नोटबंदी की सालगिरह

‘मगर मेरा तो कहीं कोई खाता ही नहीं है।’ ‘तो तुम राधे श्याम से कह कर अपना खाता खुलवा लो ना बैंक में’। ‘अरे भैया! अब तो ऊपर वाले के यहाँ ही खाता खुलेगा मेरा। इस उम्र में मैं क्या किसी बैंक में खाता खुलवाउंगी।’ दादी ने कहा।  ‘फिर! क्या करोगी?’ ‘कुछ तो करना ही पड़ेगा’ कहते हुए दादी ने अपना गमछा संभाला और उठ गई थी। अगले दो दिन इसी चिन्तन-मनन में बीत गए थे। दादी ने न तो ठीक से खाना खाया था और ना ही उन्हें नींद आई थी। ये पुराने नोट तो उनके गले की हड्डी बन गए थे जिन्हें न तो बताते बन रहा था और ना ही छिपाते। आखिरकार राधे श्याम ने पूछ ही लिया। ‘क्या बात है माँ? तबियत ठीक नहीं है क्या? ‘नहीं रे! मैं ठीक हूँ ‘दादी ने उसे टाला’ ‘दादी! कहीं तुम्हे किसी कालेधन की चिंता तो नहीं सता रही है रमेश ने छेड़ते हुए कहा। चुप कर! क्या काला धन लगा रखा है दो दिन से। माँ के पास कहाँ से आएगा कालाधन? कुछ भी अनाप-शनाप बोलता रहता है’। राधेश्याम ने बेटे को डांटा तो दादी गला साफ  करते हुए बोली थी। रमेश सही कर रहा है। मुझे सच में ऐसी ही कुछ चिंता है।’ राधेश्याम ने चौंक कर दादी की तरफ  देखा, वहीँ लक्ष्मी मुँह टेढ़ा कर के मुस्कुराई थी मानो कह रही हो। ‘मुझे तो पहले ही पता था।  दादी ने धीरे-धीरे कहना शुरू किया। ‘मेरे पास कुछ 500-1000 के पुराने नोट रखे हैं, मेरा तो कहीं कोई खाता है नहीं। ऐसे में अगर उन्हें समय रहते काम में नहीं लिया गया तो वे महज कागज के टुकड़े भर रह जायेंगे।’ ‘कोई बात नहीं माँ! तुम चिंता मत करो, कल रमेश बैंक में जा कर तुम्हारे सारे पुराने नोट बदलवा लायेगा‘। राधेश्याम ने दादी को आश्वस्त किया। ‘मगर वो रामप्रसाद तो कह रहा था कि बैंक में एक बार में सिर्फ  4000 रूपये ही बदले जा सकते हैं। दादी ने झिझकते हुए कहा ‘हाँ! ये बात तो सही है, तुम्हारे पास कितने हैं?’  ‘यही कोई लाख-सवा लाख’ ‘क्या! सवा लाख रुपये सबके मुँह खुले के खुले रह गए। दादी ‘शर्म के मारे जमीन में गढ़ी जा रही थी।   ‘मगर माँ जी! आपके पास इतने रुपये कहाँ से आये?’ लक्ष्मी उस दिन सास का पूरा पर्दाफाश करने के मूड में थी। ‘बेटा! मुझे माफ कर देना। ...दरअसल ये सारा पैसा तुम्हारा ही है।... मैंने स्कूल की अलमारी से तुम्हारी गैरहाजिरी में निकाला था। दादी ने बहुत हिम्मत जुटा कर कहा। ‘क्या! अपने ही घर में चोरी दादी की बात सुन कर लक्ष्मी आपे से बाहर हो गई। ‘नहीं लक्ष्मी! माँ ने कोई चोरी नहीं की। ये तो माँ का पुराना तरीका है बचत करने का। माँ तो बाबा की जेब से भी ऐसे ही पैसे निकाल कर बचाया करती थी...। और जब कभी मुझे किताबों या फिर फीस के लिए जरूरत पड़ती थी तो चुपके से निकाल कर थमा देती थी और वैसे भी मुझे पता था कि माँ रामप्रसाद की दुकान से नोट बंधवा कर लाती है। ये रूपये माँ ने हमारे ही मु‘िकल वक्त के लिए जमा कर रखे थे...। है ना माँ राधेश्याम ने माँ के गले में प्यार से बाहें डालते हुए कहा तो दादी की आँखें भी गीली हो गइर्ं। उसने लाल गमछा बेटे को थमाते हुए कहा ‘ये सारे रुपये तू बहू के खाते में ही जमा करवाना। लक्ष्मी तो घर की लक्ष्मी के पास ही रहनी चाहिए ना!’ ‘हुर्रे! दादी ने तो माँ को एक ही झटके में लखपति बना दिया।’ रमेश उछलते हुए बोला था। लक्ष्मी ने झुक कर दादी के पाँव छू लिए थे और दादी ने भी उसे अपने अंक में भर लिया था। तब का दिन है और आज का दिन...। सास-बहू का रिश्ता माँदृबेटी में बदल गया।‘माँ जी! खाना ठंडा हो रहा है...। आप किन ख्यालों में खो रही हैं?’ बहू ने स्नेह से उनके कंधे छूते हुए कहा तो दादी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई। ‘कुछ नहीं बहू! यूँ ही नोटबंदी की याद आ गई थी। उसकी भी तो सालगिरह आने वाली है ना कहते हुए दादी मुस्कुराई। ‘उस दिन तो मैं केक काटूँगी...। वो हमारे खूबसूरत रिश्ते की ‘शुरुआत की भी तो सालगिरह है ना।  ‘लक्ष्मी ने कहा और दोनों सास-बहू खिलखिला दीं। ’