भविष्य का सचिन तेंदुलकर बनने की राह परर् पृथ्वी शॉह


4 अक्तूबर को वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने पहले ही टैस्ट मैच में शतक बनाकर पृथ्वी शॉ ने जो इतिहास रचा, उसके बाद उन्हें ‘पृथ्वी मिसाइल’ कहा जाने लगा है और उनकी तुलना क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से भी की जाने लगी है। दरअसल 19 वर्ष से भी कम आयु के किसी खिलाड़ी के लिए अपने टैस्ट की शुरूआत किसी भी मैदान पर किसी विदेशी टीम के साथ करना और उसमें बेमिसाल शतकीय पारी खेलना आसान नहीं होता जबकि पृथ्वी ने 134 रनों की अपनी धुआंधार पारी से वेस्टइंडीज के छक्के छुड़ाकर साबित कर दिखाया कि उन्हें पिछले साल से ही ‘भविष्य का सचिन’ क्यों कहा जा रहा है। पृथ्वी ने अपनी इस पारी में 56 गेंदों में अपने टैस्ट कैरियर की पहली हाफ सेंचुरी लगाई तथा कुल 154 गेंदों में 134 रन बटोरे। उन्होंने जहां 99 गेंदों में अपना शतक पूरा किया, वहीं कुल 19 चौके लगाकर हर किसी को अपनी प्रतिभा से हतप्रभ कर दिया। यही वजह रही कप्तान विराट कोहली को भी कहना पड़ा कि अपने पहले ही टैस्ट में कमाल का प्रदर्शन कर पृथ्वी ने दिखा दिया कि उसमें एक अलग ही काबिलियत है। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि पृथ्वी के प्रदर्शन को देखते हुए लगता है कि भारत का एक और सुपरस्टार आ गया है।
हालांकि वेस्टइंडीज के पूर्व दिग्गज ऑलराउंडर कार्ल हूपर का मानना है कि पृथ्वी ने अपने पहले ही टैस्ट मैच में एक मंझे हुए बल्लेबाज की भांति बल्लेबाजी की किन्तु उसकी तकनीक में कुछ खामियां हैं और उसके लिए वर्तमान तकनीक तथा आक्त्रामक शैली के साथ विदेशों में अच्छा प्रदर्शन करना आसान नहीं होगा किन्तु भारत के कई खेल दिग्गज इससे इत्तेफाक नहीं रखते। पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज आकाश चोपड़ा इतना अवश्य कहते हैं कि पृथ्वी को अपने खेल में पैनापन लाने की जरूरत है लेकिन कई खेल विशेषज्ञ मानते हैं कि पृथ्वी में सचिन जैसी कलात्मकता और सहवाग जैसी शुरुआत है। कुछ साल पहले जब सचिन तेंदुलकर ने पृथ्वी को बगेबाजी करते देखा था तो उन्होंने उसे सलाह दी थी कि वह अपना स्टांस तथा बल्ला पकड़ने का तरीका कभी न बदले। दरअसल सचिन बाखूबी जानते हैं कि क्रिकेट में कोच अक्सर नए बल्लेबाजों के स्टाइल में बदलाव कराते हैं और इसीलिए सचिन ने पृथ्वी से कहा था कि अगर कोई कोच उसे स्टांस या ग्रिप बदलने को कहे तो वह उस कोच की बात सचिन से करा दें।
देखा जाए तो सचिन के बाद पृथ्वी ही क्रिकेट जगत के दूसरे ऐसे सितारे बने हैं, जिसके टैस्ट क्रिकेट में पदार्पण की इतनी चर्चा हुई है और उन्हें अभी से भविष्य के सुपरस्टार के रूप में देखा जाने लगा है। 
(शेष अगले अंक में)
आज से 28 साल पहले ऐसी ही चर्चाएं तब हुई थी, जब सचिन तेंदुलकर ने टैस्ट क्रिकेट में कदम रखा था और अब इतने वर्षों बाद अगर किसी खिलाड़ी की चर्चा इस प्रकार सचिन के साथ की जा रही है तो उसमें आखिर कुछ तो खास होगा ही न! दरअसल जिस प्रकार सचिन ने स्कूली दिनों से ही क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी, ठीक उसी प्रकार पृथ्वी भी स्कूली दिनों से ही क्रिकेट में कुछ न कुछ ऐसा कमाल करते रहे कि वे चयनकर्ताओं की नजर में आ गए। सचिन