गुजरात में उत्तर भारतीयों के खिलाफ  अभियान ़खतरनाक


गुजरात में महाराष्ट्र के उस दौर की खतरनाक और दुखद पुनरावृत्ति हुई है जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने उत्तर भारतीयों पर हमले तथा उनके बाहर निकालने की मूर्खतापूर्ण मुहिम चलाई थी। हालांकि गुजरात भाईचारे और प्रेमपूर्ण व्यवहार के लिए जाना जाता है। ईरान से आए पारसियों को इन गुजरातियों ने दिल खोलकर अपनाया तथा आज वे इनके समाज के अभिन्न अंग हैं। देश भर के लोग गुजरात में कई प्रकार के कामों में वर्षों से लगे हैं और आम गुजरातियों के उनके साथ बिल्कुल मित्रवत् संबंध रहे हैं। गुजराती समुदाय दुनिया भर में हैं और वहां भी वे उन संस्कृतियों के साथ सामंजस्य बिठाकर रह रहे हैं। लेकिन अभी गुजरात के कुछ क्षेत्रों में जो कुछ घटित हुआ है उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। उत्तर भारतीयों पर हमले हुए हैं, उनको गुजरात छोड़कर जाने की खुलेआम धमकियां दी गईं हैं और यह अभियान इतना प्रचण्ड हुआ कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एक लाख के करीब उत्तर भारतीय गुजरात से जा चुके हैं। बिल्कुल डरावनी स्थिति है। पुलिस प्रमुख की चेतावनियों व कुछ सौ लोगों की गिरफ्तारियां तथा सुरक्षा के आश्वासन का असर है लेकिन उत्तर भारतीय आश्वस्त नहीं हो पा रहे। यह सामान्य समझ की बात है कि अगर समूह में लोग फैक्ट्रियों में, बस्तियों में, बाजारों में घुसेंगे, हमले करेंगे और चेतावनी देंगे कि आपलोग गुजरात छोड़ दो नहीं तो मारे जाओगे तो कोई क्या करेगा। कई घटनाओं में तो ये लोग महिलाओं को खदेड़ते देखे गए। 
गुजरात के कम से छ: जिलों में गैर गुजरातियों के लिए भीड़ के आतंक का राज कायम हो गया था। ये जिले हैं,  मेहसाणा, साबरकांठा, अहमदाबाद, अहमदाबाद ग्रामीण, गांधी नगर और सुरेन्द्र नगर। इन जिलों में धमकी देने वालों, हमला करने वालों के खिलाफ  मुकद्दमे दर्ज हो रहे हैं, गिरफ्तारियों भी हो रहीं हैं, पर इससे जान बचाकर भागने की मानसिकता पर जितना असर होना चाहिए नहीं हुआ है। दरअसल, साबरकांठा में 28 सितंबर को 14 महीने की एक नाबालिग से दुष्कर्म हो गया। इसके आरोप में बिहार से आया एक कामगार गिरफ्तार हुआ। दुष्कर्म के बाद गुस्सा स्वाभाविक है। लोग सड़कों पर उतरेंगे यह भी सही है। किंतु यहां उत्तर भारतीयों को खलनायक बनाने का अभियान चल पड़ा। सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली और भड़काऊ पोस्ट की बाढ़ आ गई। पूरी स्थिति का विश्लेषण यह बताता है एक जघन्य अपराध के बहाने कुछ लोगों ने सुनियोजित तरीके से यह मुहिम चलाई है। ठाकोर सेना के लोगों ने उनको धमकाया और उन पर हमले किए। मीडिया रिपोर्टों से भी यह साफ  हो जाता है। 2 अक्तूबर को तो कांग्रेस के विधायक और गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना के संयोजक अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व में एक समूह मेहसाणा जिले में वडनगर कस्बे में जुलूस निकालकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ  नारे लगा रहा था। देखते-देखते जुलूस हिंसक हो गया और एक फैक्टरी पर हमला कर वहां के कुछ कर्मचारियों की पिटाई कर दी। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा। प्रदर्शनकारी, प्रवासी कामगारों को हटाने की मांग कर रहे थे। अल्पेश ठाकोर का वक्तव्य है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है, हमने कभी हिंसा की वकालत नहीं की और हमेशा शांति की बात की है, सभी भारतीय गुजरात में सुरक्षित हैं। मीडिया के सामने उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे कि मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं। लेकिन 2 अक्तूबर को निकले जुलूस के दिन का ही उनका बयान वहां की मीडिया में छपा है जिसमें वे कह रहे हैं कि इंडस्ट्रियल यूनिट्स को दूसरे राज्यों की जगह स्थानीय लोगों को काम देना चाहिए। उसके पहले के भाषण में वे कह रहे हैं कि उत्तर भारतीय आते हैं, अपराध करते हैं और भाग जाते हैं। वो उनको बाहर करने के लिए लोगों को भड़का रहे हैं, ट्रकों को रोकने, टायर काटने का आह्वान कर रहे हैं। एक बार आपने आग लगा दी उसके बाद पश्चापात करने से कुछ नहीं हो सकता। गुजरात के माथे पर कलंक लग चुका है। 
