बैंकों में किसानों के खाली चैक बन रहे हैं आत्महत्या का कारण


अमरगढ़, 25 सितम्बर (बलविन्द्र सिंह भुल्लर): पंजाब में किसान आत्महत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं। पंजाब की प्रमुख किसान संगठनों और अनेकों अन्य किसानों द्वारा किसान आत्महत्याओं के संदर्भ में की गई विस्तार सहित पूछताछ दौरान यह बात लगभग साफ हो गई है कि इन आत्महत्याओं के पीछे, एक दो या तीन नहीं बल्कि इससे अधिक कारण भी हो सकते हैं परन्तु सबसे अहम कारणों में एक है किसान को कज़र्ा देते समय आढ़तियों और बैंकों द्वारा दर्जनों खाली चैकों पर करवाए जा रहे हस्ताक्षर। कृषि कर रहा छोटा किसान अपनी पूरी उम्र कर्जे ले-लेकर अपना घर और कबीलदारी चलाता रहता है। पंजाब की बहुसंख्यक सीमांत किसानी के मालिक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा, विवाह शादियों और अपने घर को संवारने के लिए अनेकों वित्तीय संस्थाओं से हर ज़रूरत पूरी करने के लिए कज़र्ा उठाता रहता है। बैंक, आढ़तियों और कज़र्ा देने वाले अनेकों सरकारी-गैरसरकारी और सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि समूची कर्जदार किसानों के खाली चैक ले कर उनको लगातार डराते और धमकाते रहते हैं। एक प्रमुख गांव थुही (नाभा) के किसान ने अमरगढ़ में अपना नाम गुप्त रखते हुए अपने साथ आपबीती सुनाते हुए कहा कि एक बैंक द्वारा खाली चैकों पर हस्ताक्षर करने किसान को कितने महंगे पड़ते हैं इसकी मिसाल मैं सबूतों के आधार पर भी देने को तैयार हूं। उन्होंने कहा कि यदि पंजाब सरकार किसानों को आत्महत्या से मुक्त करना चाहती है तो पंजाब सरकार के अधिकारी बैंकों मेें छापा मारें जहां किसानों के खाली चैकों पर हस्ताक्षर किए हुए मिलेंगे। किसान सिर पर कज़र्ा न मोड़ सकने कारण जब इस संबंधित वित्तीय संस्थाएं जब उसके 20 हजार राशि के बदले लिए खाली चैक को ढाई लाख रुपये का भर कर वसूली के लिए लगाते हैं तो भारतीय अदालतों के जज हमेशा वित्तीय संस्थाओं के हक में फैसले दे देते हैं और दो लाख के चैक में एक लाख रुपये का ब्याज जोड़ कर उसको तीन लाख रुपये का बना देते हैं और किसान के कर्जे की रकम वसूली के लिए उस पर धारा 138 लगा कर उस कज़र्दार किसान को अपराधियों की श्रेणी में शामिल करके उसको जेल भेज देते हैं। इस दुखांत फिल्म का सदा के लिए अंत करने के लिए उसको आत्महत्या से आसान और कुछ नहीं लगता। इस तरह किसान आत्महत्याओं का दौर लगातार चलता रहता है।