ने अपने पहले ही रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी तथा ईरानी ट्राफी में शतक लगाकर हर किसी को हतप्रभ किया था किन्तु वो अपने पहले टैस्ट में शतक लगाने से चूक गए थे। इसी प्रकार पृथ्वी ईरानी ट्राफी में शतक लगाने से चूक गए लेकिन उन्होंने अपने पहले ही रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी और टैस्ट मैच में शतक जड़कर साबित कर दिया कि उनमें वाकई दम है और उनकी तुलना सचिन से यूं ही नहीं की जा रही है। सचिन ने तो कहा भी है कि पृथ्वी की सबसे बड़ी काबिलियत हर परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेना है।
    वैसे यहां तक का पड़ाव पार करने के लिए पृथ्वी को संघर्षों की पथरीली राह पर से गुजरना पड़ा है। 9 नवम्बर 1999 को ठाणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे पृथ्वी ने तीन साल की उम्र में ही क्रिकेट के गुर सीखने शुरू कर दिए थे। दरअसल उनके पिता भले ही एक व्यवसायी थे लेकिन क्रिकेट के बड़े फैन भी थे लेकिन मात्र चार वर्ष की उम्र में ही अपनी मां को खो देने के बाद पृथ्वी पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा किन्तु उनके पिता ने हार नहीं मानी और पृथ्वी को क्रिकेट की बारीकियां सिखाने के लिए हरसंभव प्रयास किए। उसी का नतीजा रहा कि 2010 में मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वी ने 2000 से भी अधिक रन बना लिए थे, जिसके बाद शिवसेना के एक नेता ने उन्हें एक फ्लैट उपहार स्वरूप भेंट कर दिया था ताकि प्रैक्टिस के लिए उन्हें प्रतिदिन ट्रेन से 70 किलोमीटर का सफर तय कर अपना अमूल्य समय नष्ट न करना पड़े। उसी साल उन्हें कुछ कम्पनियों की ओर से स्पॉन्सरशिप भी मिली। 2011 में पृथ्वी का चयन पॉली उम्रीगर इलेवन के लिए किया गया। उस समय वह मुम्बई के रिजवी स्प्रिंगफील्ड हाईस्कूल में पढ़ रहे थे और उन्हें उसी वर्ष रिजवी स्पिं्रगफील्ड टीम का भी कप्तान बनाया गया।
    जब तेंदुलकर की ही भांति पृथ्वी ने 11 साल की उम्र में अपने स्कूल क्रिकेट में 546 रनों की विशालकाय पारी खेली तो क्रिकेट चयनकर्ताओं की दिलचस्पी उनमें बढ़ती चली गई। 17 वर्ष की उम्र में मुम्बई की ओर से खेलते हुए तमिलनाडु के खिलाफ 120 रनों की पारी, उसके बाद लखनऊ ट्राफी में 154 रन बनाकर और अब पहले ही टैस्ट में 134 रनों की बड़ी पारी खेलकर पृथ्वी ने साबित कर दिया है कि उनमें कितना टेलेंट छिपा है। सचिन को भी पीछे छोड़कर दिलीप ट्राफी में शतक लगाने वाले पृथ्वी सबसे कम उम्र के खिलाड़ी भी बने थे। उन्होंने आईपीएल में सबसे युवा ओपनर के तौर पर खेलने का रिकॉर्ड बनाया, वहीं भारत के सबसे कम उम्र में टैस्ट खेलने वाले दूसरे ओपनर भी बने। इससे पहले 1990 में सचिन तेंदुलकर ने मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ  अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय शतक लगाया था। बहरहाल, सचिन तेंदुलकर के बाद जिस प्रकार रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी और अब टैस्ट मैच में पृथ्वी ने धुआंधार शतकीय पारियां खेली हैं, उससे लगने लगा है कि देश को अब ऐसा बल्लेबाज मिल गया है, क्रिकेट की दुनिया में नया इतिहास बनाएगा।

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