
‘क्या सच! सरकार पूछेगी नहीं कि उसके पास ये रकम कहाँ से आई।
 ‘नहीं दादी! हमारी सरकार भी हमारे देश की महिलाओं के बचत करने के इस पुराने तरीके से भली-भांति परिचित है। रामप्रसाद ने हँसते हुए कहा।
‘ठीक है भाई! अब चलती हूँ, बहू इंतज़ार कर रही होगी। दादी ने उठने का उपक्रम करते हुए कहा। उनके सिर से जैसे एक बड़ा बोझ उतर गया था। 
दोपहर में खाना खाने के बाद दादी दो घड़ी आराम ज़रूर करती है। मगर उस दिन उन्हें आँखों के सामने घूमते अपने 500-1000 के जमा किये हुए नोट किसी भी तरह से चैन नहीं लेने दे रहे थे। उन्हें याद आ रहा था वो दिन, जब उन्होंने पहली बार बेटे के स्कूल की अलमारी में से 500 का नोट निकाला था। वो एक गर्मी की दोपहरी थी। स्कूल में गर्मी की छुट्टियाँ होने वाली थीं इसलिए बेटे ने स्कूल स्टाफ  को सैलरी देने के लिए पैसे स्कूल की अलमारी में रखे थे। दोपहर में जब दोनों बेटा-बहू आराम कर रहे थे तभी रामप्रसाद की माँ उनसे 500 रुपये उधार मांगने आई थी। उनके पास तो इतने रुपये थे नहीं और बेटा-बहू को जगाना उन्होंने उचित नहीं समझा। इसलिए चुपचाप स्कूल की अलमारी में से निकाल कर 500 रुपये पड़ोसन को दे दिए। दस दिन बाद जब उसने रुपये वापस किये तो दादी ने उन्हें अपने पास ही रख लिया ये सोच कर कि क्या पता फिर किसी को अचानक पैसों की जरूरत पड़ जाये। बेटे के मुँह से भी 500 का नोट कम होने की कोई चर्चा उन्होंने नहीं सुनी, और बात आई गई हो गई। अब तो ये सिलसिला चल निकला। दादी को अलमारी में से पैसे निकालने की लत पड़ गई। वे सब की नज़र बचा कर चुपचाप स्कूल की अलमारी से कभी 100-200 तो कभी 500 रुपये निकालने लगी। जब छुट्टे रुपये ज्यादा हो जाते तो वे उन्हें रामप्रसाद की दुकान पर जा कर उनका बंधा नोट करवा लाती। इस तरह दादी के पास काफी रकम जमा हो गई थी। यहाँ  बैंक में उनका कोई खाता भी नहीं था और ना ही बैंक में पैसा जमा करने में उनका कोई भरोसा था। ‘मुश्किलें कभी बता कर नहीं आतीं। हाथ में पैसा हो तो आधी मुश्किलें अपने आप ही हल हो जाती हैं...। अपना पैसा अपने हाथ में होना चाहिए।’ यही उनका उसूल था। अगले दिन दादी अपना लाल गमछा रामप्रसाद की दुकान पर लेकर गई ‘रामप्रसाद, गिन तो जरा! कितने के नोट होंगे ये?’ गमछा खोलते ही रामप्रसाद की आँखें आश्चर्य से फैल गई। उसने गिना तो पूरे एक लाख बीस हजार रुपये निकले। ‘दादी! तुम तो लखपति निकली। उसने रुपये वापस गमछे में लपेटते हुए कहा। 
‘लो दादी, संभालो अपनी रकम! अब तुम इन्हें अपने बैंक या पोस्ट ऑफिस के बचत खाते में जमा करवा दो, लेकिन अभी वहां भीड़ बहुत है इसलिए तुम थोड़ा ठहर कर जाना। वैसे भी अभी समय दिया है सरकार ने पुराने नोट जमा करवाने के लिए रामप्रसाद ने दादी को गमछा थमाते हुए उन्हें जानकारी दी।