भारतीय पैरा एथलेटिक का उभरता सितारा है नगिन्द्र सिंह उत्तराखंड

‘आंखों में रौशनी नहीं पर दिल में पल रहे हज़ारों ख्वाब दौड़ते हैं, शान से खेल के मैदान इसलिए भर रहे हैं ऊपर की उड़ान’ भारतीय पैरा-एथलैटिक उभरता सितारा है नगिन्द्र। जिस पर आने वाले समय में भारत देश को बहुत उम्मीदें हैं और नगिन्द्र बहुत छोटी उम्र में ही न देख सकने के बावजूद भी हिम्मत और दिलेरी की वह मिसाल है कि सच ही आने वाले समय में भारत उस पर गर्व करेगा। नगिन्द्र का जन्म उत्तराखंड प्रांत के ज़िला देहरादून के एक छोटी-सी पहाड़ी पर बसे गांव  कैलासपुर में पिता शिव सिंह भंडारी के घर माता सुरभि भंडारी की कोख से हुआ और नगिन्द्र को जन्म से बहुत कम दिखाई देता था और परिवार को आशा थी कि जब वह बड़ा होगा तो शायद उसकी आंखों की रौशनी बढ़ जाएगी, लेकिन परमात्मा की रज़ा मानने के सिवाय कुछ और नहीं किया जा सकता था और नगिन्द्र बिना रोशनी के ही जीने के लिए मजबूर था। वर्ष 2008 में नगिन्द्र को देहरादून के नेत्रहीन स्कूल में दाखिल करवा दिया गया, जहां उसने पढ़ाई के साथ-साथ खेल की गतिविधियों को भी करना शुरू कर दिया। उससे स्कूल में ही उसकी मुलाकात एथलैटिक के कोच नरेश सिंह नियाल से हुई और उनका साथ मिला और उसने दौड़ लगानी शुरू कर दी। उसको यह सम्मान भी जाता है कि उसने पांच किलोमीटर की रेस में हिस्सा लेकर अपना लोहा मनवाया है और राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक अपने नाम किया है, लेकिन छोटी उम्र की उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वर्ष 2018 में लुधियाना में एन.एफ.पी. की ओर से करवाई गई नेत्रहीन खिलाड़ियों की खेलों में उसने 200 और 400 मीटर दौड़ लगाते हुए तीन स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा करने में सफलता हासिल कर ली। नगिन्द्र कहते हैं कि उसका लक्ष्य है कि वह अपने कोच नरेश सिंह नियाल के नेतृत्व में खेलते और सीखते हुए एक दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़रूर खेलेगा, जिसके लिए वह अभी से ही स्वयं को तैयार कर रहा है और उसके कोच नरेश सिंह नियाल का कहना है कि नगिन्द्र आगे बढ़ने और कुछ कर दिखाने की प्रबल समर्था रखता है। नि:संदेह वह आने वाले दिनों का भारतीय पैरा एथलैटिक का उभरता हुआ सितारा है और उसका स्कूल एन.आई.वी.एच. उस पर गर्व करता है।