मिट्टी के बने दीये करेंगे चाइना लड़ियों की रोशनी को फीका

अमृतसर, 19 अक्तूबर (सुरिंदर कोछड़) : भारतीय बाज़ार में धाक जमा चुके चाईना की बनी लड़ियां मिट्टी के बने दीयों की बिक्री पर अपना असर नहीं दिखा पा रही हैं। इसके अतिरिक्त पंजाब से बाहर दूसरे राज्यों में मशीनों से तैयार किए जाने वाली चूना मिट्टी के विभिन्न डिजाइनों वाले दीये भी हाथों से बनाए जाने वाले चिकनी मिटटी के बने दीयों का मुकाबला करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। पुरानी चली आ रही रिवायत के अनुसार दीवाली के अवसर पर अधिकतर लोगों द्वारा मिट्टी से तैयार दीयों में सरसों का तेल डालकर अपने घरों, दुकानों और धार्मिक स्थानों में बाहर जगाया जाता है। अमृतसर की आबादी छोटा हरीपुरा के मोहल्ला घुमियारां में मिट्टी के दीये बनाने के धंधे से जुड़े कारीगरों का कहना है कि यहां एक दिन में प्रति कारीगर हाथ से 1000 के लगभग दीये बना लेते हैं, वहीं मशीन द्वारा  आसानी के साथ एक दिन में 6 हज़ार दीये बनाए जा सकते हैं। रेवती रमन पप्पू नाम के एक कारीगर के अनुसार स्थानीय घुमियार बरादरी के लोग लगभग एक सदी से चिकनी मिट्टी के दीये व बर्तन बनाने का कारोबार करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि चाईना की बनी अन्य वस्तुओं सहित जगमगाते बिजली की लड़ियों ने भारतीय बाज़ार में खूब धूम मचाने के बावजूद ये मिट्टी से बने दीयों का मुकाबला नहीं कर सकीं। बीबी रेशमा के अनुसार अमृतसर में उक्त मोहल्ले से बड़ी संख्या में मिटट्ी के दीये हिमाचल प्रदेश, श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, गुरदासपुर आदि शहरों में दुकानदारों की मांग के अनुसार भेजे जा रहे हैं। इस मोहल्ले की बीबी रजनी ने बताया कि मोहल्ले में घरों की ओर से दिन रात दीये बनाने के बावजूद वह दीवाली के अवसर पर हर वर्ष ग्राहकों द्वारा की गई मांग के अनुसार दीये बनाने में असफल रहते थे, क्योंकि हाथ से बने दीयों की मागं जिस तरह तेज़ी से बढ़ रही है उस गति से दीये तैयार करना संभव नहीं है।