मरुभूमि के रंग-बिरंगे और चितराम झोंपे

मरुभूमि राजस्थान की आन-बान और शान की परिचायक रोमांचक, अनूठी, अदभुत और मन को मोह लेने वाली वास्तुशिल्प और हस्तशिल्प शैली विश्व में एक अलग और विशिष्ट पहचान देती है। मरुभूमि में मौसम के नजारे भी बस देखते ही बनते है। यहाँ के सुनहरे रेत के टीले ग्रीष्म में आग उगलते है और सर्दी में हाडकंपा  देने वाली शीत लहर से यहाँ के वाशिंदों को बेहाल कर देते है। ऐसे में मरू क्षेत्र के रंग-बिरंगे और अनूठे झोंपड़े जिन्हें झौंपे या छान, पड़वे, पटाल आदि विविध नामों से जाना और पुकारा जाता है वे सर्दी -गर्मी से बेहाल और व्याकुल व्यक्ति को राहत पहुंचते है। ये छोटे-बड़े झोंपड़े अपनी रंग बिरंगी बनावट, हस्तशिल्प, बारीक कारीगरी और मांडनों के कारण सहज ही हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। मरुभूमि राजस्थान के रेत के सागर में अवस्थित झौंपे अपनी हाथ की कुशल बनावट और शिल्प के सौंदर्य से मुग्ध करते हैं।  ग्रामीण परिवेश की इस विलक्षण झांकी को गांव की महिला, पुरुष और बच्चे आपस में मिल बैठकर गोबर ,राख और मिट्टी से निर्मित कर रहने योग्य बना लेते हैं। झोंपड़ों को यथा आवश्यकता गांव में सुलभ खेजड़े और बबूल की टहनियों तथा अन्य जंगली पेड़ पौधों से मजबूत आकार देते है। इनके बाहरी और अंदरूनी हिस्से को मूंझ की रस्सी से इस तरह बांध और जोड़ देते हैं जिससे झोंपा किसी भी आंधी तूफान का सहजता से मुकाबला कर सके।  अँधियाँ रेगिस्तान की पहचान है और गर्मी आते ही अपने रौद्र रूप में आ जाती हैं। झौंपे के बनते ही इसकी साज-सज्जा को निखारा जाता है। कहीं शगुन के चिन्ह अंकित किये जाते है तो कहीं लोक गीतों के मुखड़े लिख दिए जाते है। देवी देवताओं के चित्र भी बना दिए जाते हैं।

-बाल मुकुन्द ओझा