हावड़ा ब्रिज स्टील ही नहीं, मिथकों का भी सेतु

उसके बारे में एक नहीं, सैकड़ों कहानियां हैं। सबकी सब परीकथाओं जैसी हैरान करने वाली। मसलन कुछ लोग सुनायेंगे कि एक बार एक बड़ा जहाज आया जो इसके नीचे से निकल नहीं सकता था। नतीजतन इसमें चाबी लगाकर इसे खोल दिया गया, यह दो हिस्सों में होकर किसी तोरण द्वार की तरह हो गया और जहाज निकल गया। जहाज निकलने के बाद इसे चाबी लगाकर फिर से पहले जैसा कर दिया गया। जी, हां! यह कहानी हावड़ा ब्रिज की ही है, जो जितनी अपनी खूबसूरती, जितनी अपनी इंजीनियरिंग के चमत्कार के चलते दुनियाभर में मशहूर है, उससे कहीं ज्यादा अपने पर बनी अनगिनत मिथकीय कहानियों के कारण भी बहुत लोकप्रिय है। मसलन एक कहानी यह है कि जब अंग्रेज पैदल इस पुल से चलते थे, तो वे अपने पैर में जलन महसूस करते थे और जब उनकी गाड़ियां इससे गुजरती थीं तो डगमगाती रहती थीं। एक मिथकीय कहानी यह भी है कि जब महात्मा गांधी की अस्थियाें का विसर्जन इस पुल के पास हुगली नदी में किया गया तो कहते हैं पुल में इतने लोग इकट्ठा हो गये कि पुल लचककर पानी छूने लगा था और फिर जैसे ही लोग पुल से बाहर आ गये तो पुल फिर अपनी जगह पर पहले की तरह हो गया। कुछ लोगों का मानना है कि पुल झुककर महात्मा गांधी की अस्थियों को स्पर्श करने गया था।बहरहाल ये कहानियां हैं और इनका हकीकत से शायद ही कुछ लेना देना हो। ये मिथकीय कहानियां हैं। ऐसे गल्प जो टाइम पास करने के लिए सबसे अच्छे होते हैं। लेकिन यह पुल सिर्फ  कोरी कहानियों के लिए ही इतना चमत्कारिक नहीं है इसकी वास्तविकता भी इन मिथकीय कहानियों से कम चमत्कारिक और रोमांचक नहीं है। 1965 के बाद से हावड़ा ब्रिज का सरकारी कागजों में नाम भले रवींद्रनाथ टैगोर सेतु कर दिया गया हो, लेकिन लोग इसे आज भी हावड़ा ब्रिज के नाम से ही जानते हैं। वे न तो अंग्रेजों के दिये गये नाम कैंटीलीवर ब्रिज के नाम से और न ही बंगाल की सरकार द्वारा दिये गये रवींद्रनाथ टैगोर सेतु से।  हावड़ा ब्रिज दुनिया के गिने चुने विख्यात पुलों में से है और इसके आकर्षण से पूरी दुनिया के तमाम रचनाकार खासकर फिल्मकार भी बंधे हुए हैं। यही वजह है कि यह भारत का अकेला ऐसा पुल है जिस पर न सिर्फ दर्जनों बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग हुई है बल्कि तमाम हॉलीवुड फिल्मों की भी इसमें शूटिंग हुई है। इस साल फरवरी में अपनी उम्र की पौन सदी पूरी कर चुके हावड़ा ब्रिज को साल 1958 में इसी के नाम पर बनी यानी फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ में फिल्माया गया था जिसमें गीता दत्त ने एक बहुत लोकप्रिय गाना ‘मेरा नाम चिन चिन चू...’ गाया था। इसके बाद इस ब्रिज को फिल्म ‘चाइना टाउन’ में भी फिल्माया गया था जो 1962 में बनी थी। 1971 में राजेश खन्ना की मशहूर फिल्म ‘अमर प्रेम’ का भी एक गाना इस पुल के ऊपर शूट हुआ था। 1969 में ‘खामोशी’ के भी एक गाने की शूटिंग इस पुल पर हुई थी, इसके अलावा भी देवानंद की ‘तीन देवियां’, राजकपूर की ‘राम तेरी गंगा मैली’, मणिरत्नम की ‘युवा’ और इम्तियाज अली की ‘लव आजकल’ तथा अनुराग बासु की फिल्म ‘बर्फी’ की शूटिंग भी हावड़ा ब्रिज में हुई थी।दुनिया के कुछ फिल्मकार तो इस पुल के दीवाने रहे हैं उनका बस चलता तो वे अपनी हर फिल्म में इसे फिल्माते। ऐसे फिल्मकारों में सत्येजित रे का नाम सबसे ऊपर है और यह स्वभाविक भी है क्योंकि कोलकात्ता उनकी क्लासिक कमजोरी थी। सत्येजित रे के अलावा रिर्चर्ड एटनबरो और मणिरत्नम भी इस फिल्म के भव्य विजुअल प्रॉपर्टी से हमेशा अभिभूत रहे हैं।  लेकिन यह पुल अपनी लोकप्रियता और खूबसूरती के लिए ही नहीं जाना जाता। इसकी ऐसी ही हैरतअंग्रेज करने वाली इंजीनियरिंग भी है। यह दुनिया के व्यस्ततम कैंटीलीवर ब्रिज में से एक है। शायद इसीलिए लोगों ने यह काल्पनिक कहानी गढ़ी कि यह पुल किसी चाबी से खुल जाता है और फिर चाबी से बंद कर दिया जाता है। बहरहाल इस पुल का निर्माण 1939 में शुरु हुआ था और यह 1943 में बनकर तैयार हो गया था। हालांकि इसके बनने की कोशिशों की शुरुआत 1930 से शुरु कर दी गई थी, फिर भी बनने की शुरुआत के बाद यह महज साढ़े पांच साल में बनकर तैयार हो गया जो उस समय के हिसाब से एक चमत्कार ही था, क्योंकि इस पुल के निर्माण में उन दिनों 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था और पूरे पुल में कहीं पर भी एक भी नट बोल्ट नहीं लगा। नट बोल्ट की जगह इस पुल में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए धातु की बनी कीलों का इस्तेमाल किया गया है, जो उस समय एक बड़ी चमत्कारिक तकनीक थी।  यह पुल दरअसल एक तरह से झूलता हुआ पुल है। यह पुल महज नदी के दो किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका है। बाकी 1528 फीट लंबे और 62 फीट चौड़े पुल में कहीं एक भी खंभा या पिलर नहीं है। उस दौरान यानी 1930 के दशक में इसके निर्माण में 333 करोड़ रुपये का खर्च आया था और इस पुल के बनाने में जो 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था, उसमें 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी। उन दिनों टाटा स्टील को स्थापित करने वाले प्रोजेक्ट में से यह एक था।  क्योंकि कुछ साल पहले कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के इंजीनियरों ने अपनी एक जांच के दौरान पाया था कि पुल के पाये थूंके गये पान, गुटखे और खैनी की वजह से घिस रहे हैं।अगर मिथकों के इस सेतु को पीढ़ियों और सदियों तक भारत के गौरव के रूप में बरकरार रखना है तो लोगों को इसके साथ थोड़ा तमीज से पेश आना होगा, इस पर पान, गुटखा और खैनी थूंकने से बचना होगा।