 वस्तुत: ठाकोर सेना की उग्रता से ही यह अभियान तेजी से फैला। कुछ उदाहरण पर्याप्त हैं। 3 अक्टूबर को भी ठाकोर सेना के नेतृत्व में भीड़ ने अहमदाबाद के चांदलोडिया इलाके में तोड़-फोड़ की और उत्तर भारतीयों को शहर छोड़ने की धमकी दी। अरावली के कबोला गांव में एक फैक्ट्री के बाहर 200 लोगों की भीड़ गैर-गुजरातियों को चुपचाप बाहर चले जाने की धमकी देता वीडियो में दिखाई दे रहा है। आपको पिछले कुछ दिनों में इस तरह की अनेक घटनाएं मिल जाएंगी। कहीं बसों को रोककर लोगों को पीटा जा रहा था तो कहीं ऑटो को निशाना बनाया जा रहा था हैं। कहीं फल और सब्ज़ी बाजार मेें ठेले पलटे जा रहे थे तो कहीं काम से लौटते कामगारों को बेइज्जत किया जा रहा था।  इसमें किसी प्रकार का सबूत तलाशने की आवश्यकता कहां रह जाती है। इसके पीछे राजनीतिक कारण भी बताया जा रहा है। प्रवासी कामगारों के बारे में प्रचार है कि उनमें से ज्यादातर एक विशेष पार्टी को वोट दे रहे हैं। साफ  है कि एक घटना को आधार बनाकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ  घृणा और गुस्सा पैदा करने की साजिश रची गई। 
दुष्कर्म का अपराधी कोई एक व्यक्ति हो और आप सभी लोगों को दोषी बना दें यह कैसा न्याय है? कोई ऐसा राज्य नहीं जहां दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध नहीं होता हो। गुजरात पुलिस के रिकॉर्ड में हर वर्ष दुष्कर्म के आंकड़े हैं और अंजाम देने वालों में स्थानीय लोगों की संख्या ही ज्यादा है। अपराधी किसी जाति, राज्य, समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वह केवल अपराधी होता है जो किसी राज्य, जाति, समुदाय से हो सकता है। गुजरात पुलिस महानिदेशक शिवेंद्र झा का बयान है कि हिंसा के लिए लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से उकसाया जा रहा है। गुजरात पुलिस का साइबर सेल सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाले लोगों की पहचान कर गिरफ्तारियां कर रहा है। पुलिस के जवान लगातार गश्त कर रहे हैं और किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए हर संभव कोशिश में लगे हैं। मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने भी कड़ा बयान दिया एवं गैर गुजरातियों को पूरी सुरक्षा देने का आश्वासन। पलायन कर गए लोगों से वापस आने की भी अब अपील हो रही है। किंतु अल्पेश ठाकोर एवं उनके प्रमुख साथियों पर उसी तरह कार्रवाई नहीं की जा रही है जिस तरह महाराष्ट्र में राज ठाकरे एवं उनके प्रमुख साथियाें के खिलाफ  कार्रवाई नहीं हुई। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक गैर गुजरातियों के अंदर सुरक्षित होने का विश्वास नहीं लौट सकता।  
ऐसी घटनाएं पूरे देश का माहौल तो खराब करती ही हैं, गुजरात की छवि पर भी बट्टा लगता है और इसका असर वहां की आर्थिक गतिविधियों पर सीधा पड़ने लगा है। अनके फैक्ट्रियों और कारोबारी संस्थाओं तथा औद्यगिक क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा मुहैया करानी पड़ रही है। अनेक औद्योगिक इकाईयां तो बंद हो गईं हैं या कामगारों की कमी के कारण उनके उत्पादन पर असर पड़ा है। उद्योगपतियों एवं कारोबारियों के प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री विजय रुपानी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल से मिलकर कामगारों को सुरक्षा देने की मांग कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि इनसे काम पर विपरीत असर पड़ रहा है। जो कामगार नहीं भागे हैं वे भी डर से काम पर आ नहीं रहे हैं। जिन जिलों में गैर गुजरातियों के खिलाफ अभियान चले हैं वहां का मोटा-मोटी आकंड़ा यह है कि काम करने वालों में कम से कम एक तिहाई उत्तर भारतीय हैं। उनमें प्रबंधक, इंजीनियरं,, लेखाकार, कम्प्यूटर ऑपरेटर आदि से लेकर हर तरह के प्रशिक्षित-अप्रशिक्षित मज़दूर तक शामिल हैं। ये गुजरात की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ हैं। यही नहीं अनेक उत्तर भारतीय भी वहां उद्योग एवं कारोबार स्थापित कर चुके हैं। पूरे गुजरात को यदि उत्तर भारतीयों से खाली करा दिया जाए तो वहां हाहाकार मच जाएगा। वहां के व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार को पता है कि ये उत्तर भारतीय गुजरात की अर्थ-व्यवस्था के हृदय से लेकर धमनी और रक्तनलिकाएं हैं। जाहिर है, इस घृणाजनित उग्रता को जल्द रोका जाए। गुजरात सरकार से रेलों और बसों से भाग रहे कामगारों को रोके तथा उपद्रवियों के खिलाफ  कड़ाई से पेश आए। 
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