शब्द बोल पड़े
वैभव आठवीं कक्षा पास कर चुका था। वह बहुत अच्छा लड़का था। सभी लोग उसकी अच्छी आदतों के प्रशंसक थे। उसकी संगति भी अच्छे बच्चों के साथ थी। उसके पापा की पदोन्नति होने के कारण उन्हें अन्य शहर में जाना पड़ा। नई कक्षा तथा नया विद्यालय होने के कारण उसकी संगति नये बच्चों के साथ हो गई। नये बच्चों की न तो आदतें अच्छी थीं और न ही उनका स्वभाव। वे झगड़ालू तथा शरारती किस्म के बच्चे थे। कुछ समय तो उन बच्चों की कुसंगति का बुरा प्रभाव उस पर न पड़ा, परन्तु जैसे-जैसे समय आगे बढ़ने लगा वैसे-वैसे उसकी आदतें बिगड़ने लगीं। वह उनकी तरह अपशब्द बोलने लगा। उन्हीं की तरह वह शरारतें करने लगा। पढ़ाई में पिछड़ने लगा। उसके मम्मी-पापा तथा उसकी बड़ी बहन मानसी ने उसे सावधान करते हुए कहा—‘वैभव, तुम अपने आपको संभालो, तेरे साथ रहने वाले बच्चे तुम्हें बिगाड़ रहे हैं’। उन्होंने कई बार उसे उनके साथ खेलने जाने से भी रोका परन्तु वह समझ न सका। शुरू-शुरू में तो उसके अध्यापक भी उसकी अच्छी आदतों से प्रभावित हुए लेकिन उसकी बिगड़ती आदतों को देखकर वे भी उनको न पसंद करने लगे। उसके गणित अध्यापक ने तो उसे यहां तक कह दिया कि उसे उसके पापा को स्कूल बुलाना पड़ेगा। अध्यापक की डांट के कारण कुछ दिन तो उसने उन शरारती बच्चों की संगति छोड़ दी परन्तु वह पुन: उसी रास्ते पर आ गया। घरेलू परीक्षा में वह पास तो हो गया, लेकिन बहुत थोड़े अंकों में। पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों की तरह उसके पापा को भी स्कूल बुलाया गया। घर आकर उसके मम्मी-पापा ने उसे कहा—‘बेटा, क्या तुमने अपने बारे में सोचा है कि पिछली कक्षा में तुम्हारे अध्यापक हमें तुम्हारी प्रशंसा के लिए बुलाते थे, अब तुम्हारे अध्यापकों ने हमें तुम्हारी शिकायत करने के लिए बुलाया है?
वैभव अपने मम्मी-पापा के शब्द सुनकर काफी शर्मिन्दा हुआ। उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ लेकिन उसके एक साथी ने उसे कहा—‘वैभव, इसमें चिन्ता करने की क्या बात है? माता-पिता का काम बच्चों को समझाना ही होता है। वार्षिक परीक्षा अभी काफी दूर है। माता-पिता के कहने से हम घूमना फिरना थोड़ा छोड़ सकते हैं? मैं तो परीक्षा के पास जाकर ही मेहनत करता हूं और अच्छे अंक लेकर पास हो जाता हूं। वैभव उसकी बातों में आ गया। वह उनकी कुसंगति को त्याग न सका। शरद ऋतु का अवकाश हुआ। उसके पिछले विद्यालय का एक मित्र जिसके पापा उनके पड़ोसी थे, उसे मिलने आया। वह उसके पास तीन-चार दिन तक रुका। वह अपने उस पुराने मित्र पीयूष को हर रोज नए मित्रों से मिलाने और खेलने के लिए ले जाता। पीयूष तीन चार दिन उनके साथ खेलता रहा। वे उसको अपने घर ले जाने के लिए कहते लेकिन वह इन्कार कर देता। वैभव ने एक दिन पीयूष को पूछ ही लिया—‘पीयूष, यार तुम मेरे नए मित्रों से ठीक ढंग से बोलते क्यों नहीं? तुम उनके घर जाने के लिए भी तैयार नहीं हुए? पीयूष ने उसे उत्तर दिया—‘वैभव, यार मैं तुम्हें तुम्हारे मित्रों के बारे में कुछ कहना नहीं चाहता था लेकिन अब यदि तुमने मुझसे पूछ ही लिया तो सुन, मुझे ये तेरे मित्र पसंद ही नहीं। पता नहीं तुम इनके दोस्त कैसे बन गए? यदि तुम अपना भला चाहते हो तो इनकी संगति छोड़ दो। पीयूष के जाने के बाद भी उसके शब्द उसके कानों में गूंजते रहे। उसके शब्द बोल रहे थे कि उसे उनकी संगति छोड़ देनी चाहिए। उसने एक दिन उनकी संगति छोड़ने का निर्णय ले ही लिया।
—प्रिंसीपल विजय कुमार