लोकतांत्रिक भावना एवं अनुशासन की उम्मीद


विगत कुछ समय से ज़िला परिषदों एवं ब्लाक समितियों के चुनावों के संबंध में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी सक्रियता बनी हुई थी। कुछ एक स्थानों पर राजनीतिक दलों के भिन्न-भिन्न गुटों के बीच आपस में टकराव भी होते रहे। कटुता भी पैदा हुई। लोग कई गुटों में बंटे हुए नज़र आए, परन्तु यह संतोष की बात है कि निचले धरातल के इस चुनावी माहौल में हिंसा की अधिक घटनाएं नहीं हुईं। अब मतदान के दिन भी ऐसी ही आशा की जानी चाहिए कि लोग अपने आप को अनुशासन में रख कर समूची प्रक्रिया को शांतिपूर्वक ढंग से सम्पन्न करने में सहायक होंगे। 
देश में संविधान के माध्यम से अस्तित्व में आए पंचायती राज की भावना बहुत बढ़िया मानी गई है। इसमें निचले धरातल पर लोगों को यह आभास होता है कि वे प्रदेश की सम्पूर्ण राजनीतिक सक्रियता का हिस्सा हैं। भावना यही है कि ग्राम सभाओं के माध्यम से पंचायत व्यवस्था को मजबूत किया जाए। निचले धरातल पर विकास के कार्यों में लोगों की शमूलियत हो। समाज कल्याण के कार्यों एवं क्षेत्र की उन्नति के लिए आने वाली धनराशि का समुचित ढंग के साथ प्रयोग करके विकास की गति को तेज़ किया जाए। परन्तु इस बात पर अभी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है कि जिस भावना के साथ संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायती राज संस्थानों को अधिक अधिकार दिए गए थे, क्या उनकी पूर्ति हुई है? हमारे विचार के अनुसार अभी तक ऐसा नहीं हो सका। पंचायती संस्थाओं के कामकाज एवं इनके चुनावों में अभी विकास की भावना की अपेक्षा राजनीतिक जोड़-तोड़ अधिक हावी होते हैं। ऐसे राजनीतिक वातावरण में वास्तविक उद्देश्यों को भुला दिया जाता है। पिछले दिनों भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। चुनाव प्रचार में ऐसे मुद्दे तारी रहे, जिनका विकास और समाज को प्रत्येक ढंग से आगे बढ़ाने के साथ कोई संबंध नहीं था। यह आमतौर पर देखने में आया है कि पंचायती एवं शहरी स्थानीय निकाय संस्थाओं के चुनाव राजनीति की भेंट चढ़ जाते हैं। प्रदेश में सत्तारूढ़ दल ही इन चुनावों में प्राय: विजयी रहता है। अकाली-भाजपा के शासन के 10 वर्षों में अधिकतर इन संस्थाओं में उन्हीं पार्टियों के उम्मीदवार ही जीतते रहे तथा अधिकतर वे अपनी मज़र्ी से निचले स्तर पर लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को प्रभावित करते रहे। अब भी वही कुछ देखने को मिल रहा है। चुनावों से पहले ही बड़ी संख्या में विरोधी पार्टियों के उम्मीदवारों के नामांकन-पत्रों को रद्द करने को तरजीह दी गई। अनेक स्थानों पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करने का अवसर ही नहीं मिला। नामांकन-पत्र दाखिल करने के लिए प्रशासन ने ‘अनापत्ति प्रमाण-पत्र’ ही जारी नहीं किए। चाहे कांग्रेस की मुख्य विपक्षी पार्टी अकाली दल अब इस संबंध में शिकायत कर रहा है परन्तु इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि पहले ऐसा माहौल सृजित करने में उसका भी हाथ रहा है। इसी कारण अब भी चुनावों से पहले ही सत्तारूढ़ दल के सैकड़ों उम्मीदवार निर्विरोध चुने जा चुके हैं। जहां सत्तारूढ़ दल की ओर से अपनी विजय के डंके अभी से बजाने शुरू कर दिए गए हैं, वहीं अकाली दल की ओर से लगाये गये आरोपों की आवाज़ अब और भी ऊंचे स्वर में सुनाई देने लगी है। आम आदमी पार्टी जिसका पिछले विधानसभा चुनावों में डंका बजने लगा था, इन प्राथमिक चुनावों में हाशिये पर चली गई प्रतीत होती है। इस पार्टी की भीतरी टूट-फूट ने इसको बड़ी सीमा तक कमज़ोर कर दिया है। इसी प्रकार बहुजन समाज पार्टी भी कहीं कम ही दिखाई देती है। फिर भी उन स्थानों पर विपक्षी उम्मीदवारों के जीतने की आशा की जा सकती है, जहां सरकारी तौर पर प्रशासन का दबाव कम पड़ा होगा अथवा जहां विपक्षी दल अधिक मजबूत होंगे। 
चाहे पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ यह दावा कर रहे हैं कि विपक्षी दलों के लोगों का मोह भंग होने के कारण उन्हें समर्थन न मिलने के दृष्टिगत उनके उम्मीदवार अपने आप मैदान छोड़कर भाग रहे हैं तथा लोग सरकार की विकासोन्मुख नीतियों को देखते हुए कांग्रेस को प्रबल समर्थन दे रहे हैं, परन्तु श्री जाखड़ के इन बयानों में कोई सत्यता नहीं है। चाहे लोग विपक्षी दलों के साथ भी नाराज़ ही बताए जाते हैं परन्तु सरकार की ओर से इन चुनावों में की जा रही धक्केशाही भी जग-जाहिर है। कई स्थानों पर विपक्षी उम्मीदवारों को डरा-धमका कर मैदान छोड़ने के लिए विवश किया गया है। 
चाहे इन चुनावों के साथ ग्राम पंचायतों के चुनाव नहीं हो रहे हैं, तथा उनका चुनाव कुछ मास उपरांत कराये जाने का अनुमान लगाया जा रहा है परन्तु वास्तविक अर्थों में इन चुनावों को तभी सफल माना जा सकता है, यदि ये लोकतांत्रिक भावना को दृष्टिगत रखकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से करवाये जाएं, अन्यथा पंचायती व्यवस्था अपने निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने में पिछड़ कर रह जाएगी तथा लोगों का विश्वास खो बैठेगी। हम आशा करते हैं कि इन चुनावों के बाद आगामी ग्राम पंचायत चुनाव निष्पक्ष ढंग से सम्पन्न करवाकर कांग्रेस सरकार अपनी गिर रही प्रतिष्ठा एवं बिगड़ी छवि को अच्छा बनाने के लिए यत्नशील होगी तथा पिछले समय में डल चुकी गलत परम्पराओं को बदल कर प्रदेश के माहौल को एक अच्छा मोड़ देने की कोशिश करेगी, जिसकी कि किसी भी अच्छी सरकार से अपेक्षा की जा सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द