71 वर्षों की हुई अंतर्राष्ट्रीय सीमार् अक्तूबर 1947 में दोनों ओर लोहे के खाली ड्रम रखकर की गई थी वाघा सीमा कायम


अमृतसर, 16 अक्तूबर (सुरिंदर कोछड़) : ब्रिटिश वकील सिरिल रैडकलिड और तत्कालीन वायसराय लार्ड माऊंटबेटन द्वारा पंजाब के ज़िलों में बंटवारे संबंधी अचानक बदले गए फैसले ने हज़ारों लोगों को घरों से बेघर कर दिया। 123 इन्फैंटरी ब्रिगेड के कमांडर महेन्द्र सिंह चोपड़ा द्वारा दोनों देशों में अक्तूबर 1947 को वाघा सुरक्षा चौकी की नींव रखी गई थी, जिसके बाद खून-खराबे और लूटमाट की वारदातों का सिलसिला कुछ कम हुआ।
 अक्तूबर 1947 के दूसरे सप्ताह चोपड़ा ने राष्ट्रीय सीमा में पाकिस्तान सेना के नव-नियुक्त अधिकारी ब्रिगेडियर नासिर अहमद के साथ मुलाकात की, जोकि बंटवारे के तीन महीने पहेल उनके साथ एक रैजीमैंट में काम कर चुका था। दोनों ने आपस में विचार-विमर्श कर मुख्य मार्ग पर दो लोहे के खाली ड्रम पर सफैदी करके भारत-पाकिस्तान लिखते अंतर्राष्ट्रीय सीमा कायम कर दिया। भारत-पाकिस्तान सीमा पर इसके बारे में लगाए गए पित्तल के पतरे और आज भी ब्रिगेडियर महेन्द्र सिंह चोपड़ा द्वारा सीमा कायम किए जाने के बारे जानकारी दर्ज है। वर्णनीय है कि देश के बंटवारे के 60 वर्ष के बाद  भारत सरकार को ध्यान आया कि वाघा गांव वर्तमान में लाहौर के अधीन है और ज्वाइंट चैक पोस्ट से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर पाक सीमा की ओर है, जबकि यहां जी.सी.पी. मौजूद है वह भारतीय गांव अटारी का भाग है, जिसके बाद ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 8 सितम्बर 2007 को भारत की ओर सीमा का नाम बदलकर अटारी बार्डर रख दिया गया, जो सरकारी आदेश जारी होने के बाद भी सिर्फ सरकारी दस्तावेज़ों और सरकारी कामकाज तक ही सीमित है। अभी भी भारत की ओर अल्पसंख्यक   के साथ अटारी-वाघा सीमा को ‘अटारी बार्डर’ की जगह ‘वाघा सीमा और हर सायं सीमा’ को दोनों ओर सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त तौर पर पेश किए जाने वाली रीट्रिट सैरामनी (झंडा उतारने की रस्म) को ‘रीट्रिट सैरामनी’ कह कर संबोधित किया जा रहा है। यहां तक कि पंजाब सरकार पर्यटन विभाग द्वारा हर शाम यात्रियों को अटारी सीमा पर झंडा उतारने की रस्म दिखाने के लिए ले जाने वाली डब्वल डैकर बसों, 300 के लगभग निजी टैक्सियां, आटो रिक्शा और सीमा को जाते प्रमुख मार्ग पर अटारी की जगह वाघा सीमा के बोर्ड लगाए गए हैं।