परीक्षा की घड़ी!


गत लम्बे समय से पंजाब में शिक्षा के प्रत्येक स्तर में गिरावट आई है। सरकारी स्कूलों से लेकर सरकार से सहायता प्राप्त करते स्कूल तथा अन्य शैक्षणिक संस्थान भी बुरी तरह आर्थिक मुश्किल में फंसे नज़र आते हैं। कड़ी आर्थिकता की मार झेलती सरकार चाहे अपने द्वारा इस क्षेत्र में सुधार के लिए कुछ प्रयास भी कर रही है, परन्तु गिरावट की ओर जाती स्थिति और नीचे खिसकती जा रही है। इसी शृंखला में गत कुछ समय से सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा), आदर्श तथा मॉडल स्कूलों के अध्यापक मुश्किल में फंसे नज़र आते हैं। गत लगभग 10 वर्षों से यह अध्यापक कच्चे कर्मचारियों के तौर पर कार्य करते रहे हैं। इनके वेतन के लिए अधिकतर फंड केन्द्र सरकार की योजनाओं के अधीन आता है, परन्तु उपरोक्त वर्गों के ये अध्यापक लगातार दबाव डालते आ रहे हैं कि उनको पक्के कर्मचारी बनाया जाए। इस संबंधी अध्यापक यूनियनों की पंजाब सरकार के साथ विचार-चर्चा भी होती रही हैं। शिक्षा मंत्री के अनुसार ये अध्यापक जो पहले केन्द्र सरकार के फंडों के सहारे चलते थे और इनके भविष्य पर हर समय तलवार लटकती रहती थी, को पक्के करने का फैसला उपरोक्त यूनियन नेताओं के साथ तीन बैठकें करने के बाद लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे पहले की गई अध्यापकों की भर्ती में इन सोसायटियों के 800 अध्यापक टैस्ट देकर पक्के हुए हैं। उनको भी प्राथमिक वेतन ही दिया जा रहा है। परन्तु सरकार ने इन अध्यापकों को नये रखे हुए अध्यापकों से अधिक वेतन देने का फैसला किया है। 
अपनी मांगों के लिए तत्पर हुए संगठन यह बात मानने को तैयार नहीं कि उनको पक्के करने की प्रक्रिया में सरकार उनको पहले दिए जा रहे वेतन में अब 65 से 70 प्रतिशत कटौती कर दे। इस प्रसंग में 8886 अध्यापक संघर्ष कर रहे हैं, जिनकी मांग है कि सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करके उनको पक्का करने के साथ-साथ उनको पहले दिया जा रहा है पूरा वेतन ही दिया जाए। परन्तु शिक्षा मंत्री के साथ-साथ अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी संघर्ष करते अध्यापकों की ये मांगें मानने से स्पष्ट इन्कार कर दिया है और कहा है कि अध्यापकों सहित लगभग 40 हज़ार कर्मचारी ऐसे हैं, जिनको पक्का किया जाना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग के अध्यापकों को यह विकल्प दिया गया था कि वह लगातार ठेका आधार पर रह सकते हैं। या रैगूलर होने से पहले तीन वर्ष के लिए 15 हज़ार रुपए पर कार्य कर सकते हैं। अध्यापकों द्वारा चुने गए विकल्प के आधार पर ही उनको पक्के करने का फैसला लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि उनको अध्यापकों के साथ सहानुभूति है, परन्तु वित्तीय संकट पूर्व अकाली-भाजपा सरकार की देन है, परन्तु नई सरकार बनने से पहले चुनावों के दौरान कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा उनके साथी इन अध्यापकों के साथ यह वादे करते रहे थे कि उनकी सरकार आते ही उनको पूरे सम्मान सहित पक्का किया जाएगा, परन्तु अब वह पिछले वायदे और दावे भुला कर सरकार के समक्ष खड़े वित्तीय संकट का हवाला देने लगे हैं। इस तरह से यह स्थिति और भी पेचीदा बनती जा रही है।
नि:संदेह सरकारों को राज्य का कामकाज चलाते हुए हर क्षेत्र की योजनाओं पर वित्तीय साधनों के अनुसार खर्च करना होता है, परन्तु सरकारों को ऐसी वित्तीय योजनाएं बनाते हुए कुछ प्राथमिकताएं अवश्य निर्धारित करनी चाहिएं। इनमें से शिक्षा और स्वास्थ्य प्रथम प्राथमिकताओं में आना आवश्यक है, परन्तु सरकार की ओर से पेश किए जाते बजट में से इन दोनों ज़रूरी क्षेत्रों पर धन-राशि ज़रूरत से कहीं कम आरक्षित रखी जाती है। यही बड़ा कारण है कि गत लम्बे समय से इन क्षेत्रों में हर पक्ष से बड़ी गिरावट आती जा रही है। नि:संदेह किसी भी सरकार के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण अवश्य है, परन्तु सरकारों की सफलता इसी बात में आंकी जाती है कि वह अपने आरक्षित फंडों का इस्तेमाल किस बेहतर ढंग से करती है। आर्थिक संकट में फंसी सरकार का तो वित्तीय साधनों के प्रयोग संबंधी और भी बेहद सचेत होना ज़रूरी होता है, क्योंकि इस दृष्टिकोण को ही सरकार की सफलता या असफलता का पैमाना बनाया जाता है। नि:संदेह सरकार के समक्ष आज यह चुनौती है कि उसने इस कड़ी परीक्षा से किस तरह गुज़रना है। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द