कब चलेगी भारतीय हॉकी टीम सुनहरी रास्तों की ओर

जकार्ता एशियन खेलों के समय भारतीय हॉकी टीम के शुरुआती मैचों में इस बात का भ्रम ज़रूर पड़ा था कि शायद भारतीय हॉकी टीम की किस्मत बदलने वाली है। कई दशकों से चली आ रही हॉकी टीम एक नए दिशा की ओर कदम रखते ही सब आलोचकों का मुंह बंद करते एक नया अध्याय लिखने वाली है, लेकिन सैमीफाइनल और फाइनल मैचों तक आते भारतीय हॉकी के पांव डगमगाने की वही कहानी की फिर शुरुआत हो गई। एशियन खेलों में हमारे पुरुष और महिला वर्ग की टीमें जो पदक लेकर आईं हैं उनसे किसी सुनहरी भविष्य की उम्मीद नहीं बनती। हमने कई वर्षों के बाद यह पदक हॉकी के हाथों में देखे हैं। देश में विश्व कप हॉकी का आयोजन कुछ महीनों बाद हो रहा है, अगर देश के प्रति लगन की किसी ने उदाहरण देखनी है तो मलेशिया की हॉकी टीम को देखें। पुरुष वर्ग की हॉकी में जापान ने स्वर्ण पदक जीता और मलेशिया ने रजत पदक। आश्चर्यजनक बात यह है कि कुछ समय पहले चैम्पियन्स ट्राफी हॉकी में भारत फाइनल तक पहुंच गया। बड़ी मुश्किल से आस्ट्रेलिया ने भारत को हरा कर स्वर्ण पदक जीता। तब लगता था कि शायद अब भारत  दुनिया की किसी भी टीम को हरा सकता है, लेकिन कुछ महीनों बाद अब यह साबित हुआ है कि हम सही मायने में एशियन चैम्पियन नहीं हैं। हमारे खिलाड़ियों को पैसा मिल रहा है, पदवियां दी जा रही हैं और उनकी तरक्कियां भी हो रही हैं, अर्जुन अवार्ड भी मिल रहे हैं। हकीकत यह है कि भारतीय हॉकी टीम की मौजूदा स्थिति यह है कि किसी टूर्नामैंट में यह दुनिया की किसी चोटी की टीम को हरा सकती है। लेकिन कुछ महीनों बाद किसी और टूर्नामैंट में दुनिया की सबसे नीचे वाली टीम से भी भारत हार सकता है। अब इस टीम पर विश्वास करना मुश्किल है। सच तो यह है कि एशियन खेलों में हमारे पुरुष वर्ग की टीम ने सैमीफाइनल हार कर बहुत कुछ गंवा लिया है। महिला वर्ग के हाथों चांदी तो लगी, जिसको बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता। ओलम्पिक हॉकी के लिए महिला हॉकी टीम भी क्वालीफाई नहीं कर सकी।