त्यौहारों का खान पान, न कर दे परेशान


धर्म निरपेक्ष भारत में धर्मों के साथ-साथ उनके त्यौहारों की भरमार है। यहां के लोग उत्सवधर्मी हैं। हर तीज-त्यौहार को उत्सव जैसा रूप देकर बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं। इनमें खानपान की बड़ी विविधता है। सभी त्यौहारों में उनेक प्रकार के पकवान व व्यंजन बनाये एवं खाये जाते हैं। यही तो उस त्यौहार की पहचान है तथा उसकी पूर्णता का प्रतीक है। इन पकवानों तथा व्यंजनों में नमक, मिर्च, मसाला, घी-तेल व शक्कर-गुड़ की भरमार होती है। त्यौहार के निमित्त खानपान अर्थात् व्यंजन एवं पकवान पेट में जाकर परेशानी भी खड़ी कर देते हैं और त्यौहार का यही खानपान परेशान कर देता है। यहां पार्टी लेने देने की परंपरा सी चल पड़ी है। पार्टी एवं होटलों में भी ऐसा ही गरिष्ठ खानपान खाने को मिलता है। यहां पेट को किसी न किसी बहाने बीमारी का पिटारा बनाने का पूरा इंतजाम है। भारतीय खानपान की विशेषता है कि इनमें मिर्च मसाला, नमक, घी-तेल, गुड़ शक्कर की अधिकता होती है। ये सभी तलकर भूनकर या चाशनी में बनाये जाते हैं। सभी व्यंजन एवं पकवान ऊर्जा वसा एवं शक्कर से परिपूर्ण तथा गरिष्ठ होते है। ये रक्त में कोलेस्ट्राल, शरीर में चरबी बढ़ाते हैं। स्वादिष्ट होने के कारण हम डटकर इन्हें खाते हैं जो गरिष्ठ होने के कारण देरी से हजम होता है। यही हजम न होना या देरी से हजम होना अफारा, अम्ल, गैस एवं अपच जैसी परिस्थितियां निर्मित करता है। भारतीयों को यह शिकायत सामान्यत: होती रहती है। इसके इलाज के लिए अनेक घरेलू नुस्खे भी प्रयोग किये जाते हैं। दादी-नानी के पास ऐसे नुस्खों की खान होती है। जब ऐसी शिकायतें बढ़ जाती हैं तो घरेलू नुस्खे निष्प्रभावी हो जाते हैं। त्यौहारी खानपान की अधिकता, अनियमितता एवं श्रम के अभाव से अम्ल, गैस, अपचन, दस्त या कब्ज की शिकायत होती है। खानपान से उपजी ऐसी शिकायतों से बचने के लिए तला, भुना पकवान, व्यंजन कम खाएं। कुछ अंतराल करके खाएं एवं श्रम करें। सामने फल-फूल, सब्जी सलाद व रायता हो तो उसे यथोचित अवश्य खाएं। यह पाचन दुरुस्त रखेगा एवं अम्ल, गैस, अपचन, अफारा आदि से बचाएगा। 
नमक, शक्कर मिश्रित चूर्ण को एक चम्मच खाकर ऊपर से नींबू पानी॒ या पानी पी लेने से सब शिकायत दूर हो जाती हैं। सौंफ, जीरा, अजवाइन, धनिये में पेट के सभी रोगों एवं शिकायत दूर करने की क्षमता है। मूल रूप या गोली एवं चूर्ण रूप भी औषधि का काम करता है। (स्वास्थ्य दर्पण)
-सीतेश कुमार द्विवेदी