सैनिकों के कदम

एक दिन राजेश के पापा सपरिवार पिकनिक मनाने पहाड़ पर आए थे। सभी खुश नजर आ रहे थे। उछल कूद करते-करते राजेश अपनी बड़ी बहन सोनी और रूमा के साथ खेलते-खेलते दूर निकल गया। अचानक उसकी नजर बहुत दूर एक नदी के ऊपर बने पुल से गुजरती सैनिक टुकड़ी पर पड़ी। 
राजेश ने इसे बहन को दिखाने के लिए कहा, ‘दीदी, वह देखो, वहां सैनिक हैं।’ 
तीनों दूरबीन से बारी-बारी देखने लगे। तीनों उन्हें देखकर और आनंदित हो उठे। राजेश दूरबीन से देखते हुए बोला, ‘दीदी, आश्चर्य है, ये कैसे सैनिक हैं। इन्हें तो परेड भी करनी नहीं आती है। इनके तो कदम भी नहीं मिल रहे हैं।’ 
‘क्या?’ दोनों बहनें एक साथ बोलीं। 
‘लाओ, दूरबीन हमें दो। हम भी देखें कि तुम कितना सत्य बोलते हो,’ सोनी ने उससे दूरबीन लेते हुए कहा। 
‘सचमुच तुम ठीक कहते हो, इन सैनिकों को तो परेड भी करनी नहीं आती है। फिर भला ये सैनिक कैसे बन गए? यदि एक सैनिक को परेड जैसी प्रारंभिक चीज भी न आती हो तो वह भला आवश्यक चीजों की जानकारी कैसे रखेगा?’ सोनी दूरबीन देखते हुए बोली। 
रूमा भी दौड़कर दीदी के पास आई और यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित रह गई। तीनों को अब इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं ऐसे सैनिकों के कारण हमारा देश गुलाम न बन जाए। 
‘चलो दीदी, हम लोग पापा से पूछते हैं कि क्या यह हमारे देश की ही सैनिक टुकड़ी है या फिर कहीं विदेशी आक्रमण तो नहीं हो गया,’ राजेश चिंतित होते हुए बोला। 
तीनों पापा के पास दौड़ पड़े। राजेश पापा के पास पहुंचकर बोला, ‘पापा,॒ दूरबीन से उस पुल की तरफ देखिए। विदेशी सैनिकों का आक्रमण हो गया है। हमें कुछ करना चाहिए।’ 
राजेश के प्रश्न पर पापा हंस पड़े और बारी-बारी से सोनी और रूमा की ओर घूमते हुए उनकी राय जानने लगे। सभी को सिर हिलाते देख समझाने लगे, ‘बेटा, यह अपने देश की सैनिक टुकड़ी नहीं बल्कि उसी की तरह ‘एन.सी.सी.’ की टुकड़ियां हैं। ये लोग अभ्यास करने कभी-कभी पहाड़ पर आते हैं। अब तुम यह जानने को उत्सुक हो कि इनके पैर आपस में क्यों नहीं मिल रहे हैं तो यह जानने के लिए तुम्हें वहीं जाकर देखना होगा, तभी तुम्हारी समझ में आएगा।’ 
पापा के इतना कहते ही तीनों टुकड़ी की तरफ दौड़ पड़े। जब वे टुकड़ी के समीप पहुंचे तो टुकड़ी पुल से उतर चुकी थी और सैनिक कदम से कदम मिलाते हुए पंक्ति में चल रहे थे। यह देख तीनों एक साथ कह उठे, ‘यह क्या जादू हो गया, पापा। उस समय जब ये पुल पर से गुजर रहे थे तो उस समय तो इन्हें कदम से कदम मिलाना ही नहीं आ रहा था पर अब कैसे निपुण हो गए?’  पापा समझाने लगे, ‘इसमें जादू की कोई बात नहीं है बल्कि एक राज छिपा है। जब तुम इस राज को जान लोगे तो तुम्हारी समझ में सारी बात आ जाएगी।’ 
फिर तीनों को अपने पास बैठाकर बताने लगे, ‘किसी ध्वनि की तरंगें अपनी निकटवर्ती वस्तु में कंपन उत्पन्न करती हैं। जब निकटवर्ती वस्तु की ध्वनि तरंगों की प्राकृतिक आवृत्ति, स्रोत द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंगों की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो जाती है तो खतरनाक अनुनाद कंपन उत्पन्न हो जाता है। इसी कारण पुल पर से गुजरते समय सैनिक कदम से कदम नहीं मिलाते हैं। अगर ऐसा करेंगे तो दोनों के कंपन की आवृत्ति समान हो जाएगी जिससे पुल टूट सकता है।’  पापा से यह जानकारी पाकर राजेश, सोनी एवं रूमा के दिमाग पर से चिंता हट गई। वे फिर से उछलकूद करने लगे।