समय ने बहुत बदल दिया है नंगल-भाखड़ा नि:शुल्क रेल को

नंगल, 20 सितम्बर : पंजाब में नंगल व हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा डैम के बीच चलने वाली यह अपनी तरह की अनोखी रेल हैं जिस में यात्रा करने का कोई टिक्ट नहीं है। आम रेलों से अलग इस रेल में आपको कोई भिखारी, हॉकर, टिक्ट निरीक्षक नहीं मिलेगा। भाखड़ा डैम का निर्माण कार्य 1948-1963 तक चला। भाखड़ा डैम के निर्माण समय इस रेल को श्रमिकों व सामान की ढुलाई हेतु शुरू किया गया था। भाखड़ा डैम का निर्माण इंजीनियर एम.एस. सलोकम के नेतृत्व में हुआ जिस में 30 विदेशी विशेषज्ञों, 300 भारतीय इंजीनियरों, 13000 मज़दूरों ने दिन रात कार्य किया। भाखड़ा डैम के निर्माण समय यह ट्रेन रात को भी चलती थी। आज कल इस रेल में भाखड़ा डैम के कर्मचारी, सेलानी, स्थानीय लोग यात्रा करते है। रास्ते में पड़ते ग्रामों के लोगों के लिए तो यह टे्रन वरदान है। यह लोग बिना कोई खर्च किये यात्रा ही नहीं करते बल्कि सामान की ढुलाई भी करते हैं। यह रेल नंगल से सुबह 7.05 बजे और दोपहर 3.05 बजे भाखड़ा डैम के लिए रवाना होती है। सुबह चलने वाली रेल दो घंटे बाद सुबह 9 बजे और दोपहर को चलने वाली रेल शाम 5 बजे नंगल लौट आती है। रास्ते में रेल 5 स्थानों लेबर हट्स, दबेटा, बरमला, नैला व उलीडा में रुकती है। बरमला, हिमाचल-पंजाब सीमा पर स्थित पंजाब का ग्राम हैं जबकि नैला व उलींडा ग्राम ज़िला बिलासपुर हि.प्र. के अंतर्गत आते है। महिलाओं का अपना अलग डिब्बा है। इस रेल का संचालन भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड करता है न कि भारतीय रेल विभाग भले ही ट्रेन में निरीक्षक नहीं होता मगर फिर भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि समाज विरोधी तत्व गाड़ी में प्रवेश न करे। प्रोजैक्ट सुरक्षा से जुड़े कर्मचारी ट्रेन के साथ जाते हैं। विशेष अवसरों पर रेल के संग जोड़े जाने वाले फिरोज़ी रंग के डिब्बे नष्ट हो गये हैं। भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड के कर्मयोगी एस.ई.के.के सूद ने बोर्ड को संग्रहालय बोगी योजना बना कर भेजी है। अगर बोर्ड का चंडीगढ़ कार्यलय हरी झंडी देता है तो एक विशेष बोगी तैयार की जाएंगी जिस में भाखड़ा डैम का इतिहास देखा जा सकेगा। उस समय रेल यात्रा बहुत ज्यादा रोमांचकारी हो जाती है जब रेल नैला स्थित सुरंग से गुजरती है। सुरंग से निकलते है नीला गगन हरे पहाड़ व सतलुज झील का विहंगम दृश्य सैलानियों का स्वागत करता है। यह रेल कभी भी भयंकर दुर्घटना का शिकार नहीं हुई। यह खुशी की बात हे कि अधिशासी अभियंता आर.के सिंगला व एस.डी.ओ. चाहल राजबीर सिंह के नेतृत्व में स्टेशन पर नया प्लेटफार्म बन रहा है। अन्य स्टेशनों पर भी प्लेटफार्म बनेगे। पिछले वर्ष इस ट्रेन को भाखड़ा डैम के स्थापना दिवस पर (22 अक्तूबर) फूलों से सजा कर भाखड़ा डैम तक चलाया गया था। टी.वी. प्रोगराम कौन बनेगा करोड़पति में इस ट्रैक सबंधी प्रशन पूछा जा चुका है। सुरक्षा कारणों के कारण भले ही सरकार ने भाखड़ा डैम के भीतरी भागों को देखने पर रोक लगा दी है मगर रेल के नवीनीकरण से ही पर्यटकों, स्थानीय लोगों को खासा लाभ हो सकता है। पिछले 50 वर्षो से ग्राम नैला में चाय की दुकान चला रहे रोशन लाल बताते हैं कि रेल ट्रैक की रिपेयर के लिए 60-60 श्रमिक होते थे व श्रमिक दोपहर को हमसे सब्ज़ी, दाल लेते थे अब तो दो-चार कर्मचारी ही होते है तभी ट्रैक हाल बेहाल है।  महत्वपूर्ण बातें : सर्वेक्षण 1946 में हुआ, प्रोजैक्ट लागत 2,02, 42, 310 रुपये, सिग्नल सिस्टम स्थापित हुआ 1954 में, रेल ट्रैक की कुल लम्बाई 27.36 कि.मी, टे्रन दरिया सतलुज पर बने उलींडा रेल, रोडब्रिज (158.5  मीटर) से गुज़रती है, दो होरस शू शेप् सुरंगे रेल नैटवर्क का हिस्सा हैं एक सुरंग नैला में, दूसरी भाखड़ा डैम के लेफ्ट पावर हाउस के पास।