पराली के निपटारे हेतु बढ़ रही है चेतना
इसमें किसी तरह के सन्देह की गुंजाइश नहीं है कि इस बार केन्द्र तथा उत्तर भारत के राज्यों की सरकारें धान की फसल की कटाई के बाद खेतों में बची पराली के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रयासरत हुई हैं। इससे पहले दशक भर धान की पराली और गेहूं के नाड़ को जलाने के मामले पर कभी भी सरकारों ने इतनी गम्भीरता नहीं दिखाई। केन्द्र सरकार ने भी पराली के प्रबंधन के लिए 500 से 600 करोड़ तक की राशि खर्च करने की बात की है। केन्द्रीय पर्यावरण, विज्ञान और टैक्नालोजी मंत्री हर्षवर्धन ने भी यह कहा है कि पराली जलाए जाने को रोकने के लिए प्रत्येक स्तर पर निगरानी की जा रही है। उन्होंने यह भी उम्मीद व्यक्त की है कि संबंधित राज्य भी इसके प्रति अधिक ज़िम्मेदारी और गम्भीरता से कार्य करेंगे। उन्होंने यह भी दावा किया है कि यह भी पूरे प्रयास किए जा रहे हैं कि आगामी कुछ दिनों में इसके प्रबंधन के लिए मशीनरी का प्रबंध कर दिया जाए। सरकारों द्वारा किए जा रहे प्रत्येक स्तर पर बड़े प्रयासों के परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए हैं। इस वर्ष गत दो वर्षों की अपेक्षा पराली जलाने वाली घटनाएं बहुत कम हुई हैं। गत काफी समय से इस संबंधी संबंधित राज्य सरकारें प्रयासरत हुई हैं। पंजाब में किसानों को इस उद्देश्य के लिए सबसिडी वाली 24 हज़ार के लगभग मशीनें सप्लाई की जा रही हैं। किसानों के साथ-साथ इनको सहकारी सभाओं में भी दिया जा रहा है। निगरानी के लिए सरकार के सभी विधायकों, सहकारी सभाओं के साथ-साथ कार्पोरेशनों तथा बोर्डों के अधिकारियों को भी सक्रिय किया जा रहा है। गांवों में किसानों को पराली जलाने के विरुद्ध सचेत करने के लिए 8 हज़ार नोडल अधिकारी तैनात किए गए हैं। इसके लिए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कृषि विभाग तथा ज़िला प्रशासकीय स्तर पर भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है, क्योंकि न सिर्फ इससे मानव शरीर को अनेक तरह की बीमारियां ही लगती हैं और पर्यावरण ही प्रदूषित होता है अपितु इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम होती है और मित्र कीड़ों का भी खात्मा होता है। नि:संदेह बहुत सारे किसानों के पास साधनों की कमी है और वह इस उद्देश्य के लिए पैसा खर्च करने में सक्षम नहीं हैं। इसी कारण ऐसी समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है, इसके बारे में सरकारों ने भी प्रयास शुरू कर दिए हैं। पंजाब में 65 लाख एकड़ रकबे में धान लगाया गया है, जिससे 2 करोड़ टन पराली पैदा होगी, परन्तु इसमें से पहले सिर्फ 50 लाख टन पराली की ही सम्भाल होती रही है। केन्द्र सरकार ने इस वर्ष पराली के प्रबंधन के लिए 665 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। अब जब यह बात इस सीमा तक पहुंच गई है तो आगामी समय में इस संबंधी और भी आविष्कार करने की ज़रूरत है। अब तक किए गए कुछ वैज्ञानिक आविष्कारों से भी पराली का अलग-अलग उद्देश्यों के लिए प्रयोग करने के रास्ते खुले हैं। आविष्कार की गई नई तकनीक से पराली का प्रयोग घरों की छतें, दीवारें, फर्श तथा कुछ अन्य घरेलू सामान बनाने के लिए भी किया जा सकेगा। यह दावा किया गया है कि विकसित की गई तकनीक से तैयार किया सामान सागवान की लकड़ी से चार गुणा अधिक मज़बूत होगा और 30 प्रतिशत सस्ता भी होगा तथा यह हर तरह के मौसम में पूरी तरह सुरक्षित भी रहेगा। इसके साथ-साथ सरकार प्रशासनिक शक्ति इस्तेमाल करने के भी मूड में प्रतीत होती है। अधिकतर स्थानों से यह भी समाचार मिल रहे हैं कि किसान इन प्रयासों में हर सम्भव सहयोग दे रहे हैं, उनमें इस गम्भीर मामले के बारे में जागरूकता बढ़ी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हर पक्ष से किए जा रहे ऐसे प्रयासों से इस समस्या का बड़ी सीमा तक हल निकाल लिया जाएगा और आगामी समय में इसके प्रति और जागरूक होकर इस पर पूरी तरह काबू पा लिया जाएगा। जिसको सभी गुटों की एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकेगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द