एस-400 मिसाइल सौदे से बंद होगी पाक की जुबान

पाकिस्तान कन्फ्यूज है कि सांस कहां से ले और प्रदूषित हवा किधर से छोड़े। उसकी वजह भारत को मिलने वाली एस-400 मिसाइल सिस्टम है। 2020 के बाद उसकी बोलती और बंद हो जाएगी, जब भारत इससे लैस होगा। पाकिस्तान बात-बात में भारत को धमकाता था कि हम भी नाभिकीय हथियार संपन्न देश हैं। पाकिस्तान इस समय रूस को कोसने की हालत में भी नहीं है कि भारत को एस-400 ट्रायंफ सिस्टम से वह लैस क्यों कर रहा है?  पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने मई 2018 में एस-400 की पहली खेप हासिल की है, तब इस्लामाबाद को कोई तकलीफ नहीं थी। मगर इस बार भारत के इस सौदे से उसे शदीद मिर्ची लगी है। पाकिस्तान को इसकी गलत फहमी हो गई थी कि मास्को मात्र उसकी तरफ मुखातिब है। 1 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के वायस एडमिरल कलीम शौकत ने सेंट पीटर्सबर्ग में नौसैनिक सहयोग के वास्ते रूस से हस्ताक्षर किया था। इस समझौते में साझा नौसैनिक अभ्यास भी शामिल है। यूं, इस सच से इंकार नहीं करना चाहिए कि 2014 में मोदी सरकार के आने के कई महीनों बाद तक मास्को से दूरी बनी हुई थी। 20 नवंबर 2014 को रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू इस्लामाबाद आए और रूस-पाक के बीच ऐतिहासिक सैन्य समझौता कर गए। इस समझौते में साझा अभ्यास को भी शामिल किया गया था। 24 सितंबर 2016 को रूसी सेना का एक दल रावलपिंडी उतरा। उस समय इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस के डी.जी. असीम बाजवा बयान दे रहे थे कि रूस और पाकिस्तान के 200 सैनिक साझा अभ्यास करेंगे। रूस अब तक चार एम.आई. 35-एम हैलीकप्टर पाकिस्तान को बेच चुका है। अभी रूस ने उस तरह के हथियार या युद्धक विमान पाकिस्तान को नहीं दिए, जो भारत के लिए चिंता का सबब हों। रूस जरूर पाकिस्तान के विकास में सहयोग कर रहा है। मसलन, रूसी मदद से लाहौर से कराची 11 किलोमीटर गैस पाइपलाइन लगाना यह बताता है कि मास्को ने पाकिस्तान की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का अहद कर रखा है। रूस-पाकिस्तान के उभयपक्षीय व्यापार में 2018 के पहले पांच महीनों में 82 फीसदी की बढ़ोत्तरी बताई गई है। चार अरब 5 करोड़ का व्यापार बताता है कि पाकिस्तान का नया निजाम आय के स्रोत के नये रास्ते तलाशने में लगा हुआ है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए मुश्किल यह है कि वह एस-400 मिसाइल पाने की हैसियत में नहीं है। अलबत्ता, पाक सेना के जनरल इसकी हसरत जरूर पालने लगे हैं। रूसी एस-400 ट्रायंफ सिस्टम में ऐसा क्या है, जिसे पाने के वास्ते दुनिया के विकसित देश भी लालायित रहे हैं? यह एक ऐसा परमाणु सुरक्षा कवच है, जो 32 जगहों से दागी गई मिसाइलों को हवा में ध्वस्त कर सकता है। चारों दिशाओं के वास्ते फिट एक यूनिट में आठ राकेट लांचर होते हैं, जो 400 किलोमीटर की दूरी से दागे गए प्रक्षेपास्त्रों को हवा में नष्ट कर सकते हैं। इस सिस्टम से छूटे रॉकेट 185 किलोमीटर (छह लाख 7000 फीट ) ऊंचाई तक लक्ष्य को भेद सकते हैं। ऐसी मारक क्षमता की वजह से इसका नाम ‘एस-400’ रखा गया है।  एस-400 की छह रेजीमैंटल सैट हासिल करने के वास्ते चीन को तीन अरब डॉलर रूस को देना पड़ा है। चीन ने रूस से एस-400 का सौदा 2014 के आखिर में किया था। चार वर्षों में चीन ने एस-400 हासिल कर अपने को परमाणु हमले से अभेद्य कर लिया है। भारत ने एस-400 आयात की बातचीत चीनी समझौते के प्रकारांतर से आरंभ की थी। फिर हम क्यों पीछे रह गए? यह सवाल राष्ट्र के प्रति चिंता व्यक्त करने वालों को देश की सरकार से अवश्य पूछना चाहिए। क्या इसके पीछे अनिल अंबानी की वह आयुध फैक्ट्री है, जिसे रख-रखाव के वास्ते छह अरब डॉलर का ठेका हासिल हो चुका है? हमारे यहां रक्षा सौदों की कीमत को लेकर भयानक गोपनीयता बरती जाती है। चीन के हर खास और आम आदमी को पता है कि एस-400 की डील तीन अरब डॉलर की है। इस डील को भारत की प्रतिरक्षा संकलन समिति (डिफैंस एक्वीजिशन कौंसिल) दिसंबर 2015 में हरी झंडी दिखाती है, तो उसकी कीमत होती है, 4.5 अरब डॉलर। अक्तूबर 2016 में गोवा में प्रधानमंत्री मोदी और प्रेसिडैंट पुतिन की उपस्थिति में एस-400 की डील पर बात हुई थी। उस समय की मीडिया हाइप देखकर लोगों को लगा कि डील पर हस्ताक्षर हो चुका है। यों, भारत सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि 17वीं शिखर बैठक में एस-400 पर हुआ क्या था? खैर! इस समय पाकिस्तान के प्रेक्षक अपनी ही सरकार को कोस रहे हैं कि इमरान खान सऊदी की यात्रा से पहले मास्को क्यों नहीं चले गये? इससे एक तीर से दो शिकार का होना संभव था। अमरीका ने जिस तरह से पाकिस्तान पर दबाव बना रखा है, उसका यह जवाब हो सकता था, साथ ही भारत से चल रही प्रतिरक्षा डील में कुछ गलतफहमी की गुंजाइश इमरान खान बना आते। फिर भी पाकिस्तान वालों को लगता है कि अमरीका भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है। अमरीकी संसद ने रूस पर प्रतिबंध लगाने के वास्ते ‘काटसा’ (काउंटरिंग अमरीका एडवर्सरीज थ्रू सैंग्शंस एक्ट) पारित किया था। ‘काटसा’ के अनुच्छेद 231 के जरिए अमरीकी राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह 12 प्रकार के प्रतिबंधों में से पांच को जब चाहे लागू कर सकता है। इस आधार पर ट्रंप प्रशासन ने 2 अगस्त 2017 को रूस, ईरान और उत्तर कोरिया पर ‘काटसा’ आयद किया था। ट्रम्प प्रशासन ऐसा कुछ भारत के विरुद्ध करता है, तो सबसे अधिक ठंडक पाकिस्तान के कलेजे को पहुंचेगी, ऐसा साफ-साफ दिखता है।