यारो मुझको माफ करना...सॉरी!

माफी मांगना या सॉरी कहना भी एक कला है। किसी को सरे राह दो जूते मार दो,भद्दी-भद्दी गालियाँ बक दो और फिर शर्मिन्दा होने का नाटक करते हुए, सॉरी कहकर माफी मांग लो। यह आज की नई संस्कृति है। यह किसी ऐरे-गैरे का नहीं बल्कि महान सिद्धहस्त कलाकार का काम है। अंग्रेज गये तो यह कला वे उत्तराधिकार में हमें सौंप गये। अपराध करना फिर ‘सॉरी’ का राग अलापना हमारे चतुर सुजानों ने उन्हीं से सीखा। आजकल माफी की यह कला राजनीति में अपने पूरे शबाब पर है। हमारे पूर्वजों में इस कुटिल-चतुर माफीनामे या सॉरी की जगह निश्छल क्षमा-याचना की परिपाटी प्रचलित थी। वे दोनों हाथ जोड़कर अपने बड़ों और संत-महात्माओं से अपनी गलतियों॒ के लिए सादर ‘क्षमा’ मांग लिया करते थे। क्षमा याचना के बाद यह जरूरी नहीं है कि आपकी क्षमा या माफी स्वीकृत हो ही जाए। तब अपराध की गंभीरता के अनुसार क्षमा या माफी का स्वीकार-अस्वीकार निर्भर करता था। ‘सॉरी’ का यह लम्पट शब्द बीसवीं शताब्दी की देन है। गलती या अपराध करो और तुरंत सॉरी बोल दो, अपने तरफ से मामला खत्म। अब पीड़ित एक्शन ले तो वह बेचारा घोर अशिष्ट। सुसभ्य अंग्रेजों के इस सॉरी शब्द के बाद भी जो चिल्ल-पों मचाये, वह परम असभ्य नहीं तो और क्या? सॉरी शब्द सुनने के बाद पीड़ित के पास कहने और करने के लिए क्या बचता है, सिर्फ दिल मसोसकर, हाथ मलते रह जाने के ? अंग्रेज जब हिन्दुस्तान में राज करते थे तब क्या वे यहाँ से चुराकर बेशकीमती हीरे-मोती, सोने के सिंहासन, रत्न जड़ित तलवार, राजमुकुट, अरबों-खरबों की सम्पत्ति नहीं ले गए परन्तु उसे लौटाना तो दूर, आज तक उन कथित सभ्यों के मुंह से एक बार भी सॉरी शब्द नहीं निकला, है न कल के झोंपड़ी छाप राजनेता देश की सेवा करने और गरीबी हटाने के नाम पर आज अरब-खरबपति हो गए ? जनता जस की तस फटेहाल रह गई पर बेशर्मी सी की जनता के लिए इन लुटेरों के मुख से कभी सॉरी का एक छोटा सा शब्द भी नहीं निकला। इसे ही कहते हैं चोरी और सीनाजोरी। इस गरीब देश के नब्बे प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं। जनसेवा के नाम पर ये हर प्रकार की मुफ्त की सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। आजादी के छ: दशकों बाद भी आम जनता को रोटी,कपड़ा,मकान नहीं मिला और इन पुण्यात्माओं के पास किस रास्ते और कहाँ से आ गई इतनी लक्ष्मी! है किसी के पास जवाब ? इनसे एक गुजारिश है,महात्मन,कभी अकेले में अपने दिल को टटोलना और हो सके तो भारत माता से क्षमा-याचना कर लेना,शायद तुम्हारा मन कुछ हल्का हो जाए।राजनीति के गंदे गलियारे में एक दूसरे पर कीचड़ उछालना आम बात है। इनका एक ही नारा होता है ‘अपना करो नाम और विपक्षी को करो बदनाम।’ ऐसी होली हमारे प्रजातंत्र में रोज की बात है। चुनाव जीतने की कवायद में कई महाप्राण नेता अपने को महासंत घोषित करते हैं। मीडिया में चर्चित होने और अपना वजन बढ़ाने के लिए विपक्षियों पर भ्रष्टाचार के खुलेआम गंभीर किस्म के झूठे आरोप लगाते हैं। दुर्भाग्य से कभी कोई इन्हें कोर्ट में घसीट ले तो वे जज के सामने दोनों हाथ जोड़े, दीनहीन मुद्रा बना माफी की याचना करते,खड़े हो जाते हैं। मजा यह कि कोर्ट से बाहर निकलते-निकलते इनके चेहरे पर फिर वही बेशर्म कुटिलता, सोलह श्रृंगार किये किसी नवोढ़ा दुल्हन की तरह शर्माती-इठलाती अठखेलियाँ करने लगती है।

(अदिति)